तिनट्टुलिखुनती, बलांगीर का एक छोटा सा गांव है जो बलांगीर शहर से लगभग 213 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस गांव में कई प्रकार के धार्मिक आयोजन किए जाते है और यहां सावापुरिया वंश के शासन से ऐसा होता आ रहा है। पटनागढ़ पर सावापुरिया वंश से पहले सोमावमशी क्षत्रिय का शासन...
हरीशंकर, बलांगीर की गंधमर्दन पहाडियों पर स्थित है। यह एक शानदार प्राकृतिक सुंदरता वाला स्थल है और एक हिंदू तीर्थ स्थल भी है। इस स्थान से एक बारहमासी नदी होकर गुजरती है। यह सथान, भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण को समर्पित है। यहां स्थित कई...
राजेन्द्र पार्क, लगभग 100 साल पुराना पार्क है जिसे पटनागढ़ के अंतिम राजा एचएच राजेन्द्र नारायण सिंह देव के द्वारा बनवाया गया था। यह पार्क, बलांगीर के केंद्र में स्थित है। इस पार्क में सैकड़ों तरीके और किस्मों के गुलाब के फूल है। शाम के समय इस पार्क...
पटनाघर, बलांगीर से 40 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर कई प्राचीन मंदिर स्थित है। पटमेश्वरी मंदिर को चालुक्य शैली की वास्तुकला में बनाया गया है। सोमेश्वर शिव मंदिर, को 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था जो एक महत्वपूर्ण...
संताला, बलांगीर से 35 किमी. की दूरी पर स्थित है जो पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व रखती है। यहां के मां चंडेश्वरी ठाकुरानी मंदिर में, देवी चंडी की मूर्ति स्थापित है। देवी को इस मंदिर में महिषासुरमर्दिनी के अवतार में प्रस्तुत किया गया है। इस मंदिर...
जल महादेव, बलांगीर से 84 किमी दूर स्थित है। इस जगह की ख़ासियत यह है कि यहां लोग, शिवलिंग पर ऊपर से दूध और पानी चढ़ाते है। यहां भगवान की पूजा करने का यही तरीका है। जल महादेव पर हम भगवान शिव के स्वंभू या भगवान शिव के रूप के दर्शन कर सकते है। यहां दूर -...
रानीपुर - झारीयल, बलांगीर से 104 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह दो प्राचीन गांव है। रानीपुर वह गांव है जहां पटनागढ़ की रानी निवास करती थी और झारीयल एक किला है। इस स्थान का धार्मिक महत्व भी है। यहां सभी धर्मो को एक समान माना जाता है। शैव, वैष्णव,...
आनंद निकेतन भी खाजुपल्ली आश्रम की तरह प्रसिद्ध है जो बलांगीर से 5 किमी. की दूरी पर खाजेुनपल्ली में स्थित है। इस आश्रम की स्थापना परमहंस स्वामी श्री सत्याप्रजानंद सरस्वती जी ने 1985 में की थी। यह आश्रम, 40 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है।...
मुर्सिंग एक आदिम गांव है जहां उड़ीसा के आदिवासी निवास करते है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिम्हा ने मुरा नाम के दानव को मार डाला था। इस स्थान पर भगवान नरसिम्हा की पूजा की जाती है। यहां कोई भव्य मंदिर नहीं है लेकिन फिर...