इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है और इनके दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। सिंह पर सवार दुष्टों के संहार के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।
शारदीय नवरात्र 2017: जहां माता की मर्जी के बिना नहीं होते किसी को दर्शन
जैसा कि हम आपको बता चुके हैं हमारी ये पूरी सीरीज मां दुर्गा और नवरात्रि को समर्पित है तो आज इसी क्रम में हम आपको अवगत कराएंगे नैना देवी मंदिर से।
नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। आपको बता दें कि नैनी देवी मंदिर का शुमार प्रमुख शक्ति पीठों के रूप में भी होता है। ज्ञात हो कि 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
इस मंदिर में सती के शक्ति रूप की पूजा होती है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर जब कैलाश पर्वत जा रहे थे तब इसी रास्ते में देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीलिए इस जगह पर इन मंदिर की स्थापना की गई थी।
शारदीय नवरात्री स्पेशल:सैर करें दिल्ली के पांच प्रसिद्ध दुर्गा मन्दिरों की
गिरे थे मां सती के नयन
नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है। मान्यता है कि यहां देवी के नयनों की अश्रुधार से एक ताल का निर्माण हुआ। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रुप में होती है। आपको बता दें कि आज इसी ताल को नैनी झील के नाम से जाना जाता है, और हर साल लाखों पर्यटक यहां घूमने आते हैं।
इस मंदिर की ख़ास बात ये है कि यहाँ मुख्य देवी नैना देवी की प्रतिमा के साथ ही भगवान श्री गणेश और काली माता की मूर्तियाँ भी लगाई गयी हैं। साथ ही पीपल का एक विशाल वृक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित है जिसके पीछे भी कई मान्यताएं हैं।श्रावण अष्टमी, चैत्र नवरात्र और आश्विन नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है।
कैसे जाएँ
मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 21 पर स्थित है।यहां से नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है।आनंदपुर साहिब और कीरतपुर साहिब से यहां के लिए टैक्सियां किराए पर मिल जाती हैं।
मरने से पहले भारत की इन खूबसूरत हिलस्टेशन की सैर करना बिल्कुल भी ना भूले
चंडीगढ़ से मंदिर की दूरी करीब 100 किमी है। कीरतपुर साहिब से मंदिर की दूरी 30 किमी है, जिनमें से 18 किमी पहाड़ी रास्ता है। दूसरा रास्ता आनंदपुर साहिब से है, जिससे मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है, जिसमें 8 किलोमीटर पहाड़ी रास्ता है।