अगर आप 'भगवान के अपने देश' केरल की आध्यात्मिक यात्रा पर जाना चाहते हैं, तो आपको भगवान शिव के इस भव्य मंदिर के विषय मे जरूर पता होना चाहिए, जिसके बगैर आपकी तीर्थयात्रा पूरी नहीं हो सकती। भोलेनाथ का यह मंदिर राज्य के त्रिशूर जिले में स्थित है जिसे वडकुनाथन मंदिर के नाम से जाना जाता है।
लगभग 1000 साल पुराना यह देव स्थल केरल के सबसे पुराने और उत्तम श्रेणी के मंदिरों में गिना जाता है। यह त्रिशूर शहर के केंद्र में स्थित है, और उत्कृष्ट कला और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, जो केरल की प्राचीन शैली को भली भांति दर्शाता है।
प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ वडकुनाथन मंदिर श्रद्धालुओं को एक आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण परिवेश प्रदान करता है। इस खास लेख में जानिए भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर आपकी आध्यात्मिक यात्रा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।
एक संक्षिप्त इतिहास
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जैसा कि आपको बताया गया है कि यह एक प्रचीन मंदिर है, जिसके अस्तित्व का समय 1000 साल पुराना बताया जाता। मलयालम इतिहासकार वीवीके वालथ के अनुसार यह मंदिर कभी एक पूर्व द्रविड़ कवू (देव स्थल) था। बाद में यह मंदिर छठी शताब्दी के बाद अस्तित्व में आए नए धर्म संप्रदायों के प्रभाव में आया, जिसमें बौद्ध धर्म, जैन धर्म और वैष्णववाद शामिल थे।
माना जाता है कि केरल का एक और प्राचीन मंदिर परमेक्कावु भगवती मंदिर भी कभी इसी देव स्थान के अंदर स्थित था। लेकिन मंदिर के दस्तावेज बताते हैं कि कुडल मानिक्यम मंदिर, कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर और अम्मा थिरुवाड़ी मंदिर इस मंदिर से काफी प्राचीन हैं।
पौराणिक किवदंतियां
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इस मंदिर की उत्पत्ती से जुड़ी कई पौराणिक किवदंतियां प्रचलित हैं, जिसमें से एक भगवान परशुराम से जुड़ी है। वडकुनाथन मंदिर की उत्पत्ति की कहानी ब्रह्मांड पुराण में संक्षिप्त रूप में वर्णित है, इसके अलावा अन्य संदर्भों में भी इस मंदिर के विषय में काफी जानकारी प्राप्त होती है। चूंकि यह मंदिर 1000 साल पुराना है तो इसकी उत्पत्ति के विषय में कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन फिर भी ज्यादातर स्कॉलर इस केंद्रीय तथ्य पर सहमत हैं कि भगवान शिव के इस मंदिर की स्थापना उनके ही एक अंश परशुराम द्वारा की गई थी।
माना जाता है कि नरसंहार के बाद खुद को शुद्ध और अपने कर्म को संतुलित करने के लिए उन्होंने एक यज्ञ किया, जिसके बाद उन्होंने दक्षिणा के रूप में ब्राह्मणों को सारी भूमि दे दी। उन्हें अब तपस्या के लिए नई जगह की तलाश थी इसलिए उन्होंने समुद्र के देवता वरूण से अनुरोध किया थी उन्हे तपस्या के लिए समुद्र के किनारे कोई जमीन का टुकड़ा प्रदान करें। एक अन्य संस्करण के अनुसार, कुछ संतों ने यज्ञ के अंत में परशुराम से संपर्क किया और उनसे अनुरोध किया कि वे उन्हें कुछ भूमि दें।
परशुराम ने उनके लिए फिर वरुण भगवान से अनुरोध किया। वरुण देवता ने उन्हें एक सूप दिया और उसे समुद्र में फेंकने के लिए कहा।आज्ञानुसार परशुराम ने सूप समुद्र में फेंका जिससे एक बड़े जमीन क्षेत्र का निर्माण हुआ। माना जाता है कि वो समुद्र का जमीनी भाग आज का केरल है।
मंदिर की संरचना
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लगभग 9 एकड़ के क्षेत्र को घेरे हुए वडकुनाथन मंदिर शहर के केंद्र में एक ऊंचे पहाड़ी इलाके पर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर विशाल पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है। मंदिर परिसर के अंदर चार गोदुरम चार मुख्य दिशाओं का सामना की ओर मौजूद हैं। आंतरिक मंदिर और बाहरी दीवारों के बीच, एक बड़ा खुला भाग है।
दक्षिण और उत्तर वाले प्रतिबंधित हैं। श्रद्धालुओं को अंदर प्रवेश पूर्वी और पश्चिमी गोपुरम के माध्यम से मिलता है। एक व्यापक गोलाकार ग्रेनाइट दीवार आंतरिक मंदिर और बाहरी मंदिर को अलग करती है।
मंदिर के देवता
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इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जो यहां एक विशाल शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं। धार्मिक परंपरा के अनुसार शिव को घी का अभिषेक किया जाता है। पूरी तहर से घी से ढके होने के कारण शिवलिंग दिखाई नहीं देता। घी की एक मोटी परत हमेशा इस विशाल लिंगम को ढकी रहती है। पारंपरिक धारणा के अनुसार यह शिव निवास, बर्फ से ढके कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है।
यह एकमात्र मंदिर है जहां शिवलिंग दिखाई नहीं देता। भक्तों को यहां केवल 16 फुट उंचा घी का टीला ही नजर आता है। ऐसा माना जाता है कि यहां चढ़ाने वाले वाले घी में कोई गंध नहीं होती और यह गर्मियों के दौरान भी पिघलता नहीं है।
कैसे करें प्रवेश
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वडकुनाथन मंदिर केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है, जहां आप परिवहन के तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा कोच्चि एयरपोर्ट है।
रेल मार्गे के लिए आप त्रिशूर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों से त्रिशूर राज्य के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ी हुआ है।