भारत में आश्चर्य में डालने योग्य जगहों की कोई कमी नहीं है। भारतमें पड़ने वाले हर एक डेस्टिनेशन कि अपनी एक खास तरह कि कहानी है, जो सुनने में बहुत रोचक है। यहां हर कहानी इतनी दिलचस्प है कि आप उस स्थान पर एक बार जाकर खुद उसे महसूस ज़रूर करना चाहेंगे। कुल मिलाके ये कहा जा सकता है कि भारत और रहस्य एक दूसरे के पूरक हैं।
तो आइये आज जानें एक ऐसे शमशान के बारे में जो अपने अनूठेपन के कारण भारत में इतना लोकप्रिय है कि इसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। इन सब बातों को पढ़ने उन्हें सोचने और समझने के बाद शायद आपके मन में कौतुहल के चलते ये प्रश्न उठे कि आखिर आज हम शमशान की बात क्यों कर रहे हैं? कहां है? कैसा है ये शमशान ? कौन सी ऐसी बातें हैं जो इस शमशान को ख़ास बनाती हैं ? तो चलिए आपको बता दें कि यहां हम बात कर रहे हैं वाराणसी के मणिकर्णिका घाट की ।
मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है।इस घाट से जुड़ी भी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी।
दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीम मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं, और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नहीम पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था।
इस घाट की विशेषता ये है, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। गौरतलब है कि मणिकर्णिका घाट, वाराणसी का वह घाट है जहां पर्यटक मौत पर्यटन करते है। कई पर्यटक यहां हिंदू धर्म के दाह संस्कार को देखने और रीति - रिवाजों को समझने के वास्ते भी आते है। शायद इस घाट पर महिलाओं पर जाना मना है। इस घाट के पास में भगवान गणेश का मंदिर स्थित है और एक स्टोन स्लैब भी बना हुआ है जिसके बारे में माना जाता है कि यह भगवान विष्णु के चरणपादुका के निशान है। धनी औ अति विशिष्ट लोगों का अंतिम संस्कार यही किया जाता है।
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मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है।इस घाट से जुड़ी भी दो कथाएं हैं।
मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
इस घाट से जुड़ी भी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी।
मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नही मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं, और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नही पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है?
मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था।
मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
इस घाट की विशेषता ये है, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती।
मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
मणिकर्णिका घाट, वाराणसी का वह घाट है जहां पर्यटक मौत पर्यटन करते है। कई पर्यटक यहां हिंदू धर्म के दाह संस्कार को देखने और रीति - रिवाजों को समझने के वास्ते भी आते है।