उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा सांस्कृतिक व धार्मिक राज्य है। यहां आज भी पौराणिक संस्कृति को जीवन का मुख्य आधार माना जाता है। यही वजह है, कि यहां आज भी वो नगर मौजूद हैं, जिनका संबंध भारतीय पौराणिक काल से है। गंगा किनारे बसा यह प्रांत लंबे समय से एक बड़ी आबादी का भरण-पोषण करते आ रहा है।
अपनी उपजाऊ भूमि व संसाधनों से निकटता के कारण, यहां समय के साथ-साथ कई बड़े उद्योग-व्यवसाय अस्तित्व में आए। हालांकि बढ़ते आधुनिकीकरण व पश्चिमी चकाचौंध की मार के बीच ये शहर अपनी पहचान खोने की कगार पर आ गए हैं। लेकिन एक सच्चाई यह भी है, कि यहां बनने वाली चीजों की गुणवत्ता का, दूसरा कोई बाजारू विकल्प आज तक नहीं बन पाया।
पीतल नगरी, मुरादाबाद
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर है, जिसे शाहजहां के बेटे 'मुराद बख्श' ने बसाया था। उन्ही के नाम पर इस शहर का नाम 'मुरादाबाद' पड़ा। यह बात शायद बहुत कम लोग जानते होंगे, कि इस शहर को 'पीतल नगरी' भी कहा जाता है। जिसकी खास वजह, यहां का 'पीतल हस्तशिल्प उद्योग'। यहां निर्मित पीतल की खूबसूरत चीजों का निर्यात विश्व के कई बड़े देशों में किया जाता है। यह शहर अपनी प्राचीन हस्तकला, पीतल उत्पादों पर रचनात्मक कारीगरी व हॉर्न हैंडीक्राफ्ट के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
इसलिए भी है प्रसिद्ध
अगर आप यहां आएं तो पीतल की बनी खूबसूरत चीजों को खरीदना न भूलें, क्योंकि इनकी गुणवत्ता का विकल्प पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। बता दें कि यह शहर पीतल बर्तनों के अलावा चीनी व कपड़े उद्योग के लिए भी जाना जाता है। यहां गन्ने, अनाज, कपास की खेती ज्यादा होती है। यह शहर उत्तर प्रदेश के कई छोटे-छोटे शहरों से घिरा हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए सबसे अच्छा 'रेल मार्ग' है। 'मुरादाबाद जंक्शन' कई बड़े शहरों व राज्यों से जुड़ा हुआ है।
'रामपुरी चाकू' वाला रामपुर
रामपुर भी उत्तर प्रदेश का एक छोटा ऐतिहासिक शहर है, जिसकी स्थापना का श्रेय, नवाब फैजुल्लाह खान को जाता है, जिन्होंने 1774-1794 तक यहां राज किया। रामपुर की गिनती, उत्तर प्रदेश के मुख्य नगरों में होती है। यह नगर अपने 'चाकू उद्योग' के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहा बनाए जाने वाले चाकू देखने में काफी आकर्षक होते हैं, जिनकी धार लंबे समय तक बनी रहती है। कहा जाता है, कि रामपुर के नवाबों के समय आम आदमी के पास दो ही मुख्य हथियार होते थे, एक तेज जबान और दूसरा तेज धारदार 'रामपुरी चाकू'।
अद्भुत नक्काशी
रामपुरी चाकू, अद्भुत कला के सांचे में ढलकर तैयार होते हैं, जिन्हे सिर्फ दक्ष कारीगर ही बना सकते हैं। छुरी के हैंडल पर उकेरी गई नक्काशी देख, इन्हें घर के किसी कोने में सजाकर रखने का दिल करता है। बताया जाता है, यहां जितने प्रकार व डिजाइन के चाकू बनते हैं, वैसे और कहीं न देखे जा सकते हैं। हालांकि आधुनिकीकरण की मार के बीच अब यह उद्योग नीचे गिरने की कगार पर आ गया है। लेकिन इन सब के बीच रामपुर में आज भी ऐसे कई बड़े कारीगर मौजूद हैं, जिन्होंने इस पारंपरिक उद्योग को बचाकर रखा हुआ है।
उत्तर भारत का 'मेनचेस्टर'
