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मैसूर दशहरे से जुड़ी ये दिलचस्प बातें आपको हैरान कर देंगी

मैसूर में दशहरे का आयोजन कई सालों से निरंतर किया जा रहा है, और इस साल मैसूर इस भव्य त्योहार की 408 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है।

कर्नाटक स्थित मैसूर दक्षिण भारत के ऐतिहासिक और अद्भुत पर्यटन स्थलों में गिना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की तादाद में देश-विदेश से पर्यटकों का आगमन होता है। इस शहर का मुख्य आकर्षण यहां का मैसूर पैलेस है, जो अपनी विशालता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा भी मैसूर में कई प्राचीन संरचनाएं मौजूद हैं, जिन्हें यात्रा के दौरान देखा जा सकता है। इन सब के अलावा यह प्राचीन शहर अपने हर साल मनाए जाने वाले दशहरे के लिए भी विश्व भर में जाना जाता है। शायद ही ऐसा दशहरा भारत के किसी अन्य कोने में मनाया जाता हो।

मैसूर का दशहरा अपने आप में ही काफी खास है। इस त्योहार का आयोजन नवरात्रि के पहले दिन से ही शुरु हो जाता है, लगभग 10 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में लाखों की तादाद में पर्यटको का जमावड़ा लगता है। इस लेख में हमारे साथ जानिए इस भव्य त्योहार से जुड़ी उन महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जिनके बारे में आपको पता होनी चाहिए। जानिए मैसूर दशहरा आपके लिए क्यों खास है ?

408 वीं वर्षगांठ

408 वीं वर्षगांठ

PC-Ms Sarah Welch

मैसूर में दशहरे का आयोजन कई सालों से निरंतर किया जा रहा है, और इस साल मैसूर इस भव्य त्योहार की 408 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। यह त्योहार दस दिनों तक चलता है, जो नवरात्र के पहले दिन से ही शुरु हो जाता है। अंतिम दिन विजयादशमी का होता है, जो इस त्यहोरा का सबसे खास दिन होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था, जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो यह त्योहार पूरे भारतवर्ष विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है लेकिन मैसूर का दशहरा सबसे अलग और अनूठा है। आगे जानिए इस त्योहार से जुड़ी और भी दिलचस्प बातें।

मैसूर की शाही परंपरा

मैसूर की शाही परंपरा

PC-Ananth BS

मैसूर दशहरा का आयोजन सबसे पहले 1610 में आयोजित किया गया था। इस त्योहार को यहां मनाने की शुरुआत 15वीं शताब्दी में दक्षिण के सबसे शक्तिशाली राजवंश विजयनगर ने की थी। यह त्योहार विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में एक अहम भूमिका अदा करता है। कई इतिहासकारों ने अपने वृतांतों और लेखों में इस मैसूर दशहरें का उल्लेख विजयनगर के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व के रूप में किया है। उस दौरान त्योहार के साथ-साथ कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता था, जिसमें गायन-वादन, परेड, जुलूस आदि शामिल थे।

 महिषासुर से जुड़ा तथ्य

महिषासुर से जुड़ा तथ्य

PC- Jean Pierre Dalbera

बहुत कम लोग इस तथ्य के बारे में जानते हैं, कि मैसूर शहर का नाम राक्षस महिषासुर के नाम पर रखा गया था। महिषासुर पौराणिक काल का एक असुर था। किवदंती के अनुसार इस दानव का पिता असुरों का प्रमुख था जो जल में रहने वाली किसी भैंस से प्रेम कर बैठा, और इस तरह महिषासुर का जन्म हुआ। इस असुर को कई मायावी शक्तियां प्राप्त थीं, जिनके द्वारा वो किसी भी समय भैंस या इंसान का रूप धारण कर सकता था। महिषासुर दो शब्दों से बना एक महिष यानी भैंस और दूसरा असुर। बाद में इसके पापों का घड़ा भरने के कारण मां दुर्गा को इसका वध करना पड़ा।

सजाया जाता है पूरे महल को

सजाया जाता है पूरे महल को

PC- Deeptrivia

इस दिन मैसूर पैलेस की रौनक देखने लायक होती, पूरे महल को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता है। आधुनिक रंग-बिरगी लाइटों से महल की दीवारों, छत व आसपास की जगहों को सजाया जाता है। जानकारी के अनुसार दशहरे के खास अवसर पर पैलेस को जगमगाने के लिए 100,000 लाइटों का इस्तेमाल किया जाता है, जो शाम 7 बजे से लेकर रात 10 बजे तक निरंतर जलती हैं। अगर आप भी यहां के शाही दशहरे और महल की जगमगाहट को करीब से देखना चाहते हैं तो इस त्योहार का हिस्सा जरूर बनें।

निकाली जाती है शोभायात्रा

निकाली जाती है शोभायात्रा

PC-Kalyan Kumar

मैसूर दशहरे के अवसर पर महल को सजाने, गायन-वादन कार्यक्रमों के अलावा एक विशेष शाही शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए पर्यटकों का भारी जमावड़ा लगता है। ऐसा रॉयल अंदाज शायद ही कहीं देखने को मिले। यह शोभायात्रा दशहरे के अंतिम दिन यानी विजयदशमी के दिन आयोजित की जाती है, जिसे स्थानीय रूप से जंबू सवारी भी कहा जाता है। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण मां दुर्गा की मूर्ति होती है, जो सजे-धजे हाथी पर रखे स्वर्ण मंडप(हौदा) पर विराजित की जाती है। गाजे बाजे के साथ यह शोभायात्रा निकाली जाती है।

 कार्यक्रमों का आयोजन

कार्यक्रमों का आयोजन

PC- Kalyan Kumar

इस भव्य त्योहार का एक मुख्य आकर्षण यहां लगने वाली प्रदर्शनी भी है, जो दशहरा प्रदर्शनी स्थल पर लगाई जाती है, जो मैसूर पैलेस के ठीक सामने है। माना जाता है कि इस प्रदर्शनी की शुरुआत मैसूर के महाराजा चामराजा वाडियार दशम ने 1880 में की थी। दशहरे के मुख्य के हिस्से के रूप में यह खास प्रदर्शनी प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है। यहां कई दुकाने भी लगाई जाती है, जहां से आप कपड़े, साज-सज्जा के सामान आदि खरीद सकते हैं। प्रदर्शनी के अलावा इस दौरान यहां गायन-वादन जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

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