हम हर जगह कहीं ना कहीं किसी ना किसी चीज़ में अपने स्वर्ग को ढूँढ ही लेते हैं। चाहे वह आपकी मनपसंद जगह हो या कोई मनपसंद खाना। हर अच्छी चीज़ जो आपके मन को छूती है, वही आपके लिए स्वर्ग है। इसी तरह भारत के चारों दिशा में आपके मनपसंद की कोई ना कोई ऐसी जगह होगी जो आपके लिए किसी जन्नत से कम नहीं और रही बात कश्मीर की तो वह जग ज़ाहिर, भारत का जन्नत होने की वजह से ही प्रसिद्ध है।
आज हम आपको ऐसे ही एक जन्नत की सैर पर लिए चलते हैं, जो झीलों में सबसे बड़ा रहस्य और आश्चर्य है। हम बात कर रहे हैं, हिमाचल प्रदेश में मंडी के पास ही बसे पराशर झील की। इस झील के बारे में लोगों को ज़्यादा पता नहीं है, इसलिए यह जगह शांत और लोगों की चहल पहल से बिल्कुल दूर है। यह समुद्री तल से 2730 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ की आश्चर्यचकित कर देने वाली खूबसूरती और शांति इस जगह को छोटे स्वर्ग के रूप में निखारती है।
पराशर झील का दूर से लिया गया अद्भुत और मनोरम दृश्य
Image Courtesy: Ashish Gupta
इस झील की ख़ासियत शुरू होती है, यहाँ के भूशैली से। पराशर झील के आसपास आपको एक पेड़ नहीं मिलेगा। झील के चारो तरफ हरे हरे घास के मैदान और पास में ही 14वीं शताब्दी का पगोड़ा शैली में बना पराशर ऋषि का अद्भुत मंदिर है। झील के पास के यह हरे हरे घास के मैदान दिसंबर माह में पीले पड़ जाते हैं। झील का सबसे बड़ा रहस्य है इसमें बसा 'टहला'। जी हां टहला, यह झील का एक छोटा सा द्वीप है, जो पूरे साल इसमें टहलता रहता है। आप कभी भी यहाँ चले जाइए, कभी ये आपको झील के इस कोने में दिखेगा तो कभी उस, इसलिए इसे टहला कहा जाता है।
पराशर झील का छोटा सा अस्थिर द्वीप टहला
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पराशर झील के पास स्थापित मंदिर के बारे में कहा जाता है कि, पराशर ऋषि ने इसी मंदिर में तपस्या की थी। यह मंदिर मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने बनवाई थी। दिलचस्प बात यह है कि, सालों पहले इस झील के पास एक बहुत बड़ा सा पेड़ हुआ करता था, जिसे बिना काटे, बिना उखाड़े ही काट छांट कर ही इस मंदिर का निर्माण किया गया। है ना यह अद्भुत और दिलचस्प बात? 12 बरसों में बने, इस तिमंजिले मंदिर की भव्यता अपने आप में उदाहरण है। कला-संस्कृति प्रेमी पर्यटक मंदिर प्रांगण में बार-बार जाते हैं।
सर्दियों के मौसम में जब यहाँ बर्फ पड़ती है, तब इस झील और इसमें बसे टहला का नज़ारा ऐसा होता है कि आप उस दृश्य से अपनी नज़रें नही हटा सकेंगे। दुनिया के सारे झमेलों से दूर एक झील और उसके किनारे बसा मंदिर, ऐसा लगेगा कि आप किसी सपनों के शहर में स्वयं भगवान के द्वार पर खड़े हैं। मंदिर के बाहरी ओर व स्तंभों पर की गई नक्काशी अद्भुत है।
झील का शांत और प्राकृतिक सौंदर्य
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मंदिर जाने वाले श्रद्धालु वहाँ के झील से हरे हरे घास निकाल कर ले जाते हैं, जिन्हें बर्रे कहा जाता है। इसे वे अपने पास भगवान की निशानी समझकर श्रद्धा पूर्वक रखते हैं। मंदिर में मिलने वाले प्रसाद के साथ भी यह घास दिए जाते हैं। यहाँ प्रतिमा के समक्ष पुजारी द्वारा चावल के कुछ दाने दिए जाते हैं। उन दानों को लेकर प्रतिमा के सामने हाथ जोड़कर श्रद्धालु आँखें मूंदकर प्रार्थना करते हैं।प्रार्थना ख़त्म होने पर आँखें खोलकर उन चावल के दानों को गिना जाता है। अगर वो दाने तीन पाँच सात आदि जैसे विषम संख्या में होते हैं, तो श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होगी अगर सम संख्या में हुए तो नहीं होगी।
बर्फ से ढका पराशर झील
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मान्यता है कि, मनोकामना पूरी होने पर बकरे या बकरी की बलि मंदिर प्रांगण के बाहर दी जाती है। कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि, इस क्षेत्र में अगर बारिश नहीं होती थी, तो पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते थे। गणेश जी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर है। यह वंदना राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज सैकडों वर्ष बाद भी हो रही है। झील में मछलियां भी हैं जो अपने आप में एक आकर्षण हैं। पराशर झील के निकट हर वर्ष आषाढ की संक्रांति व भाद्रपद की कृष्णपक्ष की पंचमी को विशाल मेले लगते हैं। भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
पराशर झील और पराशर मंदिर का निर्मल व अद्भुत दृश्य
Image Courtesy: Tandon.arnav21
पराशर झील पहुँचें कैसे?
झील की प्राकृतिक खूबसूरती अब तक बरकरार है। आप मंडी से कटोला होकर बागी पहुँचेंगे। फिर यहाँ से पराशर झील सिर्फ़ 8 किलोमीटर की दूरी पर ट्रेकिंग द्वारा पहुँच सकते हैं। एक सड़क मार्ग भी है बागी से यहाँ तक के लिए जिसकी दूरी 18 किलोमीटर है। इस सड़क पर आपको बस सुविधा मिलेगी जो आप को इस झील के लगभग 1 किलोमीटर पहले पहुँचाएगी। उसके आगे झील तक आप आराम से पैदल जा सकते हैं। दिल्ली से रोज़ मंडी के लिए बस सुविधा उपलब्ध है।
तो इस वीकेंड अपने दोस्तों या परिवार के साथ खुद से स्वर्ग के मज़े लेने और अनुभव करने के लिए निकल पड़िए क्युंकी पराशर झील की यात्रा आप कभी भी किसी भी मौसम या महीने में कर सकते हैं। इस अछूते और एकाकी सौंदर्य को अपनी पूर्ण आत्मा के साथ अनुभव करिए। हमें पूरा यकीन है कि यहाँ आकर आप ज़रूर कहेंगे, "धरती पर स्वर्ग कहीं है तो यहीं है, यहीं है और बस यहीं है"।
अपने महत्वपूर्ण सुझाव व अनुभव नीचे व्यक्त करें।
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