अंकोत्तका (वर्तमान में अकोता) एक छोटा सा कस्बा है, जो विश्वामित्री नदी के दाएं किनारे पर स्थित है। 5वीं और 6ठी शताब्दी में यह जगह जैन धर्म और जैन अध्ययन का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था। अब तक यहां से र्तीथकर के 68 कांसे का चित्र खोजा जा चुका है और इन्हें वड़ोदरा...
महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी पश्चिमी भारत का सबसे विख्यात शैक्षणिक संस्थान है। यहां एक पुरातात्त्विक विभाग भी है, जहां हड़प्पा सभ्यता और बौद्ध स्थल देवी-नी-मोरी में पाए गए अवशेषों को रखा गया है। इसके अलावा यहां ह्यूमन जेनाम रिसर्च, सोशल वर्क और टेक्नोलॉजी विभाग भी...
लक्ष्मी विलास पैलेस
वड़ोदरा के राजमहल 1890 में महाराजा सयाजीराव के समय में बनवाए गए थे। महल के निर्माण के लिए उन्होंने मेजर चार्ल्स मेंट को नियुक्त किया था। वहीं बाद में काम को पूरा किया था आरएफ चिसोल्म ने। इंडो-सारासेनिक परंपरा से बने इन...
सयाजीबाग के दो म्यूजियम में से एक वड़ोदरा म्यूजियम है। इस म्यूजियम का निर्माण महाराजा सयाजीराव तृतीय के संरक्षण में मेजर चार्ल्स मंट और आरएफ चिसोल्म ने 1894 में करवाया था। इस म्यूजियम में मुलग लघुचित्र, मूर्ति और टेक्सटाइल से लेकर जापान, तिब्बत और नेपाल की वस्तुओं...
दभोई वड़ोदरा का एक कस्बा है, जिसे पहले दर्भावती नाम से जाना जाता था। इस प्रचीन शहर का गिरनार के जैन धर्मग्रथों में बहुत महत्व है। दभोई का किला हिंदू सेना की वास्तुशिल्प का एक दुर्लभ उदाहरण है, जिसे आज भी देखा जा सकता है।
शहर में चार दरवाजें हैं- पूर्व में...
एमएस यूनिवर्सिटी का पुरातत्व विभाग देवी-नी-मोरी में पाए गए बौद्ध अवशेषों के लिए जाना जाता है। इसके अलावा यहां खुदाई में मिले हड़प्पा सभ्यता के सभी ऐतिहासिक अवशेषों को देखा जा सकता है।
वड़ोदरा वेटलैंड एंड ईको कैंपसाइट एक जलाशय है, जिसका इस्तेमाल आसपास के 25 गांवों में सिंचाई के लिए किया जाता है। यह वेटलैंड दभोई से 10 किमी दूर है। बर्डवॉचिंग के लिए भी एक यह एक अच्छा स्थान है और यहां आप स्टाक, टर्न, आइबिस और स्पूनबिल जैसे पक्षियों को देख सकते...
इस बाग को 1879 में महाराजा सयाजीराव तृतीय ने बनवाया था। 45 हेक्टियर में फैले इस बाग में एक फ्लावर क्लॉक, दो म्यूजियम, एक तारामंडल, एक चिड़ियाघर और एक टॉय ट्रेन है। तारामंडल के ठीक बगल में एक एस्ट्रोनॉमी पार्क भी है, जहां आप प्रचीन भारत के एस्ट्रोनॉमिकल उपकरण देख...
यह एक मानवनिर्मित झील है जहां पर्यटकों के लिए बोटिंग की सुविधा भी है। गणोश चतुर्थी के मौके पर ज्यादातर गणोश प्रतिमा में इसी झील में विसजिर्त किया जाता है।
संखेड़ा में खराड़ी समुदाय के लोग बढ़ई का काम करते हैं। वे लकड़ी की रौगन की हुई जालियों का निर्माण करते हैं, जिन्हें इस जगह के नाम के कारण संखेड़ा कहा जाता है। रोचक बात यह है कि अपनी उत्कृष्टता के कारण इसे पूरी दुनिया में जाना जाता है।
यह आश्रम वड़ोदरा शहर के डांडिया बाजार में स्थित है। ऋषि अरविंदो घोष कभी सयाजीराव तृतीय के निजी सचिव और बड़ौदा कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर व उप-प्राचार्य थे। यही बड़ौदा कॉलेज आज एमएस यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है। गुजरात में रहने के दौरान वह इसी आश्रम में...
1 - तामबेकर वाड़ा
यह भवन एक समय में वड़ोदरा के दीवान का घर हुआ करता था। फिलहाल यह भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत है। यह भवन 19वीं शताब्दी की भित्ती चित्रों के लिए जाना जाता है, जिसे मराठा परंपरा के अनुसार बनाया गया था। इसके...
राजस्थान सीमा पर स्थित छोटा उदयपुर पूर्वी गुजरात के शाही रियासतों में से एक है। यह एक झील के किनारे बसा है और यहां ढेरों मंदिरें हैं। यहां के जैन मंदिर में विक्टोरियन वास्तुशिल्पीय शैली की झलक मिलती है। वहीं कुसुम विलास महल और प्रेम भवन को शाही परिवार की अनुमति...
इस मंदिर को इलेक्ट्रीकल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग द्वारा बनाया गया है। इसकी खास बात यह है कि इसका निर्माण एल्युमिनियम शीट से किया गया है। इसमें दक्षिणमूर्ति (शिव) की प्रतिमा के अलावा अन्य धार्मिक संकेत भी देखे जा सकते हैं। इस मंदिर की वास्तुशिल्पीय बनावट काफी...
इन गुफाओं का इतिहास पहली और दूसरी शताब्दी से मिलता है। ये सभी बौद्ध गुफाएं हैं और इसमें विशालकाय सिंह स्तंभ बने हुए हैं। पहाड़ी पर कुल मिलाकर सात गुफाएं और ईंट से बना एक स्तूप भी है।