आज का दिन मां दुर्गा के एक अन्य रूप स्कंदमाता को समर्पित है। इन्हें स्कन्द माता इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि ये स्कन्द भगवान या भगवान कार्तिक की मां हैं। ज्ञात हो कि मां दुर्गा के अन्य रूपों की ही तरह मां का ये रूप भी बेहद निर्मल, मोहक और करुणामयी है। कहा जाता है कि व्यक्ति ने चाहे जितने भी पाप किए हों और वो यदि मां के पास आये और क्षमा याचना करे तो मां उसे माफ़ कर देती हैं।
कश्मीर से लेके कन्याकुमारी तक जानें कहां कहां है 'मां दुर्गा' के अलग अलग मंदिर
गौरतलब है कि स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।
वो गोपुरम जिनकी ऊंचाइयां आपको गहराई में जाने पर मजबूर करेंगी
तनोट देवी
राजस्थान के जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान की सरहद पर मौजूद तनोट देवी हमारे देश की सरहद के साथ बीएसफ के सैनिकों की रक्षा करती आ रही है। बॉर्डर में स्थित इस मंदिर से तो पाकिस्तानी फौज भी डरती है। मातेश्वरी तनोट माँ को पाकिस्थान बलूचिस्तान में पड़ने वाले हिंगलाज माँ के मंदिर का ही एक रूप कहा हैं ।भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि.सं. 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित कि थी । इसी बीच भाटी तथा जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी पूजते आ रहे है ।PC: Suresh Godara
यह मंदिर 1200 साल पुराना
यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। वैसे तो यह मंदिर सदैव ही आस्था का केंद्र रहा है पर 1965 कि भारत - पाकिस्तान लड़ाई के बाद यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गया।
3000 हजार बम गिराए थे
पाकिस्तानी सेना ने 1965 कि लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम में से एक भी बम नहीं फटा। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तो के दर्शन के लिए रखे हुए है।
जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर
जैसलमेर के थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित सिद्ध तनोट राय माता मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई अजीबो गरीब यादें जुड़ी हुई हैं। राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता है कि युद्ध के दौरान तनोट राय माता ने भारतीय सैनिकों की मदद की इसके चलते ही पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा।
दूर से आते है लोग दर्शन करने
हर साल दूर दूर से आते है लोग दर्शन करने तनोट माता को आवड माता के नाम से भी जाना जाता है तथा यह हिंगलाज माता का ही एक रूप है। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
बीएसएफ के जवान करते हैं मंदिर की देख-रेख
लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है। इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों द्वारा अब मंदिर की पूरी देख-रेख की जाती है। मंदिर की सफाई से लेकर पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रही है।