फ्रांस में 12वी शताब्दी में गोथिक वास्तुकला की शैली का आगमन हुआ था और यह 16वीं शताब्दी तक रही थी। वास्तुकला की ये शैली पूरे यूरोप में फैली हुई थी और इस शैली में अधिकतर गिरजाघर और कैथेड्रल बनाए गए थे।
गोथिक शैली की विशेषता थी कि इसमें रिब्ड वॉल्ट्स, पत्थरों की संरचनाएं और निर्देशित मेहराब थे। इस वास्तुकला की शैली में कई शानदार महल, टाउन हॉल, किले और अन्य संरचनाओं को निर्माण भी किया गया था।
क्रिसमस 2017: इस शहर में यूएस-यूके की तरह मनाया जाता है क्रिसमस, पर्यटकों की उमड़ती है भीड़
इस आर्किेक्चर की शैली यूरोप से भारत ब्रिटिशों के शासनकाल के दौरान आई। 52 ईस्वीं में ईसाई धर्म की शुरुआत के साथ भारत में इसी शैली में गिरजाघर और कैथेड्रल के निर्माण की शुरुआत हुई। सौभाग्यवश, इनमें से कुछ गिरजाघर आज भी मजबूती से खड़े हैं। जल्द ही क्रिसमस आने वाला है और आज हम आपको गोथिक शैली में बने भारत के कुछ शानदार गिरजाघरों के बारे में बताने जा रहे हैं।
सैंट फिलोमेना कैथेड्रल, मैसूर
एशिया के सबसे लंबे गिरजाघरों में से एक है मैसूर का सैंट फिलोमेना कैथेड्रल जिसे निओ गोथिक शैली में सन् 1936 में बनवाया गया था। इस गिरजाघर की दो मीनारें हैं जिनकी ऊंचाई 175 फीट है। ये जर्मनी के लोकप्रिय कोलोग्ने कैथेड्रेल की मीनारों का प्रतिरूप हैं।
इस गिरजाघर का निर्माण सैंट फिलोमेना के सम्मान में किया गया था जो कि एक कैथोलिक संत और रोमन कैथोलिक चर्च में शहीद हुए थे। आज यह गिरजाघर मैसूर के सबसे प्रमुख स्थलों में से एक है।Pc:Bikashrd
सैंट थॉमस कैथेड्रल बसिलिका, चेन्नई
इसे सैन थोमे बसिलिका के नाम से भी जाना जाता है। इसे 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा बनवाया गया था। यह दुनिया के तीन चर्चों में से एक है जिसे यीशु, सेंट थॉमस के अनुयायियों में से एक की कब्र पर बनाया गया था। अन्य दो गिरजाघर स्पेन और वेटिकन सिटी में हैं।
इस गिरजाघर का ब्रिटिशों द्वारा 1893 में पुर्ननिर्माण करवाया गया था और आज उसी गिरजाघर का स्वरूप हम यहां देख सकते हैं। इस रोमन कैथोलिक माइनर बसालिका की ऊंची मीनारें हैं और यहां पर सैंट थॉमस से संबंधित कलाकृतियों के लिए संग्रहालय भी बनाया गया है।Pc:PlaneMad
सैंट पॉल कैथेड्रल, कोलकाता
गोथिक शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है कोलकाता का सैंट पॉल कैथेड्रल गिरजाघर। इस चर्च के निर्माण की शुरु 1839 में हुई थी लेकिन इसका निर्माण कार्य 1847 में समाप्त हुआ था। ये चौरंगी रोड़ पर विक्टोरिया मेमोरियल के पास स्थित है।
1934 में आए भूकंप के कारण खराब हो जाने के बाद इस गिरजाघर को इंडो-गोथिक शैली में दोबारा बनाया गया। इस गिरजाघर की 201 फीट ऊंची मीनार और 5 घडियां हैं जिसमें प्रत्येक घड़ी का वजन 5 टन है। इस गिरजाघर की दीवारों को रंगीन शीशों और प्लास्टिक कला शैली से सजाया गया है।Pc: Ankitesh Jha
माउंट मेरी चर्च, मुंबई
मुंबई के बांद्रा में स्थित माउंट मैरी चर्च को आधिकारिक तौर पर बसालिका ऑफ आवर लेडी ऑफ द माउंट के नाम से जाना जाता है। इस गिरजाघर का सबसे प्रमुख आकर्षकण इसका बांद्रा मेला है जो कि हर सप्ताह निकलता है और इस दौरान हज़ारों लोग गिरजाघर आते हैं।
ये मेला हर साल 8 सितंबर के बाद पहले रविवार को निकलता है। यह रोमन कैथोलिक बसालिका समुद्रतट से 262 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और मेले के दौरान इसे बड़े खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है।
Pc: Rakesh Krishna Kumar
ऑल सेंट कैथेड्रल, अहमदाबाद
ये गिरजाघर स्थानीय रूप से पत्थर गिरजा के नाम से लोकप्रिय है जिसका अर्थ है ‘पत्थरों का गिरजाघर'। अलाहाबाद शहर में स्थित ऑल सेंट कैथेड्रल बेहद शानदार इमारत है। इस शानदार चर्च की वास्तुकला सर विलियम एमरसन ने डिजाइन की थी। उन्होंने ही कोलकाता का प्रसिद्ध विक्टोरिया मेमोरियल भी डिजाइन किया था।
हर साल इस गिरजाघर की वार्षिक सालगिरह को 1 नवंबर के दिन मनाई जाती है। यह औपनिवेशिक भारत की सुंदर वास्तुकला का नमूना है। ये गिरजाघर इतना बड़ा है कि इसमें एकसाथ 300-400 लोग आ सकते हैं।Pc:Picea Abies