महाबलेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के महाबलेश्वर शहर से 6 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जो मराठा विरासत का एक उदाहरण है। यह मंदिर महाबली के नाम से प्रसिद्ध है। महाबलेश्वर मंदिर हिंदू धर्म का एक प्रमुख मंदिर है क्योंकि यह भगवान शिव को समर्पित है। महाबलेश्वर में आकर्षक पहाड़ियों के बीच स्थित यह मंदिर 16 वीं शताब्दी के दौरान मराठा साम्राज्य और उसके शासन का महिमामंडन करता है। महाबलेश्वर मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी में चंदा राव मोर वंश द्वारा किया गया था।
महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन
महाबलेश्वर मंदिर एक बहुत ही भव्य मंदिर है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण 6 फीट लंबा शिवलिंग है। मंदिर में शिवलिंग के अलावा भगवान शिव के कई सामान हैं, जैसे उनका बिस्तर, डमरू, त्रिशूल, उनके पवित्र बैल की नक्काशी और कालभैरव भी हैं। महाबलेश्वर मंदिर का वातावरण बहुत ही शांत और आध्यात्मिक है। भगवान शिव की शांत आभा का गवाह बनने के लिए हर साल यहां भारी संख्या में भक्त आते हैं। धार्मिक स्थल के पास दो अन्य मंदिर हैं, जिनका नाम है अतीबलेश्वर मंदिर और पंचगंगा मंदिर है।
महाबलेश्वर मंदिर का इतिहास
महाबलेश्वर मंदिर का नाम 'ममलेश्वर' शब्द से पड़ा है जो भगवान शिव (मावलों का देवता) को दर्शाती है। ब्रिटीश कर्नल लॉडविक ने इस खूबसूरत हिल स्टेशन की खोज की थी। महाबलेश्वर का इतिहास 1215 के समय का बताया जाता है, जब देवगिरी के राजा सिंघान ने पुराने महाबलेश्वर का दौरा किया था। उन्होंने कृष्णा नदी के स्रोत पर एक छोटा मंदिर और पानी की टंकी का निर्माण करवाया था।
इस क्षेत्र का विकास तब हुआ जब 1350 के समय यह एक ब्राह्मण राजवंश के शासन में आ गया। इसके बाद 16 वीं शताब्दी में चंदराव मोर के मराठा परिवार ने ब्राह्मण वंश को हराया और जावली व महाबलेश्वर के शासक बन गए। इस अवधि के दौरान पुराने महाबलेश्वर के मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।
महाबलेश्वर मंदिर की सरंचना
महाबलेश्वर मंदिर मराठा विरासत का उत्कृष्ट उदाहरण है जो आज भी कई सौ सालों के बाद भी गर्व से खड़ा है। इस मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी के समय का है जो हेमाडंत स्थापत्य शैली की वास्तुकला प्रदर्शित करता है। मंदिर के अंदर 500 साल पुराने स्वयंभू लिंगम हैं जिन्हें महालिंगम कहा जाता है। यह शिवलिंग रुद्राक्ष के आकार में है और यह स्थान बारह ज्योतिर्लिंगों में श्रेष्ठ माना जाता है।
मंदिर में 300 साल पुराना त्रिशूल, रुद्राक्ष, डमरू भी हैं। भगवान शिव को समर्पित इस आकर्षक मंदिर में नंदी और उनके अंगरक्षक कालभैरव की कई नक्काशी भी है। यहां एक चौकोर आकार का एक मंच भी है जिसे मराठा शासक शिवाजी द्वारा दान में दिया गया था, जो उनकी मां जीजा बाई के वजन के बराबर है।
महाबलेश्वर मंदिर में घूमने के लिए प्रमुख आकर्षण
अगर आप एक इतिहास प्रेमी हैं तो यह मंदिर आपके लिए स्वर्ग के सामान है। सिर्फ यह मंदिर ही नहीं बल्कि इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता भी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह मंदिर बहुत ही शांत है जिसकी वजह से यह आध्यात्मिकता के एक अलग स्तर पर ले जाता है। जो भी लोग अपने मन को शांत करना चाहते हैं उन लोगों के लिए यह मंदिर एक आदर्श जगह है। अगर आप भीड़ से बचना चाहते हैं तो सुबह-सुबह मंदिर के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।
महाबलेश्वर मंदिर घूमने जाने का सबसे अच्छा समय
महाबलेश्वर पश्चिमी घाट के आसपास के क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यहां पर पूरे साल मौसम काफी सुहावना और सुखद रहता है। अक्टूबर से जून इस शानदार मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय है। जुलाई से सितंबर तक के महीनों में महाबलेश्वर में मूसलाधार बारिश होती है। जिसकी वजह से झरने इस हिल स्टेशन की सुंदरता बढ़ा देते हैं।
महाबलेश्वर मंदिर महाबलेश्वर कैसे पहुंचे
महाबलेश्वर मंदिर तीन स्थानों से पंहुचा जा सकता हैं सतारा, पुणे और मुंबई। सतारा केंद्रीय स्थान है। महाबलेश्वर मुंबई-पुणे राजमार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और इसलिए मुंबई या पुणे के लिए उड़ान भर सकते हैं और सड़क के माध्यम से महाबलेश्वर पहुंच सकते हैं। सतारा पहुंचने के लिए पुणे, बैंगलोर, मुंबई से ट्रेन भी जाती है।