आज हमारी इस नवरात्रि सीरीज में हम आपको अवगत कराने जा रहे हैं हिमाचल के कांगड़ा में स्थित ज्वालामुखी मंदिर के बारे में।
माता सती की जीभ गिरी थित
ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है, जो कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है। ये मंदिर हिन्दू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। जिनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस जगह का एक अन्य आकर्षण ताम्बे का पाइप भी है जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अलग अग्नि की अलग अलग 6 लपटें हैं जो अलग अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली उनपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्य बासनी , महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये मंदिर सती के कारण बना था बताया जाता है की देवी सती की जीभ यहाँ गिरी थी।PC:Pdogra2011
अनोखा है मंदिर
यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।PC: Mani kopalle
क्यों जलती रहती है ज्वाला माता में हमेशा ज्वाला :
एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में गोरखनाथ माँ के अनन्य भक्त थे जो माँ के दिल से सेवा करते थे। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माँ ने कहे अनुसार आग जलाकर पानी गर्म किया और गोरखनाथ का इंतज़ार करने लगी पर गोरखनाथ अभी तक लौट कर नहीं आये।माँ आज भी ज्वाला जलाकर अपने भक्त का इन्तजार कर रही है। ऐसा माना जाता है जब कलियुग ख़त्म होकर फिर से सतयुग आएगा तब गोरखनाथ लौटकर माँ के पास आयेंगे। तब तक यह अग्नी इसी तरह जलती रहेगी।इस अग्नी को ना ही घी और ना ही तैल की जरुरत होती है ।
चमत्कारी गोरख डिब्बी
ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। यह गोरखनाथ का मंदिर भी कहलाता है। मंदिर परिसर के पास ही एक जगह 'गोरख डिब्बी' है। देखने पर लगता है इस कुण्ड में गर्म पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।
नगिनी माता-रघुनाथ जी का मंदिर
ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है।
अकबर ने आजमाई थी माता की शक्ति
बताया जाता है कि मुगल काल में अकबर को जब इस मंदिर के बारे में पता चला तो उसने देवी शक्ति को आजमाने की कोशिश की। अकबर ने पहले यहां मुख्य ज्योति पर लोहे के तवे चढ़वा दिये, ताकि ज्योति बंद होकर बुझ जाये, लेकिन ज्योति तवे को फाड़ कर बाहर निकल गई। आज भी इस कहानी का माता के भजनों में उल्लेख मिलता है। उसके बाद अकबर ने यहां जंगल से नहर के माध्यम से पानी लाकर ज्योति को बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा।
नंगे पांव मां के दरबार पहुंचा अकबर
बताया जाता है कि,मां की शक्ति के आगे बादशाह अकबर के सभी उपाय असफल हो जाने के बाद उसे देवी की दिव्य शक्तियों का अहसास हुआ। इसके बाद वह खुद नंगे पांव आगरा से कांगड़ा स्थित मां के दरबार पहुंचा जहां उसने अपनी श्रद्धा का प्रदर्शन करते हुए मंदिर में सवा मन भारी सोने का छत्र चढ़ाया। लेकिन मां ने उस छत्र को अस्वीकार कर दिया था..जिसके बाद छत्र सोने की धातु से एक अलग ही धातु में तब्दील हो गया..जिसका पता वैज्ञानिक तक नहीं लगा सके...
कैसे पहुंचे मंदिर
वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहा से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग
रेल मार्ग से जाने वाले यात्रि पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मरांदा होते हुए पालमपुर आ सकते है। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरो से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। यात्री अपने निजी वाहनो व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहा तक पहुंच सकते है। दिल्ली से ज्वालाजी के लिए दिल्ली परिवहन निगम की सीधी बस सुविधा भी उपलब्ध है।PC:Nswn03