भारत पौराणिक काल से ही पूजा-पाठ के अलावा तंत्र-साधना का भी प्रमुख केंद्र रहा है। जहां आज भी अधिकांश प्राचीन मंदिरों में गुप्त सिद्धियां प्राप्त करने के प्रमाण मिलते हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि गुप्त सिद्धियां प्राप्त करने के लिए तंत्र-मंत्रों द्वारा देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का सिलसिला आज भी जारी है।
भले ही इस प्रकार की गुप्त साधनाएं हमारी नजरों से कोसों दूर हैं, लेकिन इनकी सच्चाई सच में रोंगटे खड़े कर देने वाली है। 'नेटिव प्लानेट' के इस खास खंड में जानिए भारत के उन चुनिंदा प्राचीन मंदिरों के बारे में जहां शाम ढलते ही तांत्रिक लग जाते हैं तंत्र साधान में।
ओडिशा का बेताल मंदिर
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बेताल मंदिर 8 वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। जो भारत के ओडिशा राज्य के भुवनेश्वर शहर में स्थित है। कलिंग शैली में बना यह प्राचीन मंदिर देवी चामुंडा को समर्पित है। इस मंदिर के शीर्ष पर तीन मीनारें होने की वजह से स्थानीय भाषा में इसे तिनी-मुंडिया कहा जाता है।
माना जाता है कि ये तीन मीनारे देवी चामुंडा की त्री-शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। एक महालक्ष्मी, दूसरी महासरस्वरी व तीसरी महाकाली। कहा जाता है कि यहां तंत्र साधना के द्वारा मां चामुंडा की पूजा की जाती है।
कोलकाता का कालीघाट
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पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर स्थित प्रसिद्ध कालीघाट शक्तिपीठ मां काली को समर्पित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार देवी सती के दाएं पैर की कुछ अंगुलियां इसी स्थान पर गिरी थीं। जिसके बाद यह स्थान देवी के शक्तिपीठ के रूप में जाना गया ।
यहां मां काली के भक्तों का बड़ा जमावड़ा लगता है। दूर-दूर से भक्त यहां देवी के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर तांत्रिक साधना के लिए काफी प्रसिद्ध माना जाना जाता है।
असम का कामाख्या मंदिर
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कामाख्या मंदिर भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के गुवाहाटी शहर से लगभग 8 किमी की दूरी पर स्थित है। देवी कामाख्या का यह भव्य मंदिर देवी सती के महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में एक है। यहां मां भगवती कामाख्या (सती) का योनि-कुंड भी स्थित है।
यह स्थान तंत्र सिद्धि का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। जहां दूर-दूर से अघोरी-तांत्रिक पहुंचते हैं। इस स्थान पर प्रतिवर्ष महा पर्व का आयोजन किया जाता है। असम घूमने आए ज्यादातर सैलानी देवी मां के दर्शन करना नहीं भूलते।
हिमाचल का बैजनाथ मंदिर
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देवो के देव महादेव को समर्पित यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले(पालमपुर पहाड़ी) में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 1204 में अहुक और मन्युक नाम के दो व्यापारियों ने की थी। जिसके बाद इस मंदिर का निर्माण और सौंदर्यीकरण का काम निरंतर चलता रहा।
यह मंदिर हिमाचल घूमने आए सैलानियों को काफी ज्यादा आकर्षित करता है। माना जाता है कि यहां भी तांत्रिक साधना की जाती है। यहां के पानी में दिव्य शक्ति है।
हिमाचल का ज्वाला मुखी मंदिर
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हिमाचल का ज्वाला मुखी मंदिर कांगड़ा घाटी से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर देवी के 51 शक्तिपीठों में एक है। इस प्रसिद्ध मंदिर को 'जोता वाली का मंदिर' और 'नगरकोट' के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। कहा जाता है इस मंदिर को खोजने का काम पांडवों के किया था। यहां अखण्ड ज्योति को माता का रूप माना जाता है।
मंदिर के अंदर प्रवेश करते है माता की नौ ज्योतियां दिखाई देंगी जो महाकाली, चंडी, हिंगलाज, महालक्ष्मी, अन्नपूर्णा, सरस्वती, विंध्यावासनी, अंजीदेवी, अम्बिका, के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह मंदिर तांत्रिक साधना के लिए भी जाना जाता है।
राजस्थान का एकलिंगजी मंदिर
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राजस्थान के उदयपुर शहर में स्थित एकलिंग जी मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जो शहर से लगभग 18 किमी की दूरी पर दो पहाड़ियों के मध्य बसा है। भगवान एकलिंग जी मेवाड़ के राजपूतों के प्रमुख आराध्य देव माने जाते हैं। इस स्थान का नाम कैलाशपुरी है, लेकिन यहां महादेव का भव्य मंदिर होने के कारण यह एकलिंग जी के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है मेवाड़ के राजपूतों ने महादेव का आशीष पाकर बड़े से बड़े युद्धों में विजय हासिल की थी। इसलिए यह मंदिर उनके लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जहां आज भी पूजा-पाठ पूरे विधि-विधान से किया जाता है।
मध्यप्रदेश का खजुराहो मंदिर
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मध्य प्रदेश स्थित खजुराहो मंदिर अपनी कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां के मंदिरों की वास्तुकला व मूर्तियां उत्कृष्ट कला का उदाहरण हैं। इसलिए यह स्थान कला प्रेमियों के लिए शुरू से ही मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा है।
पर बहुत ही कम लोग इस बात को जानते हैं कि यह मंदिर कभी तंत्र-साधना के लिए भी जाना जाता था, जिसके प्रमाण आज भी गुप्त रूप से मिलते हैं, हालांकि अब खुजराहो मात्र पर्यटन के लिए जाना जाता है।
काल भैरव मंदिर, मध्य प्रदेश
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मध्य प्रदेश, उज्जैन स्थित काल भैरव एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां भगवान को मदिरा पान करवाया जाता है। यह प्राचीन मंदिर लगभग 6 हजार साल पुराना बताया जाता है, जो मुख्य शहर से 8 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को तांत्रिक मंदिर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां उन चीजों को चढ़ाया जाता है जो बाकी मंदिरों में देखने को नहीं मिलेंगी।
भगवान भैरव को मदिरा का भोग लगाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह बात अबतक एक बड़ा रहस्य बनी हुई है कि भोग लगाने वाली मदिरा भगवान के मुख से लगाते ही गायब हो जाती है। माना जाता है कि भगवान स्वयं इस मदिरा का पान करते हैं।