आर्किड के खिले हुए फूल, बर्फ से ढंकी पहाड़ों की चमचमाती चोटी, खूबसूरत वादियां, जंगल के पत्तों की सरगोशियां, तंग जगहों से पानी का घुमावदार बहाव, बौद्ध साधुओं के भजन की पावन ध्वनि और उनका अतिथि-सत्कार...अगर वाकई आप इन सब चीजों के बीच हैं, तो यकीन जानिए, आप अरुणाचल प्रदेश में हैं। आज का हमारा ये आर्टिकल इसी अरुणाचल प्रदेश और यहां के एक बेहद खूबसूरत शहर तवांग से सम्बंधित है।
अरुणाचल प्रदेश के सबसे पश्चिम में स्थित तवांग जिला अपनी रहस्यमयी और जादुई खूबसूरती के लिए जाना जाता है। समुद्र तल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जिले की सीमा उत्तर में तिब्बत, दक्षिण-पूर्व में भूटान और पूर्व में पश्चिम कमेंग के सेला पर्वत श्रृंखला से लगती है। ऐसा माना जाता है कि तवांग शब्द की व्युत्पत्ति तवांग टाउनशिप के पश्चिमी भाग के साथ-साथ स्थित पर्वत श्रेणी पर बने तवांग मठ से हुई है।
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‘ता' का अर्थ होता है- ‘घोड़ा' और ‘वांग' का अर्थ होता है- ‘चुना हुआ।' पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान का चुनाव मेराग लामा लोड्रे ग्यामत्सो के घोड़े ने किया था। प्राकृतिक सुंदरता के मामले में तवांग बेहद समृद्ध है और इसकी खूबसूरती किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देती है। तो अब आइये जाना जाये कि तवांग की यात्रा पर क्या क्या अवश्य देखना चाहिए आपको।
बोंगबोंग (नुरानंग) जलप्रपात
यह खूबसूरत जलप्रपात अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में है। देश के पूर्वोत्तर का एक भव्य जलप्रपात है होने के बावजूद भी पर्यटक इसके बारे में कम ही जानते हैं। यह जांग कस्बे से करीब 2 किमी दूर तवांग-बोमडिला रोड पर स्थित है। नुरानंग नदी सेला पास के उत्तरी ढलान से निकलती है। यह जलप्रपात उस समय प्रकाश में आया जब यहां एक प्रसिद्ध बॉलीवुड फिल्म का एक गाना फिल्माया गया।
फोटो कर्टसी - Easyvivek
सोंगा-त्सेर झील
तवांग से 42 किमी दूर स्थित इस झील का निर्माण 1950 में आए भूकंप के परिणामस्वरूप हुआ था। झील और आसपास का नजारा इतना शानदार है कि यह बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं के लिए शूटिंग का भी एक आदर्श स्थान है। इस झील पर एक प्रसिद्ध बॉलीवुड फिल्म की शूटिंग भी की जा चुकी है।
गोरसम चोरटेन
यह एक स्तूप है, जो तवांग कस्बे से 90 किमी दूर है। खास बात यह है कि यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा स्तूप है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तूप का निर्माण 12वीं शताब्दी के आरंभ में एक मोनपा संत लामा प्राधार द्वारा किया गया था। यह एक अर्ध-वृत्ताकार गुंबदनुमा संरचना है, जिसका ऊपरी हिस्सा नुकीला है। यह तीन चबूतरे वाले स्तंभ पर टिका हुआ है। इस स्तूप के चार लघु रूप को तल के सबसे निचले चबूतरे के चारों कोणो पर स्थापित किया गया है। स्तूप तक एक फुटपाथ भी बनाया गया है, जिससे तीर्थ यात्री प्रार्थना करने के लिए पहुंचते हैं।
सेला पास
अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो वह सेला माउंटेन पास है। यहां की सुंदरता को देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते हैं। ठंड के मौसम में सेला पर्वत श्रृंखला पर बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है। यह शानदार नजारा आंखों को सुकून पहुंचाने वाला होता है। साल के अधिकतर समय यह जगह बर्फ से ढंका होता है। हिमालय पर्वत श्रृंखला के इस पूर्वी हिस्से का बौद्ध धर्म में खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि सेला पास और आसपास में करीब 101 झील है और इनमें से हर एक झील का बौद्ध समुदाय में विशेष धार्मिक महत्व है।
फोटो कर्टसी - rajkumar1220
तवांग मठ
तवांग मठ भारत का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। इसकी स्थापना मेराक लामा लोड्रे ने 1860-1861 में की थी। तवांग जिले के बोमडिला से यह मठ 180 किमी दूर है। समुद्र तल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ पर स्थित इस मठ को गालडेन नमग्याल लहात्से के नाम से भी जाना जाता है। इस मठ का मुख्य आकर्षण यहां स्थित भगवान बुद्ध की 28 फीट ऊंची प्रतिमा और प्रभावशाली तीन तल्ला सदन है। मठ में एक विशाल पुस्तकालय भी है, जिसमें प्रचीन पुस्तक और पांडुलिपियों का बेहतरीन संकलन है।
फोटो कर्टसी - rajkumar1220
उर्गेलिंग मठ
तवांग के प्रचीन मठों में से एक उर्गेलिंग मठ तवांग शहर से 3 किमी दूर स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसका अस्तित्व 14वीं शताब्दी से है। इस मठ का निर्माण उर्गेन संगपो द्वारा किया गया था और यह भी माना जाता है कि यह मठ उनके द्वारा बनवाए गए पहले तीन मठों में एक है। एक मान्यता यह भी है कि 1683 में जन्मे छठे दलाई लामा त्सांगग्यांग ग्यामत्सो का जन्म स्थल भी है। वह लामा ताशी तेंजिन के बेटे और तेर्टन परमालिंगपा के वंश के थे।
तवांग वार मेमोरियल
ये मेमोरियल उन शहीदों को समर्पित है, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। इस मेमोरियल में युद्ध और इसमें जान की कुर्बानी देने वाले सिपाहियों की सूची भी है।