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दशहरा उत्सव: भारत में माँ दुर्गा के 16 खास और अद्वितीय मंदिर!

यूँ तो भारत में कई देवी-देवताओं के मंदिर प्रसिद्द हैं। खासकर कि किसी निजी श्रद्धा और विश्वास के लिए हर मंदिरों की उनके अपने-अपने भक्तों में अलग ही मान्यता है। इन्हीं मंदिरों में शामिल हैं देवियों के मंदिर जो माँ दुर्गा के ही अलग-अलग रूप कहलाते हैं। पूरे देश में दुर्गा माँ को समर्पित असंख्य मंदिर स्थापित हैं और हर मंदिर अपने कोई न कोई अलग विशेषताओं की वजह से लोगों में प्रसिद्द है,कोई मंदिर में स्थापित देवी माँ की दैव्य मूर्ति के लिए तो कोई मंदिर के आकर्षक वास्तुशैली के लिए।

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भारत में माँ दुर्गा को मानने वाले भक्तों की संख्या असंख्य है। बड़ी धूम-धाम से घर-घर में माँ के नवरात्रों की ज्योत जलाई जाती है और माँ का पाटा सजाया जाता है। इन दिनों माँ के मुख्य मंदिरो में माँ को आलोकित श्रृंगार सजाया जाता है जिसके दर्शन करने के लिए भक्तों की बड़ी-बड़ी लाइन मंदिरों के बाहर लगी रहती है।

आइये चलिए, नवरात्री के इसी शुभ अवसर पर हम आपको लिए चलते हैं भारत के ऐसे ही कुछ प्रसिद्द और अद्वितीय दुर्गा मंदिरों की झलकियां दिखाने जो अपने चमत्कारों व विभिन्न आकर्षणों के लिए भक्तगणों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय हैं।

वैष्णो देवी मंदिर

वैष्णो देवी मंदिर

जम्मू से 60 किलोमीटर उत्तर में, 5000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह देवी माँ का मंदिर दुर्गा माँ की सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर ऊंचाई में स्थित एक गुफ़ा में स्थापित है जिसमें तीन प्रमुख देवियों, काली माँ, सरस्वती माँ और लक्ष्मी माँ की पूजा की जाती है। कथानुसार भगवान विष्णु की परम भक्त वैष्णो देवी एक तांत्रिक के डर से भाग कर इस गुफा के अंदर आके छुप गई जहाँ आकर उन्होंने माँ काली का रूप लिया और उसके गले को उसके धड़ से अलग कर उसका वध किया। उस तांत्रिक का सर उसके सर से अलग होकर जहाँ गिरा वहीँ पर आज भैरों बाबा का मंदिर स्थापित है।

Image Courtesy:Raju hardoi

चामुंडा देवी मंदिर

चामुंडा देवी मंदिर

पालमपुर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर, बानेर नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में माँ दुर्गा का सबसे प्रचंड रूप विराजमान है। इस अद्वितीय मंदिर में देवी माँ को पूरे लाल कपड़ों से सजाया गया है। देवी के दूसरे तरफ हनुमानजी और भैरों बाबा की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

Image Courtesy:Ashish3724

ज्वालाजी मंदिर

ज्वालाजी मंदिर

हिमाचलप्रदेश में काँगड़ा घाटी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर ज्वालामुखी माँ को समर्पित है। मंदिर में प्राकृतिक आग की लपटें जलती रहती हैं, जिनको यहाँ पूजा जाता है। यहाँ ये 9 आग की लपटें हैं जिन्हें माँ दुर्गा के नौ अवतार के रूप में माना जाता है। ये आग की लपटें मंदिर में स्थापित एक पत्थर से उठती हैं और बिना किसी ईंधन के मदद के जलती रहती हैं।

कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब दानव प्रजाति हिमालय पर्वत के नाश की योजना बना रहे थे तब भगवान विष्णु ने आग की विशाल लपटों को पैदा किया जिनमें से आदिशक्ति देवी का जन्म हुआ और इन्होंने ही उन दानवों का सर्वनाश किया।

Image Courtesy:Nswn03

कालका देवी मंदिर

कालका देवी मंदिर

दिल्ली में नेहरू प्लेस के पास ही और लोटस टेम्पल के पहले ही स्थापित कालका देवी का मंदिर दिल्ली के सबसे प्रसिद्द मंदिरों में से एक है। यह मंदिर काफ़ी पुराना है, लगभग 1764 ईसवीं का। यहाँ स्थित काली मंदिर का निर्माण लगभग 300 साल पहले बनवाया गया था। कथाओं के अनुसार यहाँ पांडवों ने भी माँ की पूजा की थी। इस मंदिर की खासियत है, यहाँ होने वाली शाम की खास तांत्रिक आरती।

Image Courtesy:Kalkama

मनसा देवी मंदिर

मनसा देवी मंदिर

यह मंदिर हरिद्वार के बिलवा पर्वत पर स्थापित है जो शिवालिक पहाड़ियों का हिस्सा है। इसे बिलवा तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि माँ मनसा की उत्पत्ति ऋषि कश्यप के दिमाग से हुई थी। माँ मनसा, जो साँपों के देवता वासुकि की बहन हैं, सारी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली देवी कहलाती हैं।

