भगवान और भक्त का रिश्ता बहुत पुराना है, जहां हमेशा से ही भक्तों का उद्देश्य अपने भगवान को प्रसन्न करना रहा है। अगर वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों का अध्यनन करें तो मिलता है कि हमेशा से ही अलग अलग भक्तों ने अपने अपने आराध्य को पाने के लिए कुछ न कुछ ऐसा अवश्य किया है जिसके चलते आज उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज कर लिया गया है। अपनी इस महाशिवरात्रि सीरीज में आज हम आपको अवगत कराने जा रहे हैं भगवान और भक्त की एक ऐसी ही दास्तान से जहां भक्त ने अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए अपनी आँखें तक निकाल के अपने भगवान के चरणों में डाल दी और भगवान ने खुश होकर अपने भक्त को मोक्ष की प्राप्ति करवा दी। महाशिवरात्रि स्पेशल : केदारनाथ, जहां अपने पापों से मुक्त हुए थे पांडव
जी हां हम बात करने जा रहे हैं आंध्र प्रदेश के कालाहस्ती मंदिर के बारे में। कालाहस्ती मंदिर, आंध्र प्रदेश के श्रीकालाहस्ती शहर में स्थित है। यह भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यह मंदिर तिरुपति से 36 किलोमीटर की दूरी पर है और यह प्रसिद्ध वायु लिंग का स्थल है जो पांच तत्वों में से एक का प्रतीक है, यह मंदिर पंचमहाभूत में से एक तत्व पवन या वायु से जुड़ा है। इस मंदिर में स्थापित लिंग भगवान शिव का एक रूप माना जाता है और कालाहस्तेश्वर के रूप में पूजा जाता है।
श्रीकालाहस्ती आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है। ये तीर्थ नदी के तट से पर्वत की तलहटी तक फैला हुआ है और लगभग 2000 वर्षों से इसे दक्षिण कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है।
यहां आपको मंदिर केपीछे की तरफ में तिरुमलय की सुन्दर पहाड़ियों के दर्शन होंगे , और मंदिर का शिखर विमान दक्षिण भारतीय शैली का सफ़ेद रंग में बना है। इस मंदिर के तीन विशाल गोपुरम हैं जो स्थापत्य की दृष्टि से अनुपम हैं। मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप है, जो अपने आप में अनोखा है।
मान्यता अनुसार इस स्थान का नाम तीन पशुओं - श्री यानी मकड़ी, काल यानी सर्प तथा हस्ती यानी हाथी के नाम पर किया गया है। ये तीनों ही यहां शिव की आराधना करके मुक्त हुए थे। एक जनुश्रुति के अनुसार मकड़ी ने शिवलिंग पर तपस्या करते हुए जाल बनाया था, और सांप ने लिंग से लिपटकर आराधना की और हाथी ने शिवलिंग को जल से स्नान करवाया था।
यहाँ पर इन तीनों पशुओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। श्रीकालहस्ती का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार एक बार इस स्थान पर अर्जुन ने प्रभु कालहस्तीवर का दर्शन किया था। तत्पश्चात पर्वत के शीर्ष पर भारद्वाज मुनि के भी दर्शन किए थे।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस मंदिर में भक्त कणप्पा ने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान को अपनी आंखें भेंट कर दी, जो भगवान ने अपने भक्त की भक्ति को परखने के लिए मांगी थी। फिर भगवान उनके सामने प्रकट हुए और अपने भक्त को मोक्ष प्रदान किया। इस मंदिर को दो भागों में निर्माण किया गया है, मंदिर के भीतरी भाग को 5 वीं सदी में बनाया गया था, और बाहरी हिस्से को 12 वीं सदी में बनाया गया था।
मंदिर के बाहरी भाग को चोला राजाओं द्वारा बनाया गया था और मंदिर की बाहरी वास्तुकला चोल राजाओं की पसंदीदा शैली के अनुरूप है। इस मंदिर के दर्शन केवल भगवान शिव के भक्त ही नहीं करते, बल्कि वे लोग भी आते हैं जो विशेष पूजा द्वारा अपनी कुंड़ली में से राहु, केतु के दोषों को कम करना चाहते हैं। तिरुपति मंदिर के दर्शन करने आए भक्त कालाहस्ती के कालाहस्ती मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते।