खनिज-संपदा से संपन्न भारत का झारखंड राज्य अपनी आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां मौजूद घने जंगल सदियों से आदिवासी समाज का भरण-पोषण करते आ रहे हैं। इन जनजातियों के लिए जंगल ही इनका सब कुछ है। शहरी जीवन से दूर इन लोगों की रोजी-रोटी जंगल आधारित है।
इन सब से परे अगर देखा जाए तो झारखंड भी रहस्यों से भरा हुआ है, यहां कई ऐसी अजीबोगरीब चीजें मौजूद हैं जिनका रहस्य अभी तक सुलझाया नहीं गया है। आज हमारे साथ जानिए झारखंड की एक ऐसी नदी के बारे में जो सदियों से सोना उगलने काम कर रही है। रहस्य और एडवेंचर का शौकीन यहां का प्लान बना सकते हैं।
सोना उगलती है नदी
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झारखंड की सुवर्णरेखा नदी उन रहस्यमयी नदियों में शामिल है, जहां सदियों से सोना निकाला जा रहा है। यह नदी झारखंड से होकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ भागों में बहती है। यहां रेतों के कणों में सोना पाया जाता है, इसलिए इस नदी का नाम सुवर्णरेखा रखा पड़ा। यह नदी लंबे समय से भूवैज्ञानिकों के शोध का विषय है, जिनका मानना है कि यह नदी चट्टानों से होकर गुजरती है, जिस कारण इसमें सोने के कण मिल जाते हैं। हालांकि अभी तक इसकी पूरी गुत्थी एक रहस्य ही है।
कहां से आता है सोना ?
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नदी में सोना मिलने की बात को लेकर अलग-अलग मत प्रस्तुत किए गए हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि इस नदी की रेत में सोना सहायक नदी 'करकरी' से आते हैं। क्योंकि इस नदी की रेत में सोने के कण पाए जाते हैं। बता दें कि सुवर्णरेखा नदी की लंबाई लगभग 474 किमी है, और इसकी सहायक नदी करकरी 37 किमी लंबी है। इसलिए यह एक छोटी नदी मानी जाती है। कुल मिलाकर इन दो नदियों में सोना कहां से आता है आज तक इसका पता कोई नहीं लगा सका।
आजीविका का साधन
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ये दो नदियां स्थानीय निवासियों के लिए एक आशा की किरण हैं, जो इनके आजीविका का मुख्य साधन बन चुकी हैं। आपको यहां सुबह से लेकर देर शाम तक रेत से सोने का कण निकालते आदिवासी लोग दिख जाएंगे। काफी मेहनत भरा यह काम इनके लिए रोजी-रोटी है। सोने के कण निकालने के काम पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं और बच्चे भी करते हैं।
काफी धैर्य का काम
झारखंड की इन दो नदियों से सोना निकालने का काम यहां के कुछ आदिवासी समाज करते हैं। मुख्य तौर पर राज्य के तमाड़ और सारंड स्थान सोना निकालने के लिए ही जाने जाते हैं। कहा जाता है कि नदी की रेत से सोने के कण निकालने का काम यहां कई पीढ़ियों से चला आ रहा है, जो अब इनके जीवन का हिस्सा बन चुका है।
स्थानीय निवासियों के मानें तो इस काम में बहुत ज्यादा धैर्य की जरूरत पड़ती है। कभी ऐसा भी होता है कि किसी दिन कुछ भी हाथ नहीं लगता है, लेकिन ये लोग अपना धैर्य और उम्मीद कभी नहीं खोते।
सालभर चलता है काम
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नदी से निकाले गए सोने के कण चावल के दाने की तरह होते हैं। एक व्यक्ति एक महीने में लगभग 60 से 80 सोने के कण निकाल पाता है। हालांकि किसी महीने यह संख्या 25 भी हो जाती है। सोना निकालने का काम यहां बाढ़ के दो महीनों को छोड़कर सालभर चलता है।
मानसुन के दिनों में यहां जल का स्तर बढ़ जाता है, इसलिए यह काम रोकना पड़ता है। बाढ़ का समय बीत जाने के बाद गांव वाले फिर अपने-अपने काम में जुट जाते हैं।
इतने रूपए में बिकता है सोना ?
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नदी से निकाला गया सोने का छोटा सा कण 100 रूपए तक में बिकता है। हालांकि इसकी बाजार कीमत 300 रूपए से भी ज्यादा है। लेकिन स्थानीय दलालों और सुनारों की वजह से इन मेहनती लोगों को सिर्फ 80 से 100 रूपए प्रति कण ही मिल पाता है।
जागरूकता के अभाव में यह गांव वाले कम कीमत पर स्थानीय दलालों को सोने के कण बेच देते हैं। देखा जाए तो यह एक शोषण का ही रूप है। क्योंकि इनसे सोना खरीदने वाले सुनार और दलाल शहर में करोड़ों रूपए कमाते हैं।
कैसे करें प्रवेश
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इस नदी का उद्गम रांची शहर से लगभग 16 किमी की दूरी पर है। यह नदी नगड़ी गांव के रानी चुआं स्थान से निकलती है। यह एक खूबसूरत पहाड़ी नदी है। रांची का सफर आप सड़क/रेल/हवाई मार्गों के द्वारों कर सकते हैं।
रांची जंक्शन से भारत के कई बड़े शहर जुड़े हुए हैं। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा 'बिरसा मुंडा एयरपोर्ट' है, जो शहर में ही स्थित है। इसके अलावा आप सड़क मार्गों के द्वारा भी यहां तक का सफर तय कर सकते हैं। बंगाल, बिहार के कई बड़ों शहरों से यहां तक के लिए बस सेवा उपलब्ध है।