दक्षिण भारत का केरल राज्य अपने समुद्री तटों और अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए काफी जाना जाता है। यह राज्य विश्व स्तर पर भी बेस्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन का दर्जा पा चुका है। यहां की नदियां, झीलें, बैकवाटर, चमचमाती रेत और क्रिस्टल की तरह साफ समुद्री जल दूर-दराज के सैलानियों को यहां एक बार आने के लिए जरूर मजबूर करते हैं।
इस सब से हटकर केरल दक्षिण भारतीय संस्कृति, परंपराओं और जीवन शैली को जानने का भी मौका प्रदान करता है। हमने पिछले लेखों में केरल के कई खूबसूरत स्थानों से आपको रूबरू कराया था, इसी क्रम में आज हम आपको केरल के किसी अन्य पर्यटन गंतव्य के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके विषय शायद ज्यादा लोग नहीं जानते।
केरल का यह खूबसूरत स्थल राज्य के मलप्पुरम जिले के अंतर्गत आता है, इसका नाम है 'तिरूर'। जानिए इस शहर के मंदिरों और उनसे जुड़ी परंपराओं के बारे में। साथ में जानिए अन्य पर्यटन गंत्वयों के विषय में।
एक संक्षिप्त परिचय
PC- Jaseem Hamza
तिरुर केरल राज्य के मलप्पुरम जिले के अंतर्गत एक आकर्षक स्थल है। यह जिले के बड़े व्यापारिक केंद्रों में गिना जाता है। लगभग 62.34 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला तिरुर मलप्पुरम से 26 किमी और कोझिकोड से 41 किमी की दूरी पर स्थित है। तिरूर मछ्ली और पान के पत्तों का सबसे बड़ा बाजार भी माना जाता है। शिक्षा का स्तर भी बाकी राज्यों की तुलना में कई गुणा बेहतर है। इतिहास पर नजर डालें को पता चलता है कि तिरूर मध्यकाल के दौरान कभी तनूर साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। तनूर साम्राज्य दक्षिण-पश्चिमी भारत का एक तटीय शहर-राज्य था जो हिंद महासागर पर पुर्तगाली वर्चस्व के दौरान काफी प्रबल था।
माना जाता है कि मलयालम भाषा साहित्य के पिता का दर्जा पाने वाले कवि (Thunchaththu Ezhuthachan) इस नगर में रहे थे। आगे जानिए तिरूर के मुख्य पर्यटन गंतव्यों में बारे में जहां आप एक अच्छा समय अपने परिवार और दोस्तों के साथ बितान सकते हैं।
देवता को चढ़ता है जिंदा सांप
तिरुर से 6 किमी दूर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर स्थित है जो पक्षी में गरूड़ देवता को समर्पित है। जानकारी के अनुसार यह मंदिर करीब 1800 वर्ष पुराना है। यहां ज्यादातर वही श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं जिनके परिवार का कोई सदस्य गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो या जिसे सांप ने काट लिया हो। माना जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से सांप के जहर से मुक्ति मिल जाती है।
यहां का हर रविवार विषेश होता है, खासकर 41 दिनों तक चलने वाला मंडलकालम ( 16 नवंबर से 28 दिसंबर)। पौराणिक मान्यता के अनुसार पेरुमथचन मंदिर से मौजूद गरूड़ मूर्ति के वास्तुकार थे।
पेरुमथचन ने इस मंदिर का निर्माण उस समय के तनूर राजा के लिए किया था। इस मंदिर से एक वित्रित्र परंपरा जुड़ी है, माना जाता है कि यहां गरूड़ देवता को जिंदा सांप चढ़ाया जाता है। यहां सांप के जहर से पीड़ित लोग उस सांप को जिंदा लाते हैं जिनके व्यक्ति को काटा होता है। इस दौरान सर्प का गुसैल हो जाता है।
