पौराणिक काल के राजा महाराजाओं का इतिहास देखें तो आपको रथों के विषय में जानने को मिलेगा, हालांकि वर्तमान में इस तरह के वाहनों का इस्तेमाल नहीं होता पर इनका शाही अंदाज आज भी शादी-ब्याहों में देखा जा सकता है। पौराणिक काल में रथों का प्रयोग सिर्फ राजघरानों के द्वारा होता था, जिसे चलाने वाला व्यक्ति 'सारथी' कहलाया जाता था।
ये रथ खूबसूरत आकार के बने होते थे जो शक्तिशाली और स्वस्थ घोड़ों द्वारा खींचे जाते थे। रथ न सिर्फ वाहन थे बल्कि राजाओं की हैसियत का भी प्रमाण भी देते थे, जितना बड़े साम्राज्य का राजा उतना ही भव्य उनका रथ। अगर आपको महाभारत याद है तो आप रथों के महत्व को भली-भांति समझ सकते है।
पौराणिक काल से मध्यकाल तक पहुंचते-पहुंचते वाहन के रूप में इनका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो गया, आज बस इन्हें इतिहास की किताबों या चंद प्रौराणिक स्थलों में मौजूद चित्रों के माध्यम से देखा सकता है। इसी क्रम में आज हमारे साथ जानिए दक्षिण भारत के महाबलिपुरम में स्थित पंच पांडव रथों के बारे में। जानिए इनका क्या संबंध है पांडवों से।
महाभारत के पांडव रथ ?
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पंच रथ तमिलनाडु के महाबलिपुरम स्थित मोनोलिथिक रथ संरचनाएं हैं। मोनोलिथिक यानी की एक ही पत्थर या चट्टान को काट कर बनाई गईं संरचनाएं। इतिहास से जुड़े साक्ष्य बताते हैं कि इनका निर्माण दक्षिण भारतीय पल्लव राजवंश के दौरान किया गया था। उस समय के पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम और नरसिम्हावर्मन प्रथम के शासनकाल में इन अद्भुत सरंचनाओं को बनाया गया।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन पंच रथों का नाम महाभारत के पांच पांडवों के नाम पर रखा गया। इसलिए इन्हें महाबलिपुरम में पंच पांडव रथ भी कहा जाता है। लेकिन साक्ष्य बताते हैं कि इन रथों के नाम भले ही पांच पांडवों के नाम पर हैं पर इनका संबंध किसी भी प्रकार से महाभारत से नहीं हैं।
चट्टानी रथ
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पंच रथों चलने-फिरने वाले रथ नहीं हैं। ये मोनोलिथिक संरचनाएं हैं जो एक ही विशाल पत्थर को काटकर बनाई हैं। ये पंच किसी वाहन की तरह कम बल्कि मंदिरों की तरह ज्यादा प्रतीत होते हैं। अगर आप इन रथों को बारीकी से देखें तो आपको प्रत्येक की बाहरी दीवारों और शिखर पर जटिल मूर्तियों का जाल नजर आएगा।
पांच रथों में से चार एक ही पंक्ति में खड़े हैं। उत्तर से दक्षिण तक प्रत्येक रथ की ऊंचाई में मामूली सा अंतर नजर आता है। पांच पांडवों के रथों में द्रौपदी के नाम से भी एक रथ मौजूद है, ये रथ छोटा है जिसके अंदर मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित है।
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ऐतिहासिक विश्व धरोहर
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पंच पांडव रथों के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यूनेस्को द्वारा इस स्थान को विश्व धरोहर घोषित कर दिया गया है। इन रथों के नाम हैं धर्मराज राथ, भीम रथ, अर्जुन राथ, नकुल-सहदेव रथ, और द्रौपदी रथ। गौर करने वाली बात है कि इन रथों का संबध किसी भी तरह से महाभारत या उनके किसी भी पात्र से नहीं हैं। इन रथों के सिर्फ नाम पांच पांडवों से मिलते हैं।
इसके अलावा इन रथों के धार्मिक महत्व के विषय में भी पता नहीं चलता। क्योंकि ये अधूरे और असंगत रहे हैं। भले ही इनका संबंध महाभारत से नहीं जुड़ा पर पांडव नाम इस स्थान से जुड़ चुके हैं।
नंदी की मूर्ति
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पंच रथों में अर्जुन रथ के सामने नंदी(बैल) की एक मूर्ति स्थापित है। अमूमन हिन्दू धार्मिक स्थलों में खासकर शिव मंदिर के सामने नंदी की मूर्ति जरूर स्थापित की जाती है, ये एक प्रमाण है जो बताता है कि यहां भोलेनाथ का मंदिर है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि यहां न भगवान शिव की मूर्ति है और नहीं शिवलिंग। श्रंखला में भारी और बड़ा भीम रथ मौजूद है जिसके बगल में धर्मराज रथ है।
शायद रथ की विशालता को देखकर इसका नाम भीम रखा गया था। धर्मराज पांडवों में सबसे बड़े थे इसलिए उनका नाम का रथ श्रंखला में भीम के बाद है। रथों की इस पंक्ति के ठीक विपरीत नकुल-सहदेव का रथ है। इसके सामने एक हाथी की एक बड़ी अधूरी मोनोलिथिक मूर्ति है।
कैसे करें प्रवेश
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पंच पांडव रथ तमिलनाडु के महाबलिपुरम में स्थित हैं, यहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं, यहां का नजदीकी हवाईअड्डा चेन्नई एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप चेंगलपट्टू रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
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