भारत लंबे समय से आध्यात्मिक खोजियों का प्रमुख स्थान रहा है। यहां के आश्रम अपनी विभिन्न आध्यात्मिक व यौगिक क्रियाओं के लिए विश्वभर में जाने जाते हैं। इसलिए भारत योग के क्षेत्र में विश्वगुरु माना जाता है। ऋषि परंपरा पर आधारित भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता पूर्ण रूप से निहित है। जिसकी झलक आप भारतीय रीति रिवाजों व परम्पराओं में देख सकते हैं।
'नेटिव प्लानेट' के इस विशेष खंड में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, भारत के चुनिंदा आश्रमों के बारे जो आत्मिक व मानसिक शांति के लिए देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।
रामाकृष्ण मिशन
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रामकृष्ण मिशन की स्थापना 'रामकृष्ण परमहंस' के सबसे बड़े शिष्य स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1987 को की। इस मिशन की स्थापना का उद्देश्य अपने गुरु की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाना था। स्वामी शुरु से ही परमहंस जी के विचारों से काफी ज्यादा प्रभावित थे। इसलिए उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने कोलकाता के बारानगर में पहले मठ की स्थापना की, जिसके बाद कोलकाता में ही विश्व प्रसिद्ध 'बेलूर मठ को स्थापित किया। आज यह मिशन धर्म और आस्था का मुख्य केंद्र माना जाता है, जहां देश-विदेश से लोग मानसिक व आत्मिक शांति के लिए यहां आते हैं। यह मिशन वेदांता की शिक्षाओं पर आधारित है, जिसमें हिन्दू धर्म व दर्शन दोनों के गुण को सम्मिलित किया गया है। यहां ज्ञान व आत्मिक चिंतन पर अधिक जोर दिया जाता है। इस मिशन की शाखाएं पूरे भारतवर्ष में फैली हैं, जिसका हेडक्वार्टर कोलकाता का 'बेलूर मठ' है।
आर्ट ऑफ लिविंग
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आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर द्वारा बनाई गई एक गैर लाभकारी संस्था है। जिसकी स्थापना 1982 में की गई थी। आर्ट ऑफ लिविंग की शाखाएं विश्व के 156 देशों में मौजूद है, जिसे सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था का दर्जा प्राप्त है। मानवतावादी विचारों पर आधारित यह संस्था लंबे समय से इंसान को बेहतर बनाने के प्रयास में लगी है। यहां योग प्राणायाम, तनाव मुक्त व ध्यान संबंधी कई सत्रों का आयोजन किया जाता है, जिससे की इंसान एक स्वस्थ जीवन जी सके। यह संस्था समय-समय पर सार्वजनिक कार्यों में भी हिस्सा लेती है, जिससे आम इंसान अपनी जिम्मेदारियों को समझ जागरूक बन सकें। श्री श्री रविशंकर के निर्देशन में यह संस्था कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन भी आयोजित कराती है जिसमें विश्व के कई छोटे-बड़े देश हिस्सा लेते हैं। इस संस्था का मुख्यालय बेंगलुरु स्थित उदरपुरा में है।
ईशा फाउंडेशन
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ईशा फाउंडेशन तमिलनाडु स्थित एक गैर लाभकारी आध्यात्मिक संगठन है, जिसकी स्थापना 1992 में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने की। इस संस्था के करीब 20 लाख स्वयंसेवक निस्वार्थ आध्यात्मिता क्षेत्र में अपनी भागीदारी दे रहे हैं। इस संस्था की कई शाखाएं विश्व के कई देशों में मौजूद हैं। जैसे यूएसए में ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ़ इन्नेर साइंसेस। यह फाउंडेशन योग से जुड़ी क्रियाओं व आध्यात्मिक चिंतन पर विशेष बल देता है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव कई बार टेलीविजन पर भी विशेष मुद्दों पर विचार विमर्श करते नजर आते हैं। बता दें कि यह फाउंडेशन कैदियों के जीवन को सुधारने के लिए भी कई तरह के कार्यक्रमों का संचालन करता है। सामाजिक कार्यों की दृष्टि से यह संस्था एक अच्छा दृष्टिकोण लेकर चल रही है। यहां कई तरह के कोर्स का आयोजन किया जाता है, जैसे आंतरिक इंजीनियरिंग, हठ योग, ध्यान व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति आदि।
अखिल विश्व गायत्री परिवार
