चाहे आप घूमने के शौक़ीन हों या न हों आपने नैनीताल का नाम अवश्य सुना होगा।उत्तराखंड राज्य के इस शहर का शुमार भारत के सबसे खूबसूरत शहरों में है। साथ ही इसे झीलों के शहर या लेक डिस्ट्रिक्ट के रूप में भी जाना जाता है। इस शहर की स्थापना यहां मौजूद नैनी झील के कारण हुई है, कहते हैं यहां देवी सती की आँखें गिरी थी। तो इसी क्रम में आज हम आपको अवगत करा रहे हैं नैनीताल के नैना देवी मंदिर से।
नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। आपको बता दें कि नैनी देवी मंदिर का शुमार प्रमुख शक्ति पीठों के रूप में भी होता है। ज्ञात हो कि 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है। मान्यता है कि यहां देवी के नयनों की अश्रुधार से एक ताल का निर्माण हुआ। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रुप में होती है। आपको बता दें कि आज इसी ताल को नैनी झील के नाम से जाना जाता है, और हर साल लाखों पर्यटक यहां घूमने आते हैं।
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अप्रैल से जून और फिर नवंबर से जनवरी तक इस मंदिर की यात्रा कर सकते हैं। इस मंदिर की ख़ास बात ये है कि यहाँ मुख्य देवी नैना देवी की प्रतिमा के साथ ही भगवान श्री गणेश और काली माता की मूर्तियाँ भी लगाई गयी हैं। साथ ही पीपल का एक विशाल वृक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित है जिसके पीछे भी कई मान्यताएं हैं।