"प्रेम से बोलो जय माता दी!" जैसा कि आप सबको पता है, दशहरे का पावन त्यौहार शुरूहो चूका है, लोगों के घरों में माता की चौकी सज चुकी है, लोग नए नए और पारंपरिक कपड़े पहन माता के दरबार में शामिल होने को तैयार हो चुके हैं। आप सभी को यह तो पता ही होगा कि दशहरे का पर्व,'बुराई पे अच्छी की जीत' का सूचक है, उसी तरह दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा भी प्रदान करता है।
दशहरा, भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में,दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति शुरू से ही वीरता की पूजक है और शौर्य की उपासक है। दशहरे के अंतिम दिन यानि कि विजयदशमी के दिन रावण के पुतले को दहन कर लोग बुराई के ख़त्म होने का जश्न धूमधाम से मनाते हैं।
कई लोगों को अब तक भ्रम है कि यह त्यौहार सिर्फ गुजरात और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों का ही त्यौहार है। जबकि समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। आज हम आपको इस लेख और दशहरे के त्यौहार की कुछ खूबसूरत झलकियों द्वारा आपके इस भ्रम को दूर कर ये बताएँगे कि किस तरह भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से दशहरे का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है।
तो चलिए चलते हैं, दशहरे के त्यौहार में शामिल होने।
कश्मीर
कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। अत्यंत पुरानी परंपरा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं। यह मंदिर एक कुंड के बीचोबीच बना हुआ है।
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कश्मीर
पारंपरिक रूप से वसंत ऋतू में इन्हें खीर चढ़ाई जाती थी इसलिए इनका नाम 'खीर भवानी' पड़ा। इन्हें महारज्ञा देवी भी कहा जाता है। यहाँ ऐसी मान्यता है कि किसी प्राकृतिक आपदा की भविष्यवाणी के सदृष, आपदा के आने से पहले ही मंदिर के कुण्ड का पानी काला पड़ जाता है।
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पंजाब
पंजाब में दशहरा,नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रख,पूरे नौ दिन माँ के अलग-अलग अवतार की पूजा कर मनाते हैं। इस दौरान यहां मेहमानों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। रात भर जागरण का आयोजन होता है, जिसमें माता के भजन भक्तों द्वारा गाये जाते हैं और जयकारे लगाए जाते हैं।
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पंजाब
अष्टमी या नवमी वाले दिन नौ छोटी-छोटी लड़कियों,को घर में आमंत्रित कर माता का प्रसाद खिलाने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। इन बच्चियों को इस दिन कंजक कहा जाता है,जिन्हें दुर्गा माँ के नौ अवतारों के रूप में मान कर व्रत तोड़ने से पहले पूजा कर प्रसाद खिलाया जाता है।
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ के स्थानीय निवासी पारंपरिक परिधानों में तैयार हो अपने वाद्य यंत्र, तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े आदि लेकर बाहर निकलते हैं और अपने ग्रामीण देवता का धूम-धाम से जुलुस निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं।
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हिमाचल प्रदेश
जुलुस में लोक नृत्य की भी प्रस्तुति प्रशिक्षित लोगों द्वारा की जाती है। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी के दिन यहाँ दशहरे की शोभा ही निराली होती है।
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गुजरात
गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृत्य करते हैं।
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गुजरात
इस अवसर पर भक्ति, फिल्म तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है। यहाँ नवरात्रि में सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है।
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महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं।
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महाराष्ट्र
किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।
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उत्तरप्रदेश और दिल्ली
नवरात्री के शुभ अवसर पर व्यस्क स्त्री पुरुष नौ दिनों का व्रत रख पूरे नौ दिन माँ की अराधना में लीन रहते हैं। यहाँ के नवरात्री की सबसे खासबात यह होती है कि यहाँ जगह-जगह पर रामलीला प्रस्तुत की जाती हैं और भव्य मेलों का आयोजन होता है।
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उत्तरप्रदेश और दिल्ली
दशमी वाले दिन रावण के बड़े-बड़े पुतलों का दहन कर लोग एक दूसरे को गले मिल दशहरे की शुभकामनायें देते हैं।
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पश्चिम बंगाल, उड़ीसा,बिहार,झारखण्ड और असम
बंगाल, उड़िसा,बिहार, झारखण्ड और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। यह यहाँ का सबसे महत्पूर्ण त्यौहार है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों में विराजमान करते हैं।
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पश्चिम बंगाल, उड़ीसा,बिहार,झारखण्ड और असम
देश के नामी कलाकारों को बुलवा कर देवी की मूर्तियां तैयार करवाई जाती हैं। इसके साथ अन्य देवी देवताओं की भी कई मूर्तियां बनाई जाती हैं। पंडालों के बाहर भव्य मेलों का आयोजन होता है। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है।
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पश्चिम बंगाल, उड़ीसा,बिहार,झारखण्ड और असम
उसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। अष्टमी के दिन महापूजा और बलि भी दी जाति है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
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पश्चिम बंगाल, उड़ीसा,बिहार,झारखण्ड और असम
प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं।स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं, व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं। इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर लगाकर सिन्दूर के रंग से खेलती हैं।देवी की प्रतिमाओं को बड़े-बड़े ट्रकों में भर कर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की यात्रा भी बड़ी शोभनीय और दर्शनीय होती है।
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तमिल नाडु
अन्य राज्यों की तरह तमिलनाडु और केरल में भी नवरात्री का त्यौहार कुछ अलग तरह से मनाया जाता है। नवरात्री के दौरान यहाँ लोग देवी दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी की पूजा करते हैं।तीन दिन तीन देवियों को समर्पित होता है। शाम के समय लोग एक दूसरे के घर जा त्यौहार की बधाइयाँ दे एक दूसरे को उपहार देते और लेते हैं।
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तमिल नाडु
विवाहित औरतों को चूड़ियां, बिंदी और अन्य साज श्रृंगार के सामान दिए जाते हैं। यहाँ सबसे आकर्षक परंपरा होती है, गोलू की परंपरा। इस परंपरा में गुड़ियों को जिन्हें गोलू कहते हैं,उन्हें सीढ़ियों में सजाया जाता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पूर्वजों से एक दूसरे को मिलती हैं।
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कर्नाटक
कर्नाटक में मैसूर का दशहरा भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का शृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है।
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कर्नाटक
इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं। हाथियों का श्रंगार कर पूरे शहर में भव्य जुलूस निकाला जाता है। इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।
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