कानपुर, उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक नगर है। यह शहर अपने चमड़ा व कपड़ा उद्योग के लिए विश्व भर में जाना जाता है। कानपुर की गिनती सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि भारत के उन शहरों में होती है, जिनका देश की राष्ट्रीय आय में मुख्य योगदान है। अपने कपड़ा उद्योग के चलते इसे उत्तर भारत का 'मेनचेस्टर' भी कहा जाता है। यहां आपको ढेरों 'कपड़ा मिल' नजर आ जाएंगी, जहां दिन रात काम चलता रहता है। जो एक बड़ी आबादी को रोजगार मुहैया कराते हैं। हालांकि यह शहर धीरे-धीरे अपनी पहचान खोने की कगार पर आ गया है, यहां की कई बड़ी कपड़ा मिलों पर ताले लटक चुके हैं।
एक ऐतिहासिक नगर
कानपुर शहर का इतिहास लंबे वर्षों का है, जिसे कभी 'कान्हपुर' के नाम से संबोधित किया जाता था। कहा जाता है, इस शहर को सचेन्दी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने बसाया था। यह शहर अपनी भौगोलिक व स्थिति विशेषताओं के चलते कई सम्राटों व शासकों के हाथों से होकर गुजरा। बाद में यह शहर एक संधि के तरत अंग्रेजों के अधीन हो गया। यहां अंग्रेजों ने अपनी सैन्य छावनियों का निर्माण करवाया। प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता के कारण अंग्रजों ने यहां अपने उद्योग-धंधे खोलने शुरू किए। जिसके बाद इस शहर की काया पलट होनी शुरू हुई।
रंग-बिरंगी चूड़ियों का शहर
फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश का एक बड़ा शहर है, जो यहां बनने वाली चूड़ियों के लिए विश्व भर में जाना जाता है। यहां मुख्यत: रंग बिरंगी चूड़ियों का कारोबार किया जाता है। यहां ज्यादातर परिवार इसी उद्योग से जुड़े हैं, जो इनकी आय का मुख्य स्रोत है। यहां पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं को भी काम करते देखा जा सकता है, जो चूड़ियों पर पालिश व हिल लगाने जैसा काम करती हैं। फिरोजाबाद में अब चूड़ियों के साथ-साथ कांच के अन्य सामान बनाने का भी काम शुरू हो गया है।
चूड़ियों के अलावा
फिरोजाबाद की गिनती उत्तर प्रदेश के प्राचीन नगरों में होती है, जिसे कभी चन्द्रनगर/चंदवार के नाम से संबोधित किया जाता था। पर भारत में मुगलों के आगमन के बाद इसका नाम बदलकर फिरोजाबाद कर दिया गया। पुराने समय में यहां बहुत सी चीजों का निर्माण किया जाता था, पर वर्तमान में यहां कांच की चूड़ियां, साज-सज्जा के सामान, व वैज्ञानिक उपकरण आदि बनाए जाते हैं।
बनारस की साड़ी
उत्तर भारत का धार्मिक नगर 'बनारस', अपने धार्मिक क्रियाकलापों के साथ-साथ अपने पारंपरिक उद्योग के लिए भी जाना जाता है। यहां बनने वाली बनारसी साड़ियां विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। इस साड़ी को पहनने की तमन्ना हर स्त्री की होती है। यहां तक की विदेशी महिलाएं भी बनारसी साड़ी को पहनना बहुत पसंद करती हैं। बता दें कि हिन्दू स्त्रियां इस साड़ी को विवाह व अन्य शुभ अवसरों पर पहना ज्यादा पसंद करती हैं। बनारसी साड़ी को बनाने का पारंपरिक काम लंबे समय से चला आ रहा है। बता दें कि इस साड़ी को दक्ष कारीगर ही बना सकते हैं, क्योंकि इसपर कई तरह की आकर्षक चीजों को बनाया व जड़ा जाता है।
एक लंबी प्रक्रिया
बनारसी साड़ी को बनाने के लिए कई तरह के डिज़ाइन का इस्तेमाल किया जाता है। साड़ी में बूटी (छोटी-छोटी तस्वीरों की आकृति) का प्रयोग किया जाता है। धारीदार फूल पत्तियों के डिज़ाइन को बारीकी से बनाया जाता है, जिसे 'बेल' कहा जाता है। साथ ही 'जाल-जंगला' जैसे पैटर्न से अंदर की बूटी बनाई जाती है। साड़ी को खूबसूरत डिज़ाइन से अलंकृत करने के लिए 'झालर' भी बनाया जाता है। एक लंबी प्रकिया के बाद यह साड़ी पूर्ण रूप से बनकर निकलती है, तभी यह कहलाती है 'बनारसी साड़ी'।