वारंगल भारत के दक्षिणी राज्य आन्ध्रप्रदेश का एक जिला है और 12वीं से 14वीं ईस्वी के मध्य ककातिया शासकों की राजधानी था। राज्य का पाँचवाँ सबसे बड़ा शहर वारंगल अपने विशाल टीले, जिसे कि एक बड़ी चट्टान से काट कर बनाया गया है, के कारण प्राचीन समय में ओरगूगौलू या ओम्टीकोण्डा के नाम से जाना जाता था। वारंगल शहर वारंगल जिले में स्थित है जो हनामाकोण्डा और काजीपेट से मिलकर बना है।
वारंगल किला जैसी कई वास्तुकला समृद्ध इमारते पर्यटकों के लिये लोकप्रिय आकर्षण हैं और ऐसा माना जाता है कि इस सुन्दर शहर के निर्माण के पीछे ककातिया वंश के प्रोला राजा का हाथ था। इटली के प्रसिद्ध यात्री मारको पोलो ने अपनी यात्रा पुस्तिका में वारंगल के बारे में लिखा है और ककातिया शासन के दौरान सांस्कृतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में इस स्थान के वर्चस्व का वर्णन मिलता है।
वारंगल की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है और लाल मिर्च, तम्बाकू और चावल यहाँ की मुख्य रूप से उगाई जाने वाली फसलें हैं। शहर अपनी लगभग दस लाख की जनसंख्या के कारण इतराता है।
युगों के बीच से चहलकदमी
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि 12वीं से 14वीं ईस्वी के मध्य ककातिया वंश के शासकों ने वारंगल पर राज्य किया। प्रताप रूद्र की हार के बाद मुसुनरी नायकों का 50 वर्षीय शासन स्थापित हुआ। यह शासन आपसी रंजिश और विभिन्न नायक प्रमुखों के बीच विश्वास की कमी के कारण समाप्त हो गया और बहमनी लोगों ने शहर का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
मुगल शासक औरंगजेब ने 1687 ई0 में गोलकुण्डा (जिसका भाग वारंगल भी था) सल्तनत पर कब्जा कर लिया और 1724 तक यह ऐसे ही रहा। 1724 ई0 में हैदराबाद राज्य अस्तित्व में आया और महाराष्ट्र और कर्नाटक के क्षेत्रों के साथ वारंगल इसका भाग बना। सन् 1948 में हैदराबाद भारतीय राज्य बना और 1956 में इस राज्य के तेलगू भाषी इलाके कट कर आधुनिक आन्ध्रप्रदेश के भाग बन गये।
वारंगल के शिलालेखों से इसप्रकार के सबूत मिलते हैं कि 12वीं शताब्दी से पहले ककातिपुरा (जहाँ के कारण ककातिया वंश का नाम पड़ा) वारंगल शहर का वैकल्पिक नाम हो सकता है।
वारंगल और इसके आसपास के पर्यटक स्थल
वारंगल अपने ऐतिहासिक महत्व, शहर में विभिन्न प्रकार की आश्चर्यजनक इमारतों, वन्यजीव अभ्यार्णयों तथा प्रभावशाली मन्दिरों के कारण साल भर भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।
पाखल झील, वारंगल का किला, हजार खम्भों वाला मन्दिर और रॉक गार्डेन वारंगल जिले के कुछ लोकप्रिय आकर्षण हैं। पद्माक्षी मन्दिर और भद्रकाली मन्दिर जैसे अन्य मन्दिर भी समाज के विभिन्न वर्गों के तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं। विभिन्न झीलों और पार्कों के साथ वारंगल प्लैनेटोरियम भी पर्यटकों को प्रिय हैं।
वारंगल जिले में हर दो वर्ष में एक बार आयोजित होने वाले समक्का - सरक्का जटरा सम्मेलन (जिसे सम्मक्का सरलम्मा जटरा भी कहते हैं) में लगभग एक करोड़ लोग आते हैं। पुराने समय के ककातिया शासन के दौरान के एक नाजायज कानून के खिलाफ मा-बेटी के जझारूपन की याद में इस महोत्सव को मानाया जाता है। यह कुम्भ मेला के बाद एशिया का दूसरा सबसे बड़ा जमावड़ा होता है।
यहाँ का बथूकम्मा त्यौहार भी एक विशेष शैली में मनाया जाता है जिसमें महिलायें चुने हुये फूलों से देवी की पूजा करती हैं।
वारमगल कैसे पहुँचें
सरकारी बसें सारे शहर में चलती हैं और विभिन्न आकर्षणों तक जाने और और यात्रा करने का सबसे किफायती तरीका है। ऑटोरिक्शा भी पर्याप्त संख्या में देखे जा सकते है इसलिये यातायात के साधन चिंता का विषय नहीं है। ऑटोरिक्शा मीटर के हिसाब से नहीं चलते हैं इसलिये किसी प्रकार की असुविधा से बचने के लिये यात्रा से पहले ही किराया तय कर लेना बेहतर होता है।
वारंगल आने का सबसे बढ़िया समय
यहाँ आने का सबसे बढ़िया समया अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है।
पर्यटकों के बीच अत्धिक लोकप्रिय होने के कारण यदि पहले से व्यवस्था न की जाये तो रहने की व्यवस्था करना काफी कठिन होता है। किफायती होटल 750 रू प्रति कमरे की दर से साल भर उपलब्ध रहते हैं। हलाँकि गर्मियों में इनका उपयोग नहीं करने की सलाह दी जाती है क्योंकि वारंगल में बहुत गर्मी पड़ती है। एयर कंडिशनर के साथ डीलक्स कमरे लगभग 1200 रू की दर पर उपलब्ध रहते हैं और इनमें से काफी वारंगल किले के आसपास हैं। जो लोग 4000 से 5000 रू प्रतिदिन के हिसाब से खर्च कर सकते हैं उनके लिये शानदार रिजॉर्ट का विकल्प है। इन बैभवशाली रिजॉर्ट में आपके लिये इन्टरनेट, तरणताल और विभिन्न प्रकार के भोजन वाले रेस्टोरेन्ट की सुविधा उपलब्ध रहती है।