महाशिवरात्रि सीरीज के पहले आर्टिकल में हमनें आपको बताया था कि "सत्य ही शिव है और शिव ही सुन्दर है"जी हां जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है वही सुन्दर है, सबसे सुन्दर है। एक तरफ भोले शंकर जहां शांत और सौम्य हैं तो वहीं विनाश के देवता के तौर पर आप इन्हें तांडव करते हुए रुद्र रूप में भी देख सकते हैं। अब हम अपनी इस महाशिवरात्रि सीरीज में आपको जिस शिवलिंग से अवगत कराने जा रहे हैं उसके बारे में ये मशहूर है कि यदि कोई यहां दर्शन करने के बाद गंगा में डुबकी लगा ले तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आज हम बात करने वाले हैं उत्तर प्रदेश के बनारस में मौजूद काशी विश्वनाथ मंदिर की। काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं।
वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 किलो शुद्ध सोने द्वारा इसे मढ़्वाया गया था।
इस मंदिर के बारे में एक बहुत दिलचस्प गाथा है, शिवपुराण में है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में इस बाद को लेके विवाद हो गया कि दोनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? दोनों में विवाद चल ही रहा था कि तीनों लोकों को चीरता हुआ एक प्रकाशमय शिवलिंग हुआ और उसमें से आवाज आई की ब्रह्मा और विष्णु में से जो कोई भी इस प्रकाश लिंग का अंत बिंदु खोज लेगा वही दोनों में बड़ा होगा।
इतना सुनना था कि ब्रह्मा और विष्णु दोनों अलग हो गए और विपरीत दिशाओं में चले गए जहां विष्णु ने लिंग के नीचे के छोर पर और ब्रह्मा ने लिंग के शीर्ष छोर पर जाने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि लिंग का अंत बिंदु खोजने के समय ब्रह्मा ने झूठ का सहारा लिया जिसे शिव ने पकड़ लिया और ब्रह्मा को श्राप दे दिया। और इस प्रकार इस शिवलिंग की स्थापना हुई।
सर्व तीर्थमयी एवं सर्व संतापहारिणी मोक्ष दायिनी काशी और इस मंदिर की महिमा ऐसी है कि यहां प्राण त्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छूट जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।