में से एक लेपाक्षी मंदिर वैसे तो अपने वैभवशाली इतिहास के लिये प्रसिद्ध है, लेकिन मंदिर से जुड़ा एक चमत्कार आज भी लोगों के लिये चुनौती बना है। यह स्थान, दक्षिण भारत में तीन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है जो भगवान शिव" loading="lazy" width="100" height="56" />दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक लेपाक्षी मंदिर वैसे तो अपने वैभवशाली इतिहास के लिये प्रसिद्ध है, लेकिन मंदिर से जुड़ा एक चमत्कार आज भी लोगों के लिये चुनौती बना है। यह स्थान, दक्षिण भारत में तीन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है जो भगवान शिव
उत्तर प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध मंदिर
लेपाक्षी मंदिर को हैंगिंग पिलर टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर कुल 70 खम्भों पर खड़ा है जिसमे से एक खम्भा जमीन को छूता नहीं है बल्कि हवा में ही लटका हुआ है।
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इस एक झूलते हुए खम्भे के कारण इसे हैंगिंग टेम्पल कहा जाता है। यह पिलर भी पहले जमीन से जुड़ा हुआ था पर एक ब्रिटिश इंजीनियर ने यह जानने के लिए की यह मंदिर पिलर पर कैसे टिका हुआ हुआ है, इसको हिला दिया तब से यह पिलर झूलता हुआ ही है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है की इसके नीचे से कपडा निकलने से सुख सृमद्धि बढ़ती है।इसके अलावा इस मंदिर का संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है।
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इस मंदिर में इष्टदेव श्री वीरभद्र है। वीरभद्र, दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर यहां भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है। मंदिर 16 वीं सदी में बनाया गया और एक पत्थर की संरचना है। मंदिर विजयनगरी शैली में बनाया गया है।
कहां है स्थित?
लेपाक्षी मंदिर दक्षिणी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित है। यह हिन्दुपुर के 15 किलोमीटर पूर्व और उत्तरी बेंगलुरू से लगभग 120 किलोमीटर दूरी पर है। मंदिर एक कछुआ के खोल की तरह बने एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसलिए यह कूर्म सैला बी कहा जाता है।PC:Somasakshini
1583 में हुआ था निर्माण
इस मंदिर का निर्माण 1583 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने करा था जो की विजयनगर राजा के यहाँ काम करते थे। हालांकि पौराणिक मान्यता यह है की लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्तिथ विभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्तय ने करवाया था।PC:Narasimha Prakash
लेपाक्षी मंदिर
लेपाक्षी मंदिर 70 खम्बो के आधार पर खड़ा हैं। इस मंदिर में एक और परम्परा हैं। वहा श्रद्धालु लटके हुए खंबे के निचे से एक कपड़ा निकालते हैं। माना जाता है कि इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।बताया जाता हैं की पहले सभी खंभों की तरह यह खंभा भी ज़मीन पर टिका हुआ था।PC: MADHURANTHAKAN JAGADEESAN
लेपाक्षी मंदिर
सालो पहले एक ब्रिटिश इंजीनियर ने यह जानना चाहा कि यह मंदिर खंभों पर कैसे टिका हुआ है। उसने इस कोशिश में खंभे को हिलाया और उसका धरती से संपर्क टूट गया। तब से लेकर आज तक यह खम्बा हवा में झूल रहा हैं।PC: MADHURANTHAKAN JAGADEESAN
वास्तुकला
मंदिर 16 वीं सदी में बनाया गया और एक पत्थर की संरचना है। इस मंदिर की सबसे दिलचस्प पहलू एक पत्थर का खंभा है। इस स्तंभ की लंबाई में 27ft और ऊंचाई में 15 फुट और एक नक्काशीदार स्तंभ है।यह स्तंभ जमीन को छूता नहीं है। इसे लटकता हुआ स्तम्भ भी कहते है। अक्सर इसके नीचे कागज या कपड़े का एक टुकड़ा गुजरा कर इसकी रहस्यमई खम्बे का प्रदर्शन किया जाता है। इस स्तंभ के कारण लेपाक्षी पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है ।PC:Nandini
मुख्य देवता
इस मंदिर में इष्टदेव श्री वीरभद्र है। वीरभद्र , दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इस के अलावा, शिव के अन्य रूपों - अर्धनारीश्वर ,कंकाल मूर्ति,दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर यहाँ भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है।PC: Vu2sga
पैर के निशान
यहां एक पैर का निशान भी है, जिसको लेकर अनेक मान्यताएं हैं। इस निशान को त्रेता युग का गवाह माना जाता है। कोई इसे राम का पैर तो कोई सीता के पैर का निशान मानते हैं। बताते हैं कि ये वही स्थान है, जहां जटायु ने राम को रावण का पता बताया था।PC: Vu2sga
स्वयंभू शिवलिंग
इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रौद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। 15वीं शताब्दी तक ये शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान था, लेकिन विजयनगर रियासत में इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया, वो भी एक अद्भुत चमत्कार के बाद। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि पहले यहां स्वामी पैदा हुआ था। 1538 में यहां भगवान की प्रतिष्ठा के ग्रुप अन्ना के दो पुत्र थे। एक पुत्र बोल नहीं पाता था। यहां पूजा करने के बाद उसके बेटे को बोलना आ गया और उसके बाद मंदिर बनाया। यहां वीरभद्र स्वामी की स्थापना की। उन्होंने इस मंदिर का पूरा निर्माण करवाया।PC: Madhavkopalle
नंदी की मूर्ति
लेपाक्षी मंदिर से 200 दूर मेन रोड पर एक ही पत्थर से बनी विशाल नंदी प्रतिमा है जो की 8. 23 मीटर (27 फ़ीट) लम्बी, 4.5 मीटर (15 फ़ीट) ऊंची है। यह एक ही पत्थर से बनी नंदी की सबसे विशाल प्रतिमा है।
PC: rajaraman sundaram
शेषनाग
नंदी की विशालकाय मूर्ति से थोड़ी दूर पर ही शेषनाग की एक अनोखी प्रतिमा भी है। बताया जाता है कि करीब साढ़े चार सौ साल पहले ये मूर्ति एक स्थानीय शिल्पकार ने बनाई थी। इसे बनाए जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। नंदी और शेषनाग का एक साथ एक जगह पर होना, ये इशारा था कि मंदिर के भीतर महादेव और भगवान विष्णु से जुड़ी कोई और अद्भुत कहानी है।PC:Chandan Amarnath
लेपाक्षी मंदिर
एक डांस हॉल नृत्य मंच इस मंदिर में है और आसपास के क्षेत्र में शादियों का आयोजन करने के लिए एक कल्याण मंडप है।PC: Rajesh dangi
लेपाक्षी मंदिर
मंदिर में बने विशाल गलियारों का एक द्रश्य।
PC: rajaraman sundaram
छत पर शिव पेंटिंग
मंदिर की छत पर बनी आकर्षक शिव पेंटिंग।
PC:Pp391
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग द्वारा- लेपाक्षी का नजदीकी एयपोर्ट बेंगलुरु एयपोर्ट है, जोकि अनंतपुर से 100 किमी की दूरी पर स्थित है ।
सड़क मार्ग: - लेपाक्षी अच्छी तरह से हैदराबाद और बंगलुरू जैसे शहरों से राजमार्ग एनएच 7 द्वारा जुड़ा हुआ है।
रेल द्वारा - लेपाक्षी का नजदीकी रेलवे स्टेशन हिन्दुपुर है ।
PC:rajaraman sundaram