इस तीर्थ स्थली में मंदिर के परिसर में एक पेड़ स्थित है, जिसमें भक्तगण पवित्र धागे को बाँध अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मन्नत मांगते हैं और जब उनकी वो इच्छा पूरी हो जाती है तो उन्हें यहाँ फिर से आकर उस धागे को पेड़ से खोलना होता है।

Image Courtesy:Ekabhishek

दुर्गा मंदिर

दुर्गा मंदिर

कहा जाता है कि वाराणसी के नज़दीक ही स्थित 18 वीं सदी पुराने इस मंदिर का निर्माण एक बंगाली रानी द्वारा कराया गया था। मंदिर का बहु स्तरीय शिखर नागर के वास्तुकला शैली की याद दिलाता है। यह मंदिर एक विशाल आयताकार टैंक में स्थापित है। कहा जाता है कि यहाँ स्थित देवी माँ यहाँ के निवासियों की रक्षा हर बुरे संकट और बलाओं से करती है। यहाँ के लोगों के अनुसार यहाँ स्थापित देवी माँ की मूर्ति किसी के द्वारा स्थापित नहीं की गई थी, यह प्राकृतिक रूप से यहाँ विराजमान है।

Image Courtesy:Shishir KS

देवी पतन मंदिर

देवी पतन मंदिर

यह मंदिर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया जिसकी मरम्मत राजा सुहेलदेव द्वारा करवाई गई। नवरात्री के शुभ अवसर पर मंदिर के सामने भव्य मेले के आयोजन किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस पर्व के दौरान नेपाल से पीर रतन नाथ की देवी को यहाँ लाया जाता है और दोनों की साथ में पूजा की जाती है।

Image Courtesy:Shivams707

चीनी काली मंदिर

चीनी काली मंदिर

कोलकाता के टांगरा में स्थापित है साठ साल पुराना चीनी काली मंदिर। काली पूजा के अवसर पर इस मंदिर के दर्शन के लिए वहां रहने वाले स्थानीय चीनी भक्त भी माँ के दर्शन को आते हैं। उनमें से ज़्यादातर बुद्ध या ईसाई धर्म के होते हैं। मंदिर में माँ की पूजा एक ब्राह्मण पंडित द्वारा की जाती है। दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर में पेड़ के नीचे एक काले पत्थर को सिन्दूर लगा कर माँ की पूजा प्रारम्भ हुई थी। प्रसाद में यहाँ नूडल्स, सब्ज़ियां और चावल के व्यंजन दिए जाते हैं।

कामाख्या मंदिर

कामाख्या मंदिर

असम के गुवाहाटी में स्थित यह एक गुफ़ा मंदिर है। मंदिर में पहुँचने के लिए आपको सीढ़ियों द्वारा नीचे एक अँधेरी गुफ़ा में उतारना होगा। यहाँ देवी माँ की प्रतिमा साड़ी में लिपटी हुई है और उन्हें फूलों से सजाया गया है। आज भी यहाँ बकरियों की बलि दी जाती है। यह परंपरा यहाँ खासी समय से चली आ रही है।

दुर्गा पूजा के अलावा यहाँ एक और पर्व मुख्य तौर पर मनाया जाता है, वह है अम्बुबाची या प्रजनन का त्यौहार। कहा जाता है कि इस दौरान देवी माँ मासिक धर्म की अवधि से गुजरती है।

Image Courtesy:Kunal Dalui

आधार देवी मंदिर

आधार देवी मंदिर

राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंट आबु में यह एक गुफ़ा के अंदर स्थित मंदिर है। यह मंदिर अर्बुदा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब यहाँ मंदिर का निर्माण किया गया तब इसके अंदर देवी माँ की तस्वीर हवा में लटकी हुई मिली। भक्तों को मंदिर में देवी के दर्शन के लिए 365 सीढियाँ चढ़ कर गुफ़ा के अंदर रेंग कर प्रवेश करना होता है।

Image Courtesy: Official Website

अम्बाजी मंदिर

अम्बाजी मंदिर

गुजरात के अबु रोड में स्थापित यह भव्य मंदिर अपनी खास विशेषता के लिए प्रसिद्द है कि, इस मंदिर में देवी माँ की कोई मूर्ति विराजमान नहीं है। यहाँ एक त्रिभुजाकार विश्व यंत्र है जिसमें कई तरह की आकृतियां बनी हुई हैं और बीच में श्री शब्द लिखा हुआ है। इस यंत्र को ही इस मंदिर में कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। हालाँकि इसे नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है।

पूर्णिमा की रात को इस मंदिर का रूप देखने लायक होता है और लाखों की भीड़ में इस दिन यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है। ऐसा माना जाता है कि देवी सती का ह्रदय यहीं गिरा था इसलिए इसे मूल शक्ति पीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है।

