पिछले कई लेखों में हमने आपको केरल के प्राकृतिक और सांस्कृतिक पहलुओं के बारे में कई जानकारियां दीं, यहां की मूल संस्कृति यहां के रहन सहन और यहां की धार्मिक मान्यताओं के बारे में अवगत कराया। इसी कड़ी में आज हम आपको दक्षिण भारत के इस अद्भुत राज्य के एक ऐसे छुपे हुए नगर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका न सिर्फ इतिहास गौरवशाली रहा है बल्कि वर्तमान भी अपनी अलग पहचान के लिए जाना जाता है।
प्रकृति प्रेमियों, इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को जानने वाले सैलानियों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं। आज हम बात करेंगे केरल के 'मारायूर' नगर के विषय में, जानेंगे पर्यटन के लिहाज से यह छोटा मगर खूबसूरत ऐतिहासिक नगर आपके लिए कितना खास है।
चंदन के घने जंगल हैं खास
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केरल का यह खूबसूरत नगर इडुक्की जिले के अंतर्गत आता है। मारायूर राज्य के पहाड़ी स्थल मुन्नार से लगभग 42 किमी की दूरी है। शायद बहुत कम लोग जानते हैं मारायूर केरल का एकमात्र नगर है जहां प्राकृतिक चंदन के जंगल पाएं जाते हैं। वन विभाग के अतर्गत यहां के जंगलों की देखरेख की जाती है, यहां गैर-कानूनी तरीके से चंदन के पेड़ों को काटना पूर्णता वर्जित है, अगर कोई ऐसा करता पकड़ा जाता है तो उसके लिए सजा का भी प्रावधान है। ये जंगल काफी घने हैं जो एक मनमोहक वातावरण बनाने का काम करते हैं।
बता दें कि चंदन की लकड़ी खूशबूदार होती हैं जिनका इस्तेमाल ज्यादातर धार्मिक गतिविधियों में किया जाता है। बाकी पेड़ों की तुलना में यह काफी मंहगा बिकता है जिसे और भी कई तरीके से प्रयोग में लाया जाता है। यह एक ऐसा पेड़े है जिसका विवरण पौराणिक काव्यों में भी मिलता है। अगर आप चाहें तो वन विभाग की अनुमति से यहां के जंगलों की सैर कर सकते हैं। वनस्पति विज्ञान से जुड़े छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए यह जगह काफी खास है।
काफी पुराना इतिहास
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इस छोटे से नगर का संबंध पाषाण युग से बताया जाता है, यानी 10,000 ईसा पूर्व के आसपास का समय। यह वर्तमान केरल का एक पुराना नगर है जिसका प्रमाण यहां मौजूद ऐतिहासिक साक्ष्य देते हैं। आपको यहां भारी संख्या में चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं कई संरचनाएं दिख जाएंगी। इतिहास पर गहराई से नजर डालें तो पता चलता है कि 18वीं शताब्दी के दौरान तमिलनाडु से बहुत से लोग यहां आकर बस गए थे, यह वह समय था जब मदुरै के राजा ने टीपू सुल्तान को बूरी तरह हराया था।
यहां आकर बसे प्रवासियों ने यहां 5 गांवों का निर्माण किया, कंथल्लूर, कीजंतुर, करयूर, मारयूर और कोट्टाकुडी। ये पंच ग्राम अंजु नाडु के नाम से जाने गए जिनका शाब्दिक अर्थ होता है पांच भूमि।
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प्राचीन डॉलमेन
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यहां चट्टानों पर बनाई गईं संरचनाओं का संबंध लौह युग से बताया जाता है। इन संरचनाओं को डॉलमेन कहा जाता है। पत्थरों की बनीं ये संरचनाओं में दफन कक्ष से लेकर और भी कई तरह से भवन शामिल हैं । डॉलमेन अकसर उन छोटे अस्थाई भवनों को कहा जाता है जो जो बड़े शिलाओं का इस्तेमाल कर जिन्हें अर्ध भवन का रूप दिया जाता है। जो दिखने में किसी घर समान (चारों तरह से बड़े पत्थर और ऊपर से पत्थर की छत) ही लहते हैं।
पंबर नदी के किनारे कोविल्कावडू में पुराने शिव मंदिर के आसपास आपको डॉलमेन काफी ज्यादा देखने को मिल जाएंगे। ये प्राचीन डॉलमेन यहां आने वाले ट्रैवलर्स को काफी ज्यादा प्रभावित करने का काम करती हैं। भारत के प्राचीन इतिहास को यह अंग ऐतिहासिक तौर पर काफी ज्यादा मायने रखता है।
यहां के डॉलमेन आपको पाषाण युग से लेकर लौह युग तक के मिलेंगे। बहुत सी संरचनाएं यहां कम ऊंचाई वाली हैं जबकि बाकी काफी ऊंचे बने हुए है। ऐसा माना जाता है कि इन घरौंदों का इस्तेमाल प्राचीन इंसान रहने के लिए किया करता होगा।
आकर्षक रॉक पेंटिंग
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मारायूर के गौरवशाली इतिहास में रॉक पेंटिंग का भी जिक्र आता है, यानी पत्थरों या चट्टानों पर बनाई गईं आकृतियां। अट्टआला, एज़ुथु गुहा (लेखन की गुफ) कोविलकावडू और मनाला ये मारायूर के कुछ खास स्थान हैं जहां आप पत्थरों पर की गई खूबसूरत नक्काशी, चित्रकला को देख सकते हैं। अट्टआला में आप 90 से ज्यादा खूबसूरत रॉक पेंटिंग के नमूने देख सकते हैं।
अट्टआला की ज्यादातर पेंटिंग आकर्षक डिजाइन के रूप में जिनमें जानवरों और फूल-पत्तियों के चित्र ज्यादा मिलेंगे। सैलानी यहां आना बेहद पसंद करते हैं। इसके आलावा बताए गए स्थानों पर भी आप रॉक पेंटिंग के अद्भुत नमूनों को देख सकते हैं।
औषोद्यीय पौधों का गढ़/ वन्य अभयारण्य
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इसके अलावा मारायूर अपने वनस्पति महत्व के लिए भी जाना जाता है। यहां आपको 1000 से भी ज्यादा फूल और औषोद्यीय पौधों की प्रजातियां दिख जाएंगी। खासकर मारायूर अपने औषोद्यी युक्त वनस्पति भंडार के लिए ज्यादा जाना जाता है। इसके अलावा यहां चिन्नार नाम से एक वन्य अभयारण्य भी है जहां आप वन्य जीवन को और भी करीब से देख सकते हैं।
यहां आपको भारी संख्या में जानवरों की सरीसृप प्रजातियां दिख जाएंगी जिसमें मुग्गर मगरमच्छ सबसे खास माना जाता है। इसके अलावा चिन्नार 225 दर्ज पक्षी प्रजातियों का घर भी बताया जाता है। आप एक अच्छा समय मारायूर भ्रमण के दौरान बिता सकते हैं। केरल का यह नगर वाकई अपने अनमोल प्राकृतिक भंडार के लिए जाना जाता है।
कैसे करे प्रवेश
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मारायूर केरल के इडुक्की जिले में स्थित है, यहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा कोच्चि एयरपोर्ट और पिला मेडू एयरपोर्ट (कोयंबटूर) है। रेल मार्ग के लिए आप पलानी रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं जो की तमिलनाडु सीमा में पड़ता है, मारायूर का अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है।