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अखिल विश्व गायत्री परिवार भारत की एक गैर लाभकारी संस्था है। जिसकी स्थापना युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा की गई। यह संस्था लंबे समय से मानव जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास में लगी है। गायत्री मंत्र को जीवन का आधार मानकर चलने वाली यह संस्था विश्व के कई देशों के साथ भी जुड़ी है। यह मिशन योग के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने का काम करता है। इस संस्था का मुख्य लक्ष्य विचार क्रांति है। गायत्री परिवार का हेडक्वार्टर हरिद्वार स्थित शांतिकुंज है। जहां हजारों की तादात में श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं। गायत्री परिवार का हरिद्वार स्थित एक विश्वविद्यालय भी है, जो 'देव संस्कृति विश्वविद्यालय' के नाम से जाना जाता है। यहां योग के साथ प्रोफेशनल कोर्सेज भी चलाए जाते हैं। वर्तमान में इस संस्था के संचालक 'डॉ प्रणव पंड्या' हैं। जो गीता-ध्यान की स्पेशल क्लासेस के द्वारा हर बृहस्पतिवार यहा के छात्रों से मिलते हैं। मिशन के स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से देश-विदेश में अपनी सेवा देने का काम कर रहे हैं।
श्री अरबिंदो आश्रम
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श्री अरबिंदो आश्रम की स्थापना 1926 में श्री अरबिंदो द्वारा पोंडिचेरी में की गई। जिसे बाद उन्होंने अपनी एक फ्रेंच सहकर्मी मीरा अलफसा की जिम्मेदारी पर छोड़ दिया। यह आश्रम भारत के पुराने आध्यात्मिक केंद्रों में से एक है। श्री अरबिंदो ने इस आश्रम की स्थापान उस वक्त की जब उन्होंने पूरी तरह सार्वजनिक जनसंपर्क व राजनीति त्याग दी थी। जिसके बाद वे पूरी तरह से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ गए। बता दें इस आश्रम की कोई शाखा नहीं है, यह केवल एक ही आश्रम है जो चेन्नई से 160 किमी की दूरी पर पोंडिचेरी में स्थित है। भारत में श्री अरबिंदो के नाम से कई संस्थाएं मौजूद हैं, पर उन्हें श्री अरबिंदो आश्रम से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है।
इस्कॉन
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अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ जिसे 'हरे कृष्ण आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। इस्कॉन की स्थापना (न्यूयार्क शहर) में भक्तिवेदांत स्वामी प्रमुपाद ने 1966 में की। इस संस्था के कई मंदिर व आश्रम देश-विदेश में हैं, जो भगवान कृष्ण की शिक्षाओं को समर्पित हैं। इस्कॉन विश्व की उन चुनिंदा आध्यात्मिक संस्थाओं में से एक है, जिसके अनुयायियों की संख्या निरंतर बढ़ने पर है। इस संस्था के द्वार हर जाति-धर्म के लोगों के लिए खुले हुए हैं। हर वो व्यक्ति जो कृष्ण भक्ति में लीन होना चाहता है इस्कॉन से जुड़ सकता है। वर्तमान में इस्कॉन के 800 से ज्यादा मंदिरों की स्थापना हो चुकी है। इस्कॉन से जुड़े अनुयायी आपको साधारण लिबास में चंदन का टिका लगाए व गले में तुलसी की माला पहने विश्व के हर कोनों में दिख जाएंगे।
माता अमृतामयी आश्रम
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माता अमृतानंदमयी देवी भारत की एक आध्यात्मिक गुरू हैं, जिन्हें उनके अनुयायी 'अम्मा' कहना ज्यादा पसंद करते हैं। माता अमृतामयी को उनकी मानवतावादी विचारधारा के लिए पूरे विश्व भर में काफी सम्मान दिया जाता है। उन्हें 'प्रेम से गले लगने वाली संत' भी कहा जाता है। माता अमृतामयी का उद्देश्य दूसरों के जीवन से कष्टों को दूर करना है, जिन्हें वो खुद के आंसू पोंछने जैसा समझती हैं। अम्मा दूसरों की शांति में ही अपनी शांति समझती हैं। केरल के कोल्लम में अम्मा का एक आश्रम भी है। जहां 20 मिनट का अमृता ध्यान करवाया जाता है। आश्रम की दिनचर्या पूर्ण रूप से आध्यात्मिक है, जहां सुबह से ही योग, प्राथना, ध्यान व अन्य आध्यात्मिक गतिविधियां शुरु हो जाती हैं।
ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिज़ॉर्ट
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महाराष्ट्र के पुणे स्थित 'ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिज़ॉर्ट' भारत का सबसे विवादित आश्रम है। इस आश्रम की स्थापना आध्यात्मिक गुरु रजनीश/ओशो द्वारा 1974 में की गई थी। बता दें रजनीश ने मानवीय इच्छाओं में संभोग को उच्च स्थान दिया है, इसलिए उनकी रचनाओं में संभोग का जिक्र सबसे ज्यादा आता है। यहां तक की उन्होंने 'संभोग से समाधि' नाम का एक उपन्यास भी लिखा था। इसलिए उनके विचारों को भारत में ज्यादा स्वीकार नहीं किया गया। ओशो के संभोग संबंधी विचारों को गलत ठहराने वाले लोग 'ओशो के आश्रम' को मात्र 'संभोग का अड्डा' ही समझते हैं। ओशो के इस मैडिटेशन रिज़ॉर्ट' में ज्यादा विदेशी आना पसंद करते हैं। जहां उन्हें मैरून रंग के कपड़े धारण करने पड़ते हैं।