गड़िया पर्वत कांकेर के सबसे ऊँचे पहाड़ हैं। यह एक प्राकृतिक किला है और पहले कभी कन्द्र वंश के राजा धर्मदेव की राजधानी घोषित था। पहाड़ी के ऊपर पानी की झील है जो कभी नहीं सूखती। दूध नदी पहाड़ों से उतरती है।
इस झील के साथ एक लोककथा प्रचलित है। झील के दो भाग सोनाई और रूपाई के नाम से जाने जाते हैं जो राजा की दो बेटियों के भी नाम थे। ऐसा माना जाता है कि दोनो बेटियाँ झील में गिर गईं थी और इसीलिये इसका नाम सोनाई रूपाई तालाब पड़ा। गहरे पानी में एक सुनहरी तथा एक रजत मछली पाई जाती हैं जिन्हें अभी भी जीवित माना जाता है।
चूरी पगार नाम की एक गुफा इस झील के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। इस गुफा में 500 लोग आसानी से घुस सकते हैं और इसे बाहरी आक्रमणकारियों से बचाव के लिये प्रयोग किया जाता था। जोगी गुफायें पहाड़ी के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित हैं। यह संकरी गुफा भिक्षुओं के ध्यान के लिये शरण स्थली के रूप में थी। इसी पहाड़ पर एक शीतला मन्दिर भी स्थित है।
गड़िया पर्वत पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है और हजारों भक्त यहाँ आते हैं।