जम्मू-कश्मीर का हिस्सा लद्दाख रोमांचक पर्यटन के लिए मशहूर है। लद्दाख का नाम सुनते ही हमारे सामने पहाड़ी परिदृश्य, ठंडे रेगिस्तान, ऊंचे पर्वत और बर्फ याद आ जाती है। लेह की राजधानी में आपको कई बाज़ार, दुकानें मिल जाएंगी जिन्हें यहां के स्थानीय लोग ही चलाते हैं।
और रैपलिंग के साथ-साथ और भी कई रोमांचक खेलों का लुत्फ" title="लद्दाख के रोमांचित ट्रिप के बारे में हम सभी जानते हैं। कई लोग पैदल तो कुछ बाइक से लद्दाख जाना पसंद करते हैं। लद्दाख में रोड ट्रिप, ट्रैकिंग, कैंपिंग, रिवर राफ्टिंग और रैपलिंग के साथ-साथ और भी कई रोमांचक खेलों का लुत्फ" loading="lazy" width="100" height="56" />लद्दाख के रोमांचित ट्रिप के बारे में हम सभी जानते हैं। कई लोग पैदल तो कुछ बाइक से लद्दाख जाना पसंद करते हैं। लद्दाख में रोड ट्रिप, ट्रैकिंग, कैंपिंग, रिवर राफ्टिंग और रैपलिंग के साथ-साथ और भी कई रोमांचक खेलों का लुत्फ
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इसी क्रम में आज हम आपको अपने लेख के जरिये आपको लेह से पांच किमी दूर स्थित चंस्पा में स्थित सुंदर शांति स्तूप के बारे में बताने जा रहे हैं। बौद्ध धर्म को समर्पित ये स्तूप पूरी तरह से सफेद है। 1991 में ऊंची पहाड़ी पर निर्मित इस स्तूप से लेह का मनोरम नज़ारा देखने को मिलता है। लेह आने वाले लोग इस स्तूप को जरूर देखने आते हैं। इस जगह से लेह शहर का पूरा दृश्य दिखाई देता है।
शांति स्तूप का निर्माण
शांति स्तूप को बनाने का विचार जापानी भिक्षु निचिदात्सु फुजी का था। वो भारत में बौद्ध धर्म को वापिस लाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने शांति पगौड़ा की स्थापना की शुरुआत यहां से की थी। शांति स्तूप ने लेह को जीवंत बना दिया। शाति स्तूप जापानी और लद्दाख के बौद्ध भिक्षु ग्योम्यो नाकामुरा और कुशोक भाकुला के अधिकृत है।
शांति स्तूप का निर्माण
इस शानदार स्तूप का निर्माण इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान 1983 से 1984 के मध्य किया गया था। इस स्तूप तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग भी बनाया गया था।
स्तूप के बारे में अन्य जानकारी
स्तूप के आधार पर वर्तमान दलाई लामा की तस्वीर लगी हुई है और बौद्ध की कुछ कलाकृतियां बनी हुईं हैं। बौद्ध की मुख्य प्रतिमा धर्म का चक्र अर्थात् धर्मचक्र चलाते हुए बनी हुई है।
स्तूप के बारे में अन्य जानकारी
स्तूप के पहले स्तर पर ही आपको ये देखने को मिलेगा। दूसरे स्तर पर बुद्ध के जन्म, मृत्सु और उनके ध्यान द्वारा शत्रुओं की पराजय को दर्शाया गया है।
स्तूप के बारे में अन्य जानकारी
विश्व में शांति और समृद्धि का प्रसार करने के अलावा ये स्तूप बौद्ध धर्म के 2500 वर्षों का भी प्रतीक है। ये स्तूप जापान और लेह के बीच शांति समझौते का भी प्रतीक है।
स्तूप के बारे में अन्य जानकारी
लेह के मुख्य शहर में स्थित होने के कारण आपको यहां कई दिलचस्प चीज़ें देखने को मिलेंगीं। यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुभव अविस्मरणीय है। रात के समय शांति स्तूप का सौंदर्य रोशनी से जगमगा उठता है।
शांति स्तूप सुबह 5 बजे से रात के 9 बजे तक सप्ताह के सातों दिन पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
कैसे पहुंचे लेह
वायु मार्ग
लेह का एयरपोर्ट, सैन्य हवाई अड्डा है इसलिए आपको यहां कई बार चैकिंग की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। अगर आपके पास ई-टिकट है तो आप उसकी एक कॉपी हाथ में ही रखें। अगर आपके पास ये नहीं हुई तो आपको लेह में प्रवेश से रोका जा सकता है। ये एयरपोर्ट चंडीगढ़, नई दिल्ली और श्रीनगर से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग
लेह से सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट और चंडीगढ़ है। हालांकि, ये दोनों ही जगहें लेह से 800 किमी की दूरी पर हैं इसलिए आपको यहां से लेह पहुंचने में 3 दिन का समय लगता है। लेह जाने के लिए बहुत कम ही इस रास्ते का प्रयोग किया जाता है।
सड़क मार्ग
रोमांचित ट्रिप पर जाना चाहते हैं तो लेह के लिए सड़क मार्ग ही चुनें। आमतौर पर मनाली से 473 किमी दूर लेह तक पहुंचने के लिए पर्यटक बाइक या कार का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग श्रीनगर से भी आते हैं जोकि यहां से 434 किमी दूर है।
सार्वजनिक बसें भी इस शहर में मिल जांएगीं जोकि काफी महंगी भी नहीं हैं। आप चाहें तो किराए पर टैक्सी भी ले सकते हैं।