राजस्थान के अजमेर शहर के अंतर्गत तारागढ़ एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अपने प्राचीन किले और दरगाहों के लिए जाना जाता है। राज्य के बाकी स्थलों की भांति इसका भी अपना अलग इतिहास रहा है। यह गढ़ विश्व प्रसिद्ध अजमेर दरगाह घूमने आए पर्यटकों द्वारा ज्यादा देखा जाता है। आप यहां राजस्थानी संस्कृति और मुगल वास्तुकला को करीब से देख सकते हैं। इतिहास और कला में दिलचस्पी रखने वालो के लिए यह स्थान किस खजाने से कम नहीं।
भारतीय इतिहास के कुछ अहम पहलुओं को बारीकी से समझने के लिए आप यहां की यात्रा कर सकते हैं। इस लेख में माध्यम से जानिए तारागढ़ अपने विभिन्न स्थलों के साथ आपको किस प्रकार आनंदित कर सकता है। जानिए यहां और आसपास के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों के बारे में।
तारागढ़ का किला
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तारागढ़ मुख्यत: अपने ऐतिहासिक तारागढ़ फोर्ट के लिए जाना जाता है। यह किला यहां की 800 फीट ऊंची नागपहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी की तलहटी पर अजमेर शहर बसा है, जो अपनी प्रसिद्ध अजमेर-शरीफ-दरगाह के लिए जाना जाता है। इस किल के निर्माण 1354 ईस्वी में कराया गया था।
इस पहाड़ी पर माउटेन ट्रेकिंग का आनंद भी लिया जा सकता है। माना जाता है कि यहां कभी राजपूत और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था। ऐतिहासिक रूप से यह किला काफी ज्यादा मायने रखता है। अगर आप अजमेर आएं तो इस किले का भ्रमण जरूर करें।
अजमेर दरगाह
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चूंकि यह ऐतिहसिक स्थल राजस्थान के प्रसिद्ध शहर अजमेर का हिस्सा है तो आप यहां की विश्व प्रसिद्ध अजमेर-शरीफ-दरगाह की सैर भी कर सकते हैं। यह प्रसिद्ध दरगाह हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की है, जिन्होंने 1192 ईस्वी के दौरान अजमेर में इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार किया था। अजमेर-शरीफ राजस्थान के सबसे मुख्य आकर्षणों में गिनी जाती है, जहां विश्व के कोने-कोने से लोग इस दरगाह में चादर चढ़ाने और मत्था टेकने के लिए आते है।
यह स्थल न सिर्फ मुस्लिमों बल्कि हर धर्म के लोगों द्वारा देखा जाता है। बता दें कि ज्यादातर पर्यटक अजमेर सिर्फ इस दरगाह के लिए ही जाते हैं।
मीरा सैयद हुसैन की दरगाह
हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के अलावा आप यहां मीरा सैयद हुसैन की दरगाह भी देख सकते हैं। मीरा सैयद हुसैन तारागढ़ के सेना कमांडर थे जिन्हें सुल्तान गौरी द्वारा नियुक्त किया गया था। माना जाता है कि इस किले के लिए राजपूतों के साथ हुई लड़ाई में मीरा सैयद हुसैन अपने बाकी सिपाहियों के साथ मारे गए थे। मीरा सैयद हुसैन ख्वाजा गरीब नवाज को बहुत ही ज्यादा मानते थे।
माना जाता है इस लड़ाई को सुन ख्वाजा गरीब नवाज यहां आए थे और उन्होंने नवाज-ए-जनाजा के बाद अपने अनुयायियों के साथ मिलकर मीरा सैयद और अन्य शहीदो को यहां दफनाया था। यह दरगाह एक तरह से मीरा सैयद के लिए श्रद्धांजलि है।
आधे दिन का झोपड़ा
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अतीत से जुड़े स्थलों में आप तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी पर बसे आधे दिन का झोपड़े नामक ऐतिहासिक संरचना को भी देख सकते हैं। ऐतिहासिक रूप से यह स्थल काफी ज्यादा मायने रखता है।
आधे दिन का झोपड़ा एक प्राचीन मस्जिद है, जिसका निर्माण मोहम्मद गौरी ने करवाया था। इस संरचना को बनाने काम 1192 मे शुरु हुआ था और इसे 1199 में बनाकर तैयार कर दिया गया था। इतिहास के बेहतर समझ के लिए आप तारागढ़ यात्रा में इस स्थल को भी शामिल कर सकते हैं।
रूपनगढ़ का किला
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ऐतिहासिक स्थलों में आप यहां किशनगढ़ में स्थित रूपनगढ़ के किले का भ्रमण कर सकते हैं। यहा किला तारागढ़ पहाड़ी के ज्यादा दूर नहीं है। इस किले का निर्माण 1648 ईसवी में करवाया गया था। इस किले का नाम महाराजा रूप सिंह के नाम पर रखा गया था। वर्तमान में इस किले को फूल माला पैलेस नामक होटल के रूप में तब्दील कर दिया गया है।
ऐतिहासिक रूप से यह किला काफी ज्यादा मायने रखता है। इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले इस किले का सैर कर सकते हैं। किशनगढ़ अपने अद्भुत दृश्यों के लिए भी काफी जाना जाता है। ये थे तारागढ़ और उसके आपसास स्थित चुनिंदा खास स्थल।