भारत में 'रहस्य' और 'माया' की बात बिना अघोरियों के हो नहीं सकती है। मानव योनी में जीवन प्राप्ति के बाद भी एक अज्ञात जिंदगी के अनुसरणकर्ता कहलाए जाते हैं ये 'अघोरी साधु'। इनका उठना-बैठना, खान-पान यहां तक कि विचार आम इंसान से काफी भिन्न होते हैं।
इस खास हिन्दू संप्रदाय का अंकुरण पौराणिक काल से बताया जाता है। इन्हें हिन्दू धर्म के अंतर्गत अघोर पंथ का माना गया है। जिनका संबंध भगवान शिव से ज्यादा रहा है। देखा जाए तो अघोरी हमेशा से ही खास चर्चा का विषय रहे हैं।
जब भी अघोरी शब्द हमारे सामने आता है, एक अजीब सी रहस्यमयी दुनिया हमारे आसपास चलने लगती है। जिनके अज्ञात जीवन के बारे में हम मात्र कल्पना ही कर सकते हैं। आगे जानिए इन अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया से जुड़े और भी कई दिलचस्प तथ्य और वर्तमान में उनके विशेष ठिकानों के बारे में।
अद्भुत आवरण और कठोर तप-साधना
अघोरी साधु मुख्यत : अपने अद्भुत शारीरिक आवरण और कठोर तप-साधना के लिए जाने जाते हैं। इनमें आम इंसान से भी कई गुणा क्षमता और ताकत होती है। ये ज्यादातर नग्न अवस्था में रहते हैं और पूरे शरीर पर इंसानी शवों की भस्म लगाते हैं। जो इनकी खास पहचान है। अघोरी तीन तरह की गुप्त साधनाएं करते हैं, जिनमें शिव साधना, श्मशान साधना और शव साधना शामिल है।
ये ज्यादातर अपना अड्डा श्मशान घाटों में लगाते हैं। माना जाता है कि ये गौमांस के अलावा हर किसी जीव का मांस खाते हैं, हालांकि इस विषय की सच्चाई भी इनकी ही तरह रहय्य से जुड़ी है।
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मुर्दों से करते हैं बात
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अघोरियों के विषय में कहा जाता है कि इनकी तंत्र-साधना में इतनी ताकत होती है कि ये मुर्दों से बात कर लेते हैं। स्थानीय प्रचलित कहानियों में इस बात का हमेशा से ही जिक्र रहा है कि अघोरी मृत इंसानों में भी जान फूंक देते हैं। हांलाकी विज्ञान इन बातों का पूर्ण रूप से खंडन करता है।
हिन्दू धर्म में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के शवों को जलाने के बजाय उन्हें या तो दफना दिया जाता है या फिर गंगा जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
माना जाता है कि ये अघोरी इन बच्चों के शवों को अपना निशाना बनाते हैं, जिनका प्रयोग ये अपनी गुप्त तंत्र-साधना में करते हैं। आगे जानिए वर्तमान में इनके खास ठिकाने।
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बंगाल का तारापीठ
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तंत्र-साधना के लिए बंगाल सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला राज्य है। और जहां तंत्र-साधना हो वहां अघोरियां का जिक्र अवश्य ही होता है। बीरभूम जिल में अंतर्गत बंगाल का तारापीठ अघोरी-तांत्रिकों का बड़ा ठिकाना बताया जाता है।
यह स्थान तारा देवी के लिए प्रसिद्ध है। यहां मां काली की विशाल प्रतिमा भी स्थापित है। यह मंदिर श्माशान घाट (महाश्मशान घाट) के नजदीक स्थित है।
कहा जाता है कि इस मसान की अग्नी कभी शांत नहीं पड़ती। रात में यह श्मशान घाट अघोरियां की गुप्त साधनाओं का विशेष ठिकाना बन जाता है।
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असम का कामाख्या देवी मंदिर
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असम के गुवाहाटी शहर में स्थित कामाख्या मंदिर अघोरियों की तंत्र-साधना का मुख्य स्थल माना जाता है। यह स्थान भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां देवी सती के शरीर का एक अंग (योनी) गिरा था।
माना जाता है यहां स्थित श्मशान में देश की विभिन्न जगहों से तांत्रिक गुप्त सिद्धियां प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है, जहां रोजाना दर्शनाभिलाषियों की लंबी कतार लगती है।
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नासिक का त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
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जहां स्वयं भगवान शिव विराजमान हों वो जगह भला अघोरियों से कैसे दूर हो सकती है। तारापीठ और कामाख्या मंदिर के अलावा महाराष्ट्र के नासिक स्थित त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर में भी अधोरियों का भारी जमावड़ा लगता है। यह मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है। मंदिर के अंदर तीन छोटे लिंग मौजद हैं जो ब्रह्मा-विष्णु-महेश के प्रतीक माने जाते हैं।
यहां ब्रह्मगिरि पर्वत भी स्थित है जहां से गोदावरी नंदी का उद्गम माना जाता है। ब्रह्मगिरि पर्वत पर रामकुण्ड और लक्ष्मण कुंड स्थित हैं, जिनके दर्शन करने के लिए भक्तों को 700 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है।
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काशी का मणिकर्णिका घाट
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बनारस के मणिकर्मिका घाट को महाश्मशान का दर्जा प्राप्त है। जहां की चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती है। सुबह से लेकर रातभर यहां अंतिम संस्कार का सिलसिला जारी रहता है। और जहां श्मशान घाट वहां अघोरियों का होना अनिवार्य है। वैसे देखा जाए तो काशी इन अघोरियों का विशेष स्थान माना जाता है, जिसका मुख्य कारण यहां स्थित बाबा विश्वनाथ का मंदिर और और गंगा के 84 घाट। जिनमें से अधिकतक रात क दौरान इन अघोरी-तांत्रिकों की गुप्त साधनाओं का विशेष स्थान बन जाते हैं।