मध्य प्रदेश के चंदेरी शहर के नाम से साड़ियां भी बहुत मशहूर हैं। हर किसी को चंदेरी की सिल्क की साड़ियां खूब पसंद आती हैं। हालांकि ऐतिहासिक शहर चंदेरी सिर्फ साड़ियों के लिए ही नहीं बल्कि चंदेरी किले के लिए भी जाना जाता है।
मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित चंदेरी किला स्थापत्यकला का शानदार नमूना है। यह एक विशाल मुगल किला है। गुजरात के प्राचीन बंदरगाहों की निकटता के कारण 11 वीं सदी में चंदेरी को अधिक महत्व प्राप्त हुआ था। पहाडों, झीलों और वनों से घिरा चंदेरी शहर आज देश की प्रमुख चौकी में से एक है।
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चंद्रागिरि नामक एक पहाड़ी पर शहर के ऊपर 71 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है चंदेरी किला। ये किला 5 किमी लंबा और 1 किमी चौड़ा है। किले से मिले शिलालेखों को ग्वालियर संग्रहालय में रखा गया है। कहा जाता है कि इस किले को 11वीं शताब्दी के प्रतिहारा राजा कीर्ति पाल द्वारा बनवाया गया था।
पुरान किला तो बहुत कम रह गया था। बाद में इसे मुगल और बुंदेल राजाओं द्वारा अपनी स्थापत्य कला और पसंद अनुसार दोबारा बनवाया गया था। किले के अंदर का महल बुंदेल वंश के राजा द्वारा निर्मित करवाया गया है। मुगल काल के शासक जैसे अलादद्दीन खिलजी और बाबर ने भी इस किले के जीर्णोंद्धार के लिए अथक प्रयास किए थे।
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चंदेरी किले के तीन दरवाज़े हैं। इसमें से एक दरवाज़े को खूनी दरवाज़ा भी कहा जाता है। माना जाता है कि कैदियों को खूनी दरवाजे के ऊपर दुर्ग से फेंका जाता था और नीचे गिरकर उनके शरीर के टुकड़े हो जाते थे। इसलिए इस दरवाज़े का नाम खूनी दरवाज़ा रखा गया है जिसका मतलब ऐसे दरवाज़े से है जो खून से रंगा हुआ हो।
किले के दक्षिण-पश्चिम में एक और दरवाज़ा है जिस काटी घाटी कहा जाता है। इसकी लंबाई 59 मीटर, चौड़ाई 12 मीटर और ऊंचाई 24.6 मीटर है।
किले के परिसर के ठीक बाहर जोहर स्मारक स्थित है। माना जाता है कि मुगलों द्वारा युद्ध में मेदिनी राय के हार जाने के बाद राजपूत घराने की स्त्रियों ने जोहर तल में कूदकर खुद को जोहर यानि आग के हवाले कर दिया था। जोहर तल के ऊपर एक विशाल पट्टिका है जोकि इसके अंदर की स्थित को दर्शाती है।
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जोहर स्मारक के पास बाइजु बावरा की समाधि भी है। चंदेरी में जन्म लेने वाले बाइजु, वृंदावन के स्वामी हरिदास के शिष्य थे। उन्हें चंदेरी बहुत पसंद था और उन्होंने इसके सम्मान में कई गाने भी गाए थे।
ग्वालिय के राजा मान सिंह के दरबार में बाइजु ने अकबर के दरबार के कवि तानसेन को हरा दिया था।
किले के अंदर तीन मंजिला महल है जिसमें एक ओर फव्वारा और आंगन में टैंक है और दूसरी ओर गढ़ और घड़ी का खंभा लगा है। किले के प्रवेश द्वारा पर मस्जिद स्थित है। माना जाता है कि ये मस्जिद 14वीं शताब्दी की है। इस मस्जिद पर की गई नक्काशी मिहराब की स्थापत्य कला को दर्शाती है।
हवा पौड़ बालकनी से आपको पूरे चंदेर शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देगा। चंदेरी किला स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है और इसे देखने का अनुभव आपके लिए अविस्मरणीय रहेगा। किले से चंदेरी शहर का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। चंदेरी जाने पर इस किले को जरूर देखें।