'फूलों की घाटी ट्रेक रूट' की खोज में आखिरकार हम उत्तराखंड के चमोली जिले पहुंचे। देहरादून से 147 किमी के घुमावदार पहाड़ी सफर के बाद हमने रात 'गोविंदघाट' में बिताने की सोची। गोविंदघाट में चमोली जिले का बड़ा बस अड्डा मौजूद है जहां से सैलानी आगे तक का सफर ट्रैकिंग के जरिए पूरा करते करते हैं, वैसे अब यहां से केदारनाथ-बद्रीनाथ के अलावा कई स्थानों के लिए बस सेवा भी शुरू हो चुकी है। गोविंदघाट में रात्रि विश्राम की अच्छी खासी व्यवस्था है साथ ही खाने-पीने के लिए कई होटल्स - ढाबे भी मौजूद हैं। दुर्गम पहाड़ी मार्गों पर कूच करने से पहले ट्रैवेलर्स यहां रूकना ज्यादा पसंद करते हैं। फूलों की घाटी ट्रेक पर आगे बढने से पहले हमारी 4-5 लोगों की टीम ने नजदीकी होटल में रात बिताने की सोची। आगे की प्लानिंग के लिए हमने तकरीबन आधे घंटे तक विचार-विमर्श किया जिसके बाद तय हुआ कि हम सुबह तड़के पहाड़ी मार्ग की तरफ कूच करेंगे। उत्तराखंड का चमोली जिला लगभग 3,525 वर्ग मील में फैला हुआ है जो बर्फ से ढके पर्वतों के बीच अलकनंदा नदी के समीप बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। यह भारत के प्रमुख प्रर्यटन स्थानों में से एक है। यहां वर्ष के हर महीने काफी संख्या में सैलानियों को आते-जाते देखा जा सकता है।
गोविंदघाट से 14 किमी तक का दुर्गम सफर
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7-8 घंटे की अच्छी खासी नींद के बाद हमने सुबह 'कुल्हड़' की चाय का आनंद उठाया। चाय की चुस्कियों के साथ आसमान को छूते पहाड़ों की ऊंचाई को निहारना अंदर ही अंदर काफी रोमांच पैदा कर रहा था। सुबह के नाश्ते के बाद हमने अपने ट्रैकिंग बैग्स को कंधों पर चढ़ाया और आगे का सफर शुरू किया। फूलों की घाटी पहुंचने के लिए पहले हमें 'घांघरिया' तक पहुंचना था जो गोविंदघाट से 14 किमी के दुर्गम फासले पर स्थित है। सुबह के 7 बज चुके थे, इस बीच हमने मार्ग के बीच पड़ने वाले 'पुलना गांव' और 'गोविंदघाट बस अड्डे' के पुल को पार किया जिसके ठीक सामने एक बड़ा सा द्वार हमारे स्वागत में खड़ा था जिसपर खूबसूरत रंग बिरंगे शब्दों में लिखा था 'फूलों की घाटी'। यहीं से शुरू होता है विश्व धरोहर 'वैली ऑफ फ्लावर्स' तक का रोमांचक सफर।
पुलना-भ्यूंडार के रास्ते
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2013 की केदारनाथ आपदा में अपना अस्तित्व खो बैठे विरान पुलना गांव इस मार्ग पर पड़ता है, जहां से अब पूरी आबादी पहाड़ी निचले इलाकों में जाकर बस चुकी है। इस गांव से होते हुए हम आगे बढ़ रहे थे जहां अबतक रास्ता सुविधाजनक ही था। प्रारंभिक सफर के बीच-बीच में कई छोटी-छोटी ढलाने भी मौजूद थीं जो हमारे आगे चलने के लिए हमारे मस्तिष्क को अधिक शारीरिक बल लगाने को कह रही थीं। चूंकि इस मार्ग से 'हेमकुंड' तीर्थ स्थल को भी जाया जाता है तो यहां थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पानी पीने की व्यवस्था भी की गई है। 10 मिनट के विश्राम के बाद हमने अपने कदम आगे बढ़ाए। हमारा ट्रैकिंग सफर अब पहाड़ी उंचाई की तरफ बढ़ रहा था जिसके लिए पैरों पर ज्यादा ज़ोर लगाने की जरूरत थी। इस मार्ग पर हमें कई पहाड़ी वनस्पतियों, पहाड़ी झरनों के मनोरम दृश्यों को देखने का मौका मिला। अपने ताज़गी भरे स्वाद के लिए उत्तराखंड के प्रसिद्ध 'बुरांश' का फूल भी इस दौरान हमें दिखा। दोपहर के भोजन के लिए हमने पुलना से कुछ किमी की दूरी पर बसे एक 'भ्यूंडार' गांव में डेरा डालने की सोची। यह गांव भी केदारनाथ आपदा का भयंकर रूप से शिकार हुआ। यहां हमने हल्का भोजन कर अपना सफर फिर से शुरु किया।
घांघरिया का मनोरम दृश्य