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अलाथियुर हनुमान कवु मंदिर
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अलथियूर केरल के तिरुर में एक छोटा सा नगर है, जो मुख्यत: अलथियुर हनुमान कवु मंदिर के लिए जाना जाता है। भगवान हनुमान का यह मंदिर तिरुर रेलवे स्टेशन से करीब 8 किमी दूरी पर स्थित है। पूरे भारत के हजारों तीर्थयात्री भगवान हनुमान के दर्शन करने के लिए यहां तक का सफर तय करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह वही स्थान है जहां सीता हरण के बाद जहां प्रभु श्रीराम ने माता सीता का वर्णन कर अपनी अंगूठी हनुमान के देकर उन्हें लंका के लिए रवाना किया था।
इसी स्थान से हनुमान ने एक लंबी छलांग लंका जाने के लिए लगाई थी। इस मंदिर का एक खास बात यह भी है कि यहां लक्ष्मण का भी एक अलग मंदिर बना हुआ है। रामायण काल की बहुत सी बातों को जानने के लिए यहां का भ्रमण आप कर सकते हैं।
त्रिप्रांगोड कलाश्रम मूर्ति मंदिर
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तिरूर के पास ऐतिहासिक त्रिप्रांगोड शिव मंदिर भी दर्शन करने लायक प्रसिद्ध जगह है। इस मंदिर को लेकर दिलचस्प पौराणिक कथा जुड़ी है, माना जाता है कभी मार्कंडेयन नाम का कोई युवा शिव भक्त था, जिसपर अपने माता-पिता की देखभाल करने की पूरी जिम्मेदारी थी, लेकिन उसकी मृत्यु यमराज द्वारा बहुत ही जल्द निर्धारित कर ली गई थी। जब यमराज मार्कंडेयन की आत्मा लेने के लिए आए तो वो भगवान विष्णु के पास पहुंचा। तब भगवान विष्णु ने उसे भगवान शिव के पास जाने के लिए कहा।
कहा जाता है कि मार्कंडेयन ने त्रिप्रांगोड में स्थित शिव लिंग को गले से लगाकर प्राथना की। इस घटना के बाद भगवान शिव ने यमराज को मार दिया था। वर्तमान में आज यहां 5 शिवलिंग मौजूद हैं। दूर-दूर से यहां भक्त शिवलिंग के दर्शन के लिए यहां आते हैं।
पक्षी विहार का आनंद
तिरूप में पक्षी विहार का भी एक खास स्थान मौजूद है जहां आप कई खूबसूरत रंग-बिरंगे देशी और प्रवासी पक्षियों को देख सकते हैं। जहां तिरुर-कुट्टाययी सड़क खत्म होती है, यह स्थान पद्दीनजरेकारा अज़ीमुगम ने नाम से जाना जाता है, जहां भारथपुझा और तिरुर नदी एकसाथ मिलकर समुद्र में जा मिलती है। फरवरी से लेकर मई महीने के शुरूआती हफ्तों तक आप यहां हजारों देशी-प्रवासी पक्षियों को देख सकते हैं। यहां नदियों और समुद्र के मिलते हुए दृश्य काफी रमणीय एहसास कराते हैं।
तिरूर के समुद्री तट अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। तिरूर के समुद्र बीच हर तरह के सैलानियों का स्वागत करते हैं। परिवार और दोस्तों के साथ एक क्वालिटी टाइम स्पेंड करने के लिए तिरूर एक आदर्श स्थल माना जाता है। पर्यटन के साथ थोड़ा आध्यात्मिक अनुभव के लिए तिरूर एक आदर्श विकल्प है।
कैसे पहुंच तिरूर
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तिरूर केरल के मलप्पुरम के अंतर्गत आता है। आप यहां तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाई अड्डाकालीकट एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप तिरूर रेलने स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। आप चाहें तो तिरूर सड़क मार्गों के माध्यम से भी पहुंच सकते हैं, तिरूर बेहतर सड़क मार्गों से राज्य से बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।