Travel Experience - Chitrakot Falls: अगर आपको कभी रायपुर या छत्तीसगढ़ के किसी भी शहर जाने का मौका मिले तो एक बार जगदलपुर जरूर जाइयेगा। यह एक ऐसी जगह है, जो आपको बड़े शहरों की चकाचौंद से दूर ले जायेगा। आपको सुकून मिलेगा, प्रकृति के बीच एक बेहतरीन अनुभव होगा और ढेर सारा रोमांच। लेकिन कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां पर आपको अपने ही मन के अंदर एक डर जरूर बैठा मिलेगा। दरअसल यह डर, लोगों के द्वारा छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्रों के बारे में सुनाई गईं कहानियों और बीते वर्षों में यहां हुईं घटनाओं के कारण होता है। सच पूछिए तो यात्रा के दौरान यह डर मेरे मन में भी आया।
खैर बाइक से मेरी यह यात्रा शुरू हुई रायपुर से जब मैं एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में कोरबा, बिलासपुर और रायपुर के टूर पर निकला। इसी बीच रविवार पड़ा, तो सोचा जगदलपुर घूम लेते हैं। रात की बस पकड़ी और निकल पड़े। रात को करीब 11 बजे बस चली और कुछ ही देर में जंगल का इलाका शुरू हो गया। सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर। केवल कुछ बसें ही दिखाई दे रही थीं। हालांकि कुछ देर तक ड्राइवर सीट पर बैठा और फिर जाकर सो गया। सुबह होते ही जगदलपुर में था।
जरूरी बात- यह सफर करीब 7 घंटे का रहा और स्लीपर बस का किराया 700 रुपए था।
जगदल पुर में केरल स्टाइल रेस्त्रां
सुबह एक होटल में ठहरे, जहां हर तरफ प्रकृति के नज़ारे थे। शहर छोटा सा, वाहन बहुत कम और सड़कें एक-दम साफ। खास बात देखिए कि यहां उत्तर भारतीय होटलों के साथ-साथ एक ऐसा होटल मिला, जो कि साउथ इंडिया भोजन परोसता है। वो भी केरल स्टाइल। जी हां, केरला होटल जगदलपुर का फेमस होटल है, जहां पर वेज और नॉनवेज दोनों ही केरल स्टाइल का मिलता है।
जगदलपुर की खूबसूरत जगहें
दरअसल जगदलपुर बस्तर जिले में आता है। बस्तर जिला वैसे तो नक्सली वारदातों के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ वर्षों से यहां अमन है। हालांकि छिटपुट घटनाएं होती हैं, जिन पर स्थानीय लोग कहते हैं कि नक्सली अपनी उपस्थिति जताने के लिए ऐसा करते हैं।
वैसे तो यहां पर कैलाश की गुफाएं, भैसाना दरहा, कंगेर धारा, दलपत सागर लेक, बस्तर पैलेस, चिकत्रकोट जलप्रपात, दंतेशवरी मंदिर, हिंगलाजिन मंदिर, मावली मंदिर, और म्यूजियम प्रसिद्ध जगहों में से एक हैं, लेकिन समय का अभाव होने के कारण हमने फैसला किया कि हम केवल दो जगह ही जाएंगे। एक बस्तर पैलेस और चित्रकोट जलप्रपात। आपको बता दें कि हम यानि कि दो लोग।
सुबह जल्दी निकले और पहले लाम्नी पार्क गए। यह पर्यटकों को आकर्षित करने वाली एक बेहतरीन जगह है, जहां पर बच्चों के खेलने के लिए काफी अच्छी-अच्छी चीजें हैं। सुबह इस पार्क में काफी कम भीड़ रहती है। लिहाज़ा हम यहां से जल्दी निकल गये।
दूसरा गंतव्य था दलपत सागर तालाब। यह जगदलपुर का सबसे बड़ा तालाब है, जहां लोग मछलियां पकड़ने जाते हैं। हालांकि सरकार ने यहां पर पर्यटकों के लिए भी बेहतरीन इंतजाम कर रखे हैं। ये तालाब काफी बड़ा है और एक अच्छा सेल्फी प्वाइंट भी। करीब डेढ़ से दो घंटा बिताना यहां पर पर्याप्त है। हां अगर मौसम अच्छा हो तो आप यहां पर फैमिली के साथ पिकनिक मनाने जा सकते हैं।
चित्रकोट फॉल्स के लिए निकले
यहां से सीधे हम चित्रकोट के लिए निकल पड़े। दोपहर करीब 12 बजे हम दोनों अपनी बाइक से सीधे जगदलपुर के लिए निकल पड़े। सून-सान रास्ता। हर एक-डेढ़ किलोमीटर पर बस या ट्रक दिख जाती। और बीच-बीच में एक-दो कारें। मौसम भी अच्छा था, हल्की-हल्की बूंदा-बांदी ने उसे और खुशनुमा बना दिया।
जरूरी बात- जब भी आप जगदलपुर से चित्रकोट फॉल्स जायें, तो ध्यान रहे, रास्ते में आपको खाने के लिए कुछ नहीं मिलेगा। बस बीच में एक होटल पड़ेगा, वो भी करीब 20 किमी के बाद। लिहाज़ जब भी जायें, भर पेट जायें। एक बात और बीच-बीच में आदि वासी ताड़ के पेड़ से निकली हुई ताज़ी ताड़ी भी बेचते हैं। अगर आप वाहन चला रहे हैं, तो बेहतर होगा इसका सेवन न करें। चित्रकोट पहुंचने में करीब साढ़े-तीन घंटे लगे।