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भ्यूंडार गांव से घांघरिया महज कुछ ही दूरी पर स्थित है मगर यहां का मार्ग पथरीली ढलानों से भरा हुआ है। यह ट्रैकिंग सफर अब एक खतरनाक मोड़ पर आ चुका था जहां जान की जोखिम का भी डर था। डर के बीच हमने प्राकृतिक खूबसूरती का भी लुफ्त उठाया। शाम ढलते-ढलते हमने अपनी मंजिल का आधा सफर तय कर लिया था अब हम घांघरिया पहुंच चुके थे। वैसे यहां तक पहुंचने के लिए गोविंदघाट से घोड़े-खच्चर भी मिल जाते हैं जिनका संचालन स्थानीय निवासी करते हैं। जंगलों के बीच घांघरियां गांव को देखना अपने आप में काफी मनोरम था। यहां आते ही हमारी थकान मानों छूमंतर हो गई । 'हेमकुंड' और 'फूलों की घाटी' मार्ग के बीच पड़ने वाला घांघरिया एक बेहद खूबसूरत स्थल है जहां पर्यटकों की सुविधा के लिए होटल्स-लॉज के साथ कई चीजों की व्यवस्था है। यहां से हेमकुंड 6 किमी और फूलों की घाटी महज 3 किमी के खड़ी चढ़ाई पर स्थित है। अधिकतर सैलानी इस खतरनाक चढ़ाई मार्ग को देखकर पीछे मुड़ जाते हैं। रात्रि विश्राम के लिए हम यहीं के एक लॉज में ठहरे और सुबह तड़के फूलों की घाटी कूच करने का फैसला किया।
पहाड़ की खड़ी चढ़ाई से फूलों की घाटी
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घड़ी में सुबह के 6 बजते ही हमने सफर को अंतिम मोड़ देने के लिए अपनी कमर कसी और आवश्यक सामनों का निरक्षण कर आगे बढ़ चले। घाटी तक पहुंचने के लिए एक खतरनाक पुल को अभी पार करना बाकी था। इस बीच बहती नदी का शोर हमारे सामने बिलकुल सिंह की दहाड़ जैसा प्रतित हुआ। हमने किसी तरह पुल को पार किया। अब पहाड़ की खड़ी चढ़ाई हमारे सामने एक बड़ी चुनौती थी। हम एक कतार में एक दुसरे पर नजर गढ़ाए आगे बढ़ने लगे ताकी किसी भी मुसीबत के समय एक दूसरे की मदद जल्द कर सकें। यह सफर घने जंगल की बीच का था जहां अब जंगली जानवर विशेषकर भालुओं का खतरा था। यह जंगल मार्ग इतना घना था कि सूर्य की रोशनी भी किसी-किसी जगह अपने आप गायब हो जा रही थी। जंगली पक्षियों की आवाजों की बीच ये पहाड़ी सफर काफी खतरनाक होते जा रहा था। हमें इंतजार था कि कब यह घना जंगल छटे और हम फूलों की घाटी की नर्म घास पर आराम करें। अब हमारे कदम जंगल के अंतिम छोर पर आ चुके थे, बस कुछ ही कदम पर हमारी मंजिल फूलों की घाटी रह गई थी, हमने अपने कदमों को तेज गति दी और इस तरह हम घने जंगल को पार कर पहुंच गए विश्व धरोहर फूलों की घाटी पर। जहां पहाड़ी बुग्याल अपनी नर्म हरी चादर के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे। यहां हमने सहस्त्रधारा के शीतल जल से अपने गले को तर किया।
घाटी में मौजूद फूलों की असंख्य प्रजाति
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87.50 वर्ग कि.मी फैली यह घाटी अपने विभिन्न वनस्पति महत्व के लिए जानी जाती है। इस घाटी में तक़रीबन 500 से ज्यादा फूलों की प्रजातियाँ हैं। समुंद्र तल से यह घाटी 3658 मीटर पर स्थित है। यहाँ पाई जाने वाली वनस्पति न सिर्फ प्राकृतिक सुन्दरता बढ़ाती हैं, बल्कि कुछ प्रजातियां ,शारीरिक उपचार के लिए जड़ी-बूटियों का भी काम करती हैं। घाटी में अत्यधिक पाई जाने वाली फूल की प्रजाति ‘ज़िरेनीयम‘ है, जो घाटी के चारो ओर हर तरफ दिख जाएगी। घाटी में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र फूलो की रानी ‘ब्लू पॉपी, भी पाई जाती है। यहां हमने उत्तराखंड का राजीय पुष्प ब्रह्मकमल को भी देखा जो यहां कभी-कभी ही खिलते हैं। इसी के साथ हमने यहां कुछ ऐसी वनस्पति प्रजातियों (स्नेक लिली व कोबरा लिली )को भी देखा जिन्हें प्रकृति ने कुछ अद्भूत ही रूप प्रदान किया हुआ है, दूर से देखने से ये प्रजाती सर्प जैसी प्रतीत होती हैं। सच में विभिन्न रंगो के फूलो से सुसज्जित यह घाटी प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है। फिर एक बार यहां आने के इरादे के साथ इस तरह हमारा यह रोमांचक ट्रैकिंग सफर खत्म हुआ।