Image Courtesy:Viral A dave

हसनंबा मंदिर

हसनंबा मंदिर

कर्नाटक के हसन जिले में स्थापित हसनंबा मंदिर की खासियत ही अलग है। यह मंदिर पूरे साल में सिर्फ एक ही हफ्ते भक्तों के दर्शन के लिए खोला जाता है। बाकि पूरे साल भक्तगण मंदिर के बाहर ही फूल, माला, जल, जलते दिए, चावलों के बोरे आदि चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के नाम पर ही इस जिले का नाम हसन पड़ा। यहाँ विराजमान देवी को हसनंबा माता के रूप में पूजा जाता है क्यूंकि ऐसा माना जाता है कि ये देवी हमेशा हंसती रहती हैं।

मंदिर परिसर के अंदर चीटियों की बाँबी भी है जिसे देवी के रूप में पूजा जाता है।मंदिर की वास्तुशैली के अनुसार, जैसा कि यह होयसाला वंश का निर्मित मंदिर है, यह जैन धर्म में भी अपनी आस्था को दर्शाता है।

Image Courtesy:Kishore328

 देवी भगवती अम्मान मंदिर

देवी भगवती अम्मान मंदिर

भारत के सबसे दक्षिणी हिस्से के क्षेत्र कन्याकुमारी में स्थित देवी का यह मंदिर अपने खूबसूरत परिदृश्य के लिए भक्तों के बीच लोकप्रिय है। यह तीन समुद्रों के संगम पर बसा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 2000 साल पुराना है। कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि देवी भगवती की उत्पत्ति भगवान शिव जी द्वारा की गई थी, जब बानासुर नाम का दानव देवताओं को परेशान कर रहा था। देवी भगवती से घमासान युद्ध के बाद अंत में दानवों का सर्वनाश हुआ।

नवरात्रे के शुभ अवसर पर इस घटना को यहाँ दर्शाया जाता है। समुद्री तट से थोड़ा दूर हटकर एक चट्टानी द्वीप खड़ा है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर पहले यहीं स्थापित था जिसे बाद में यहाँ से स्थानांतरित कर दिया गया। द्वीप में इंसानी पदचिन्ह भी मौजूद है, जिसे श्रीपदम कहा जाता है।

Image Courtesy:Sankarrukku

कनक दुर्गा मंदिर

कनक दुर्गा मंदिर

आँध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित इस मंदिर की देवी, शक्ति और कृपा की देवी कनक दुर्गा माता हैं। कृष्णा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर में देवी की मूर्ति इंद्रकीलाद्रि पर्वत पर स्थापित है। यह विजयवाड़ा का सबसे शक्तिशाली मंदिर कहलाता है।

इंद्रकीलाद्रि एक अद्वितीय स्थल है, क्यूंकि यह निवास स्थल देवी कनक दुर्गा और उनके पति मल्लेस्वरा द्वारा खुद चुना गया था। यहाँ देवी माँ की मूर्ति परम्पराओं के विरुद्ध उनके पति के दाहिने तरफ विराजमान है।

Image Courtesy:Balajirakonda

दुर्गा परमेश्वरि मंदिर

दुर्गा परमेश्वरि मंदिर

कर्नाटक के मंगलौर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर कतील में स्थापित यह, देवी का अनोखा मंदिर है। मंदिर की विशेषता है कि यह नदी के बीच में स्थापित है। यहाँ तक कि यह नदी मंदिर के सभी निचले स्तरों के माध्यम से बहती है। यह मंदिर दुर्गा परमेश्वरि को समर्पित है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले बाईं तरफ एक बड़ा सा पत्थर है, जिसे देवी रक्तेश्वरी के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर में देवी चामुंडी की मूर्ति भी विराजमान है। ऐसा माना जाता है कि देवी परमेश्वरि को नृत्य और संगीत बहुत प्रिय हैं, इसलिए यहाँ नृत्य और संगीत प्रस्तुत करने के लिए कलाकारों का एक अलग समूह भी है।

Image Courtesy:Premnath Kudva

करणी माता मंदिर

करणी माता मंदिर

600 साल पुराना यह मंदिर जो हमें 15 वीं सदी के काल में ले जाता है, महाराजा गंगा सिंह के शासनकाल में बनवाया गया था। बीकानेर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित यह मंदिर करनी माता को समर्पित है। यह दुर्गा माँ की ही एक अवतार हैं। यहाँ मुख्य आकर्षण के केंद्र हैं, यहाँ के चूहे। कथाओं के अनुसार जब करणी माता के सबसे छोटे पुत्र की मृत्यु हुई तब उन्होंने यम से उसे जीवित करने के लिए गुहार लगाई पर यम ने उनकी गुहार को नकार दिया।

इसके बाद करणी माता ने स्वयं ही माँ दुर्गा का रूप धारण किया और अपने पुत्र को जीवित किया और घोषित किया कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा और उनकी आत्मा चूहों में जीवित रहेगी। आज इस मंदिर में 20,000 से भी ज़्यादा चूहे निवास करते हैं, जिन्हें धातु के बर्तनों में मिठाईयाँ और दूध परोसा जाता है।

Image Courtesy:Arian Zwegers

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