कुंभकोणम का सोमेस्वर मन्दिर सोमेस्वर भगवान (भगवान शिव के स्वरूप), चिक्केस्वर और देवी सोमसुन्दरी को समर्पित है। पोर्टामराई टंकी के पूर्वी तरफ से मन्दिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। आप मन्दिर तक सारंगपाणि मन्दिर के दक्षिणी सड़क द्वारा भी पहुँच सकते हैं।
हिन्दू मान्यता के अनुसार जब अमृत कलश फूट गया था तो एक धागे जैसी संरचना छल्ले के रूप में कलश से बाहर आयी। इस छल्ले से ही इस स्थान पर शिवलिंग का निर्माण हुआ जहाँ आज सोमेस्वर मन्दिर स्थित है।
मन्दिर के वास्तुकला पर गौर करने पर आपको 13वीं शताब्दी की द्रविड़ शैली की याद तुरन्त आ जायेगी। यह वह समय था जब अन्तिम चोल शासक कुंभकोणम पर राज्य कर रहे थे। वास्तव मे मन्दिर के निर्माण को भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती के अनन्य भक्त चोल राजाओं को समर्पित है। बाद के राजाओं ने इसमें निर्माण कराये लेकिन शैली मुख्य रूप से चोल राजाओं की ही है।