शारदीय नवरात्री स्पेशल:सैर करें दिल्ली के पांच प्रसिद्ध दुर्गा मन्दिरों की
माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान 'चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
ज्वालामुखी मंदिर, जहां देवी के मुहं से निकलती हैं आग की लपटें
जैसा कि हम आपको बता चुके हैं हमारी ये पूरी सीरीज मां दुर्गा और नवरात्रि को समर्पित है तो आज इसी क्रम में हम आपको अवगत कराएंगे मध्यप्रदेश में स्थित मैहर देवी मंदिर के बारे में।
मैहर
यह मंदिर मध्य प्रदेश के मैहर शहर में त्रिकूट पर्वत की उँचाई पर स्थित है। मैहर शहर का नाम भी भगवान से जुड़ी कहानी पर ही निर्धारित है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव जी देवी सती के शव को गोदी में उठा कर ले जा रहे थे तब उनके गले का हार टूट कर इस जगह में गिर गया और तब से ही इस शहर का नाम माई का हार, 'मैहर' पड़ गया। PC:LRBurdak
शारदा देवी मंदिर
मैहर का शारदा देवी मंदिर अपने भक्तों से सदा पटा पड़ा रहता है।इस मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको इस मंदिर की 1063 सीढ़ियाँ को पार करना होगा। इस मंदिर की महत्ता हर साल लाखों भक्तों को अपनी ओर आमंत्रित करती है। इस मंदिर में माँ शारदे को पूजा जाता है। बुज़ुर्ग लोगों ओर शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित लोगों को यहाँ तक पहुँचाने के लिए रस्सी के रास्ता का भी प्रबंध है।आमतौर पर यहाँ श्रधालुओं का आना जाना लगा रहता है, पर नवरात्रि के मौके पर तो यहाँ पर भक्तों का भारी सैलाब उमड़ता है।
मंदिर का इतिहास
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना 522 ई. पू. में हुई थी। यहाँ माँ शारदा की प्रतिमा के ठीक नीचे के न पढ़े जा सकने वाले शिलालेख भी कई पहेलियों को समेटे हुए हैं। पहले यहाँ बलि चढ़ने की भी प्रथा थी जो सन् 1922 में जैन दर्शनार्थियों के तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव द्वारा प्रतिबंधित कर दी गयी। कहा जाता है की भगवान नर सिंघ भी इसी प्रतिमा में देवी शारदा के साथ विराजमान हैं। यहाँ की मूर्तियाँ 1513 साल पुरानी हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, यहाँ सबसे पहले माता का शृंगार आल्हा और उदल ही करते हैं। आल्हा और उदल बहुत बड़े योद्धा हुए करते थे जिन्होंने राजा पृथ्वी राज चौहान के खिलाफ कई युद्ध लड़े। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया और माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।
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रहस्यमयी कहानी
मंदिर से जुड़ी रहस्यमयी कहानी इस मंदिर के दरवाज़े आधी रात के 2 बजे से सुबह 5 बजे तक 3 घंटों के लिए बंद रहते हैं। मान्यता है कि इस समय हर रोज़ माता का श्रृंगार और उनकी पूजा अर्चना सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। यह परम्परा मंदिर में अब तक जारी है।
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रहस्यमयी मंदिर
कहा जाता है की अगर कोई इन तीन घंटों के अंतराल इस मंदिर के अंदर आता या रहता है तो उन्हें आल्हा और उदल की आत्मा जीवित नहीं छोड़ती। अब तक यहाँ कई सारी अजीब घटनाएँ हो चुकी हैं। इसी तरह के रहस्यमय क्रियाओं की वजह से यह मंदिर अब तक रहस्यापूर्ण और भयावह है। इस रहस्य को सुलझाने वैज्ञानिकों की टीम भी डेरा जमा चुकी हैं लेकिन रहस्य अभी भी बरकरार है।
आल्हा तालाब
मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वी या 10वीं शताब्दी में पूजा अर्चना की थी।PC:LRBurdak
मैहर, शारदा देवी मंदिर पहुँचें कैसे?
सड़क यात्रा द्वारा: मैहर नैशनल हाइवे से जुड़ा हुआ है। यहाँ आप मध्य प्रदेश के बाकी शहरों से सड़क के रास्ते द्वारा आराम से पहुँच सकते हैं। कई बस सेवाएँ यहाँ तक के लिए उपलब्ध हैं।
रेल यात्रा द्वारा: मैहर रेलवे स्टेशन पूर्व मध्य रेलवे के कटनी और सतना स्टेशन्स के बीच में ही पड़ता है, जहाँ लगभग कई सारे ट्रेनों का स्टॉपेज है। दिल्ली से चलने वाली महाकौशल एक्सप्रेस आपको सीधे यहाँ पहुंचायेगी।
हवाई यात्रा द्वारा: जबलपुर और खजुराहो इसके नज़दीकी हवाई अड्डे हैं। तो अगर आप भी इस मंदिर के रहस्य का खुद से अनुभव करना चाहते हैं तो निकल पड़िए इस रहस्यमय मंदिर की यात्रा में, जहाँ आप आध्यात्मिकता को रहस्यमय ढंग से जानेंगे।PC:DeepakSatna