बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए प्रसिद्ध है। स्पीती" title="स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में एक दूरस्थ हिमालय की घाटी है। स्थानीय लोगों के अनुसार स्पीती शब्द का शाब्दिक अर्थ है "बीच की जगह" ज्ञात हो कि भारत और तिब्बत के बीच में स्थित होने के कारण इस स्थान का नाम स्पीती पड़ा है।यह जगह बहुत ही उच्च ऊंचाई पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है। स्पीति क्षेत्र अपनी बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए प्रसिद्ध है। स्पीती" loading="lazy" width="100" height="56" />स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में एक दूरस्थ हिमालय की घाटी है। स्थानीय लोगों के अनुसार स्पीती शब्द का शाब्दिक अर्थ है "बीच की जगह" ज्ञात हो कि भारत और तिब्बत के बीच में स्थित होने के कारण इस स्थान का नाम स्पीती पड़ा है।यह जगह बहुत ही उच्च ऊंचाई पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है। स्पीति क्षेत्र अपनी बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए प्रसिद्ध है। स्पीती
यहाँ पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थलों के भण्डार हैं। जहाँ नज़र उठाओ वहां आपको खूबसूरत नज़ारे ही नज़र आएंगे। हिमखंडों से घिरी आकर्षक झीलें, आसमान छोटे पर्वतों के शिखर, ठंडी हवा के झौंके और चारों हरी-भरी हरियाली यह सब लाहुल-स्पीति को पर्यटक स्थलों में नया मुकाम दिलाते हैं।
का सबसे पहला मठ है,इसकी स्थापना महान रिनचेन झांगपो द्वारा की गई थी, जिन्होंने दसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान पश्चिमी हिमालयी राज्यों के जांसकर" title="स्वर्ण मंदिर के रूप में प्रसिद्ध लाहुंग मठ हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले में स्थित है।यह हिमाचल प्रदेश का सबसे पहला मठ है,इसकी स्थापना महान रिनचेन झांगपो द्वारा की गई थी, जिन्होंने दसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान पश्चिमी हिमालयी राज्यों के जांसकर" loading="lazy" width="100" height="56" />स्वर्ण मंदिर के रूप में प्रसिद्ध लाहुंग मठ हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले में स्थित है।यह हिमाचल प्रदेश का सबसे पहला मठ है,इसकी स्थापना महान रिनचेन झांगपो द्वारा की गई थी, जिन्होंने दसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान पश्चिमी हिमालयी राज्यों के जांसकर
माना जाता है कि मंदिर को रात भर में देवताओं द्वारा निर्मित किया गया था, बाद में लोत्साव रिनचेन झेंपो ने यहां एक विलो वृक्ष लगाया, जिसकी पूजा यहां वाले श्रद्धालु करते हैं।
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नौ मंदिरों का था परिसर
बताया जाता है कि, पहले इस जगह करीबन 9 मंदिर बने, जो एक जीर्ण दीवार के अंदर आज भी समाहित हैं। किंवदंती यह है, कि पहाड़ समय-समय पर भगवान के मनोदशा के अनुरूप रंग बदलता है; उदाहरण के लिए, क्रोध के लिए लाल या आनन्द के लिए पीला रंग।
किंवदंतियों है कि मठ के आसपास के पहाड़ों का रंग ईश्वर के मूड के आधार पर बदलता है .. लाल जब गुस्से में हों, नीले जब उन्हें दर्द होता है और पीले जब खुश होते हैं। जब इस मठ का निर्माण किया था, तब यह भिक्षुयों की शिक्षा का केंद्र बना हुआ है। लेकिन आज यह जगह सिर्फ 45 घरों का गांव रह गया है।
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इस मठ को स्वर्ण मंदिर इसलिए कहा जाता है कि, क्यों कि इस मंदिर में रखे हुए भगवान की मूर्तियाँ सोने की है। यह मंदिर सर्खांग के रूप में भी जाना जाता है और यह 50 से अधिक देवी-देवताओं की सजी हुई छवियों की खूबसूरती से सुशोभित दीवारों के साथ एक उत्तम कक्ष है।
विडंबना यह है कि ज्यादातर पर्यटक स्पीती घूमने आते हैं, लेकिन इस खूबसूरत जगह को नहीं घूम पाते, यह एक बेहद ही खूबसूरत जगह है,जिसे अहर यात्री को जरुर घूमना चाहिए।
कैसे पहुंचे?
लाहुंग काजा और ताबो के बीच में स्थित है..धनकर मठ से यहां एक घंटे की ड्राइव कर आसानी से पहुंचा जा सकता है।