यह एक मकबरा है और इसका नामकरण इसमें मुख्य रूप से प्रयुक्त होने वाली रंगीन चीनी टाइल्स पर हुआ है। चीनी का रौजा महान विद्वान व कवि और मुगल बादशाह शाहजहां के प्रधानमंत्री मुल्लाह शुकरुल्लाह शिराजी की कल्पना का परिणाम है।
1935 में निर्मित यह मकबरा युमना नदी के किनारे पर है और एतमादुद दौला के मकबरे से एक किमी दूर है। भारत में यह अपने तरह का पहला निर्माण था, जिसमें विस्तृत रूप से चमकदार कांच के टाइल्स का प्रयोग किया गया था। इसलिए इसे भारत में भारतीय व पर्सियन वास्तुशिल्प शैली से बना ऐतिहासिक स्थल होने का गौरव प्राप्त है।
मकबरे का निर्माण आयताकार आकार में किया गया है और इसमें मुख्य रूप से भूरे पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसके दीवार को रंगीन टाइल्स से सजाया गया है और उनपर इस्लामिक लिखावट के चिन्ह देखे जा सकते हैं।
मकबरे का बीच का हिस्सा एक अष्टभुज आकृति है, जिसमें आठ वक्राकार गुफाएं हैं। इस मकबरे की सबसे बड़ी खासियत इसकी अफगान शैली में बनी गोल गुंबद है, जिसपर पवित्र इस्लामिक शब्द लिखे गए है। दुर्भाग्यवश यह मकबरा अब काफी उजड़ सा गया है, फिर भी यह अपनी मूल भव्यता को प्रदर्शित करता है।