दूरशेत के छोटे से शहर के पास वरद विनायक का मंदिर बड़ा आकर्षण केंद्र है। इसका निर्माण लगभग तीन सदी पहले 1725 ईस्वी पश्चात पेशवा सरदार महादेव वरद विनायक बिवालकर के द्वारा किया गया।समय के साथ मंदिर जीर्ण हो चुका है और बाहर से आकर्षक नही दिखता। परंतु जैसे ही आप इसके अंदर जाते हैं आपको 25 फीट ऊंचा एक गुंबद दिखता है।
यहाँ वरद विनायक – गणपति का एक रूप, की दो मूर्तियाँ हैं। बायीं ओर की मूर्ति संगमरमर की है जबकि दूसरी मूर्ति सिन्दूर से ढँकी हुई है।मंदिर के उत्तर में गोमुख है जिसका अर्थ है गाय का मुँह। इस बिंदु से पवित्र पानी निकलता है। अन्य आकर्षण नंदादीप है जो ईस्वी सन 1892 से लगातार जल रहा है।