चित्रकोट जल प्रपात - भारत का नियागरा फॉल्स
आपको बता दें कि चित्रकोट फॉल्स को भारत का नियागरा फॉल्स ऐसे ही नहीं कहा जाता है। दरअसल यहां पर इंद्रावती नदी का पानी करीब 29 मीटर की ऊंचाई से गिरता है। जनवरी से लेकर मार्च तक पानी का बहाव अच्छा होता है। आप चाहें तो नाव से फॉल्स के करीब जा सकते हैं। हमारी यह ट्रिप अप्रैल के महीने की थी, उस दौरान ऊपर से देखने में झरने का पानी कम लग रहा था, लेकिन नीचे जाने पर उसकी तीव्रता देखने वाली थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ ही मिनट में पानी अपनी चपेट में ले लेगा। चूंकि हमारी नाव के केवट काफी अनुभवी थे, इसलिए वो फॉल्स के करीब ले जाकर वापस ले आये।
बारिश के दौरान चित्रकोट फॉल्स
बारिश के दौरान, यानि कि जून से लेकर अगस्त तक फॉल्स में नौका सेवाएं बंद कर दी जाती हैं। क्योंकि बहाव इतनी तेज़ होता है कि डूबने का खतरा बढ़ जाता है। खतरा इस बात का भी है कि इस नदी में गिरने का मतलब कई किलोमीटर तक आपको कुछ पता नहीं चलेगा कि आप कहां हैं। दूसरी बात यहां से गिरने के बाद नदी छत्तीसगढ़ के बीहड़ जंगलों के बीच से निकलती है। इसी खतरे को देखते हुए सरकार नौका सेवाएं बंद कर देती है। ऐसे में आप केवल ऊपर से नदी में मस्ती कर सकते हैं। नीचे जाने वाली सीढ़ियां भी बंद कर दी जाती हैं, क्योंकि वहां पर पानी का बहाव तेज़ होता है और अगर कोई हादसा हुआ, तो जंगल में खोजना लगभग नामुमकिन होता है।
चित्रकोट फॉल्स गेस्टहाउस
चित्रकोट फॉल्स के ठीक सामने पर्यटन विभाग द्वारा संचालित एक गेस्ट हाउस है। अगर आप चाहें तो यहां पर रात को ठहर सकते हैं। गेस्टहाउस में रुकने वाले बताते हैं कि रात को यहां केवल एक आवाज़ आती है, वो है ऊंचाई से गिरते हुए पानी की। बाकी पूरा इलाका सन्नाटे से घिरा रहता है। यहां रुकने पर वेज और नॉनवेज दोनों प्रकार के भोजन की व्यवस्था आपको गेस्टहाउस की ओर से मिलेगी। सरकार द्वारा संचालित यह गेस्टहाउस पूरी तरह सुरक्षित है। यहां रात को सुरक्षा के खास इंतजाम रहते हैं।
जगदलपुर के बीहड़ में जब सताया डर
खैर हम यहां से करीब पांच बजे निकले और तभी बारिश शुरू हो गई। तेज़ बारिश के कारण हमें फॉल्स के पास करीब एक घंटे तक रुकना पड़ा और करीब साढ़े छह बजे अंधेरा होने लगा। हमने महज एक किलोमीटर का रास्ता ही तय किया होगा कि अंधेरा और गहरा गया। रास्ते में न कोई दुकान न मकान, न कोई वाहन और न कोई स्ट्रीट लाइट। करीब 40 किलोमीटर के स्ट्रेच में एक भी लाइट नहीं थी। अंधेरे के बीच हमारी बाइक 40 की स्पीड से चलती जा रही थी। डर इस बात का भी था कि कहीं कोई नक्सली हमला न कर दे।
हमले का डर इस वजह से भी था, क्योंकि लोग कहते हैं कि अगर नक्सलियों आप सरकारी नुमाइंदे हैं, वकील हैं, पत्रकार हैं, या नेता हैं, तो नक्सली आपको बंधक बनाने में देर नहीं लगायेंगे। हां आम लोगों को वो कुछ नहीं बोलते। अब चूंकि मेरा प्रोफेशन पत्रकार है, लिहाज़ा सबसे पहले मैंने अपने आईडी कार्ड को जूते के अंदर रख दिया और मैं और मेरा साथ एक गति से आगे बढ़ते चले गए।
डर तब और गहरा हो गया, जब रास्ते में पड़ीं पुलिस व सीआरपीएफ की चौकियां खाली पड़ी थीं। मतलब 40 किलोमीटर के रास्ते में एक भी पुलिस नहीं, एक भी सीआरपीएफ बल के जवान नहीं। ऐसे में अगर कोई हमला होता है, भले ही वो नक्सलियों की ओर से नहीं हो, किसी स्थानीय लुटेरे द्वारा ही क्यों न हो, आपको कोई बचाने नहीं आयेगा।
हमारी आपसे गुज़ारिश है, अगर कभी आपको चित्रकोट फॉल्स जायें, तो शाम चार बजे के पहले वहां से वापस चल दें। नहीं तो बेहतर होगा आप फॉल्स के सामने सरकारी गेस्ट हाउस में रुक जायें।
क्योंकि जान है तो जहान है।