क्या आपने कभी नीले समुद्र में तैरता आकर्षक किला देखा है? महाराष्ट्र का सिंधुदुर्ग किला एक ऐसा ही किला है जो छत्रपति शिवाजी द्वारा बनवाये गए कई किलों में से एक है। यह किला प्राचीन काल के वास्तुकला का एक सुन्दर उदहारण है।
हम सब को किसी न किसी चीज़ का शौक होता है, चाहे वह सिनेमा हो या घूमना, चाहे वह संगीत हो या खेलों का, बहुत सारे अलग-अलग शौक होते हैं। पर क्या आपको पता है, छत्रपति शिवाजी को किलों का शौक था। वह किलों के शौक के लिए भी जाने जाते थे और अपनी मृत्यु तक वे लगभग 370 किलों के मालिक भी थे।
सिंधुदुर्ग किला
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सिंधुदुर्ग किला महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर के कोंकण क्षेत्र में निर्मित है, जो दक्षिण मुम्बई से लगभग 450 किलोमीटर दूर है। यह किला मालवन तट के चट्टानी द्वीप पर स्थापित है, जहाँ नौका की सवारी द्वारा ही पहुंच जा सकता है।
सिंधुदुर्ग जिले का नाम सिंधुदुर्ग किले के नाम पर ही पड़ा जिसका मतलब है समुद्र का किला। सिंधुदुर्ग में लगभग 37 किले हैं, जो महाराष्ट्र में एक ही जगह स्थित सबसे ज़्यादा किलों की संख्या है। इसके साथ-साथ यहाँ हर तरह के किले भी हैं जैसे, जलदुर्ग, भुईकोट और गिरी।
सिंधुदुर्ग किला
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सिंधुदुर्ग किले का इतिहास और वास्तुकला
सिंधुदुर्ग किला एक छोटे से टापू में स्थापित है जो चारों तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है। यह उस समय मराठाओं का मुख्यालय हुआ करता था, जहाँ वे युद्ध के तैयारी करते थे और इसके साथ ही यह किला उनका सुरक्षा गृह भी हुआ करता था। छत्रपति शिवाजी द्वारा बनवाया गया यह किला लगभग 3 सालों में बन कर तैयार हुआ जिसमें लगभग 100 वास्तुकारों जो पुर्तगाल से थे और 3000 मज़दूरों की मेहनत लगी। यह किला 48 एकड़ की ज़मीन पर मजबूती से खड़ा है जो 12 फ़ीट मोटा व 29 फ़ीट ऊँचा और 2 मील तक फैला हुआ है। किले की नींव और इसको मजबूती से बनाने में लगभग 4000 लोहे के टीलों का इस्तेमाल किया गया।
समुद्र में तैरता सिंधुदुर्ग किला
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सिंधुदुर्ग किले की विशेषताएं
1. शाखा वाले नारियल के पेड़
जी हाँ, इस किले में शाखा वाले नारियल के पेड़ हैं जिनमें फल भी होते हैं। आपको इस दुनिया में शाखा वाले नारियल के पेड़ कहीं भी देखने को नहीं मिलेंगे, पर यहाँ मिलेंगे। जी हाँ इस जगह की यह भी एक खास बात है।
2. किले में स्थित कुएं
किले में 3 सुन्दर जलाशय हैं जो कभी नहीं सूखते यहाँ तक की गर्मी के मौसम में भी नहीं जब आसपास के गांव के जलाशय पूरी तरह से सूख जाते हैं।
सिंधुदुर्ग किले का प्रवेशद्वार
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3. 16वीं शताब्दी में पानी के नीचे का मार्ग
पानी के नीचे के मार्ग अब भी एक विस्मय वाली बात है, पर शिवाजी के शासन काल 16 वीं शताब्दी में भी इसका निर्माण उस समय की कार्यकुशलता को बखूबी दर्शाता है। यह मार्ग किले के मंदिर में स्थापित है जो एक जलाशय की तरह प्रतीत होता है। यह मार्ग किले के नीचे 3 किलोमीटर तक जाता है और समुद्र में 12 किलोमीटर नीचे तक।
4. इसका छुपा हुआ प्रवेश द्वार
अगर आप यहाँ पहली बार आ रहे हैं, मतलब कि आप अभी इस जगह से अनजान हैं तो आपको शायद ही यहाँ का 'दिल्ली दरवाज़ा' दिखे। अगर कोई नया व्यक्ति इस जगह पर नाव की सवारी कर जाता है जो वायु मार्ग के अलावा यहाँ तक पहुँचने का इकलौता उपाय है, तो वह किले के चट्टानों से बहुत ज़ोर से ज़रूर टकराएगा जो आसानी से नहीं दिखते। जो इस किले के परिसर से परिचित हैं वे ही आराम से इसके प्रवेश द्वार से प्रवेश करने में सफल होते हैं। यह यहाँ बहुत दिमाग और हिम्मत का खेल है।
सिंधुदुर्ग किले का मुख्य गुप्त प्रवेशद्वार
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किले में शानदार और यूनिक वास्तुकला के साथ-साथ यहाँ कई मंदिर भी स्थापित हैं जो इस किले को बाकि किलों से अलग बनाते हैं। ये मंदिर देवी भवानी, हनुमान जी और जरिमारी को समर्पित हैं। इन मंदिरों के साथ-साथ यहाँ पूरी दुनिया का अपने में ही एक अलग खास तरह का प्रसिद्ध मंदिर भी है जो भगवान शिव जी को समर्पित है। यहाँ भगवान शिवजी के हस्त चिन्ह और पद चिन्ह भी हैं जो किले के एक पत्थर की पटिया पर जड़े हुए हैं।
पर्यटक यहाँ अंडर वॉटर खेलों के भी मज़े ले सकते हैं। सिंधुदुर्ग हर आयामों से बिना कोई शक के एक अनूठा और अद्वितीय किला है। किले की ये सारी विशेषताएं आपके सिंधुदुर्ग किले की यात्रा को यादगार बनाती हैं।
किले के दिवार की विस्तारित वास्तुकला
Image Courtesy: S. Ballal
सिंधुदुर्ग किला कैसे पहुंचें?
सिंधुदुर्ग जिले का बस स्टैंड महाराष्ट्र के अन्य प्रमुख शहरों से आसानी से जुड़ा हुआ है, जहाँ पहुँच कर आपको सीधे मालवन जेटी के लिए बस मिल जाएगी।
रहने की सुविधा
जैसा की सिंधदुर्ग पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण का केंद्र है, इसलिए मालवन और उसके आसपास कई होटलों की सुविधा भी उपलब्ध हैं।
प्रवेश शुल्क और समय:
आप इस किले की यात्रा रोज़ सुबह 10 बजे से शाम के 5:30 बजे तक कर सकते हैं। भारतीय सैलानियों के लिए प्रवेश शुल्क 50 रूपए और विदेशी सैलानियों के लिए प्रवेश शुल्क 200 रूपए है।
अपने महत्वपूर्ण सुझाव व अनुभव नीचे व्यक्त करें।
Read in English: Sindhudurg fort in Maharashtra- A place for History, Tourism and Sightseeing
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