कहा जाता है भगवान भोले एक ऐसे ऐसे भगवान है, जो अपने भक्ति मात्र से प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनाकामनाएं पूरी करते है, लेकिन आज महाशिवरात्रि सीरिज में हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भक्त पूजा अर्चना करने से डरते हैं।
पढ़कर आपको अजीब लग सकता है, लेकिन भगवान शिव का ऐसा मंदिर है, जहां भक्तों का पूजा करना वर्जित है, इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने से मोक्ष नहीं बल्कि श्राप मिलता है।
भगवान शिव का यह मंदिर अपनी अद्भुत स्थापत्य और बेजोड़ कला के लिए जाना जाता है, बावजूद इस मंदिर में सदियों से किसी ने पूजा नहीं।
के अन्य मन्दिरों की तरह इस मंदिर को देखने और दर्शन करने लाखों की तादाद में भक्त आते हैं, वे यहां आकर वो इस मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला को निहारते हैं और वापस अपने घरों को लौट जाते हैं, लेकिन वो यहां पूजा नहीं करते हैं। महाशिवरात्रि 2018:जाने कहां कहां है भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग" loading="lazy" width="100" height="56" />भगवान शिव के अन्य मन्दिरों की तरह इस मंदिर को देखने और दर्शन करने लाखों की तादाद में भक्त आते हैं, वे यहां आकर वो इस मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला को निहारते हैं और वापस अपने घरों को लौट जाते हैं, लेकिन वो यहां पूजा नहीं करते हैं। महाशिवरात्रि 2018:जाने कहां कहां है भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग
कहां है यह मंदिर?
भगवान शिव का यह मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के बल्तिर गांव में स्थित है। इस मंदिर को देवाला के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भक्त केवल दर्शन करते हैं, लेकिन कभी भी इस मंदिर में पूजा नहीं की जाती है।
क्यों नहीं है पूजनीय
पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में पिथौरागढ़ में कभी कत्यूरी राजा का शासन हुआ करता था। राजा अपने राज्य में बेजोड़ स्थापत्य का निर्माण करवाता रहता था। राजा कत्यूरी ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को एक बेहद कुशल कारीगर ने अपने एक हाथ से बनाया था।
इस मंदिर में सबकी मनोकामना होती है पूरी
सिर्फ एक हाथ
उस कारीगर का एक हाथ किसी दुर्घटना में कट गया था। मजब वह कारीगर मंदिर की मूर्तियां बनाने की कोशिश करते हैं, तो उसके आसपास के लोग उसका मजाक बनाते, इस उपहास के कारण उसने खुद से वादा किया,वह अपने इस एक हाथ से सिर्फ मूर्तियां ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा मंदिर बनाएगा।
एक हाथ से काटी पूरी चट्टान
वह अपने उपहास के कारण इतना क्रोधित था कि, उसने एक ही रात में अपने एक हाथ पूरी चट्टान काटकर देवाला का निर्माण किया, साथ ही शिवलिंग का भी निर्माण किया, लेकिन शिवलिंग मे वह प्राण प्रतिष्ठित नहीं कर सका। यह मंदिर एक हाथ से बना है, इसलिए एक एक हाथिया देवाला कहा जाता है।
इसलिए श्रापित है यह मंदिर
इसी कारण यह मंदिर पूजनीय नहीं है, स्थानीय लोगो के बीच यह मान्यता फ़ैल गयी है कि, इस मंदिर में पूजा करना अशुभ है, जो भी व्यक्ति इस मंदिर में पूजा करेगा उसे भगवान का श्राप लगेगा।