भारत का पूर्वोत्तर भाग हमेशा से ही देश-विदेश के सैलानियों के मध्य मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां प्राकृतिक संपदा के साथ-साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाले स्थानों की भी अधिकता है। आज इस विशेष लेख में हम बात करेंगे मणिपुर स्थित श्री गोविंदजी मंदिर के बार में, जो न सिर्फ हिन्दू आस्था के लिए जाना जाता है बल्कि मंदिर की सरंचना और वास्तुकला बहुत हद तक पर्यटकों को प्रभावित करने का काम करती हैं।
पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर स्थित श्री गोविंदजी मंदिर राजधानी शहर इम्फाल का सबसे बड़ा हिन्दू वैष्णव मंदिर है। हिन्दू आस्था का मुख्य केंद्र यह खूबसूरत मंदिर तत्कालीन मणिपुर साम्राज्य के पूर्व शासकों के महल के पास स्थित है।
यह मंदिर न सिर्फ अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है बल्कि अपनी आंतरिक सरंचना और उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए भी काफी ज्यादा विख्यात है। आइए इस खास लेख में जानते हैं धार्मिक पर्यटन के लिहाज से स्थान आपके लिए कितना खास है।
गोविंदजी मंदिर की खास बातें
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गोविंदजी मंदिर धार्मिक वातावरण के बीच एक खबसूरत संरचना है, जो यहां आने वाले पर्यटकों को बहुत हद तक प्रभावित करती है। इस भव्य मंदिर के दो सोने चढ़ी गुंबद, एक बड़ा मंडप और सभा हॉल के साथ डिजाइन किया गया है। गर्भगृह के केंद्रीय कक्ष में मंदिर के मुख्य देवता गोविंदजी विराजमान हैं जिन्हे भगवान कृष्ण और राधा का अवतार माना जाता है। इसके अलावा मंदिर में अन्य देवताओं की भी मूर्तियां स्थापित हैं।
गर्भगृह के दोनों तरफ, मुख्य देवता के दोनों तरफ बलभद्र और कृष्णा की छवि मौजूद हैं, इसके अलावा दूसरी तरफ जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की भी छवि लगी हुई हैं। इस मंदिर का मूल स्वरूप 1846 में महाराजा नारा सिंह के शासनकाल के दौरान बनाया गया था और 1876 में महाराजा चंद्रकृष्ण द्वारा इसेमकिया गया था।
संक्षिप्त इतिहास
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इस भव्य मंदिर को बनाने का श्रेय मणिपुर साम्राज्य के महाराजा नारा सिंह को जाता है जिन्होंने 16 जनवरी 1846 में मंदिर को पूरी तरह बनवाकर तैयार करवा दिया था। चूंकि गोविंदजी महाराजा नारा सिंह के कुल देवता थे इसलिए उन्होंने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। लेकिन इसकी मूल सरंचना 1968 में आए भूंकप की चपेट में आकर बहुत हद तक बर्बाद हो गई थी। जिसके बाद इस मंदिर का महाराजा चंद्रकृष्ण के शासनकाल में पुननिर्माण (1876) करवाया गया। हालांकि 1891 के एंग्लो मणिपुर युद्ध के दौरान मंदिर की मूर्तियों को कोंग्मा ले स्थानांतरित कर दिया गया था ।
1908 में महाराजा चर्चेंद्र सिंह ने अपनी नए महल में प्रवेश के साथ ही मूर्तियों को वर्तमान मंदिर में स्थापित करवा दिया था। ऐसा माना जाता है कि महाराजा जय सिंह जो भगवान कृष्ण के प्रबल भक्त थे उन्हें भगवान के लिए मंदिर बनवाने का आदेश ईश्वर की तरफ से प्राप्त हुआ था। डिसके बाद उन्होंने महल के अंदर ही मंदिर का निर्माण करवाया।
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मुख्य मंदिर
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मुख्य मंदिर एक शाही निवास की तरह उच्च मंच पर एक वर्ग आकार की संरचना पर बनाया गया है। गर्भगृह प्रदक्षिणा पथ से घिरा हआ है। पवित्र स्थान दो छोटी दीवारों के साथ विभाजित हैं। बाहरी कक्ष और पोर्च को आर्केड सिस्टम के तहत विशाल स्तंभों के साथ बनाया गया है। रेलिंग के चार कोनों में "सलास" नामक छोटे मंदिरों का निर्माण किया जाता है। पवित्र स्थान के ऊपर दीवारें छत तक जाकर गुंबदों का रूप लेती हैं। प्रत्येक गुंबद पर कलश शीर्ष पर है।
कलश के ऊपर एक सफेद झंडा फहराया गया है। दो गुंबदों की बाहरी सतह सोने के की परत चढ़ाई गई है। मंदिर प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर के निर्माण में ईंट और मोर्टार का इस्तेमाल किया गया है। राधा के साथ गोविंदजी की पवित्र छवियां केंद्रीय कक्ष में मौजूद हैं।
पूजा अनुष्ठान
मंदिर में सुबह और शाम दैनिक पूजा की जाती है। देवता की पूजा करने वालो को अत्यधिक अनुशासित ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है। मंदिर के दरवाजे पास में बने घंटा टावर की ध्वनि के साथ खुलते हैं जिसकी आवाज दूर-दूर तक जाती है। पवित्र स्थान में जहां मुख्य देवता विरामजाम हैं वहां पर्दा लगा हुआ है। पूजा-अनुष्ठान के दौरान इस पर्दे को खोला जाता जिसके बाद मुख्य छवियां प्रकट होती हैं।
देव दर्शन के लिए यहां भक्तो की लंबी कतार लगती है, पूजा करने के लिए आए पुरुषों को केवल एक सफेद शर्ट या कुर्ता और एक हल्के रंग की धोती पहननी पड़ती हैं। दूसरी ओर महिलाओं को सलवार कमीज या साड़ी पहननी पड़ती है। कुछ इस अनुशासन के साथ यहां पूजा अनुष्ठान संपन्न किया जाता है।
कैसे करें प्रवेश
गोविंद जी का यह अद्भुत मंदिर मणिपुर के राजधानी शहर इम्फाल में हैं जहां आप आसानी से तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा इम्फाल एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप दाओतुहाजा (Daotuhaja) रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
अगर आप चाहें ते सड़क मार्गों से भी यहां तक का सफर तय कर सकते हैं। इम्फाल बेहतर सड़क मार्गों से पूर्वोत्तर के बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।