दिलकुशा कोठी, लखनऊ के दिलकुशा क्षेत्र में गोमती नदी के तट पर स्थित है, इस कोठी को सन् 1800 में एक ब्रिटिश मेजर गोरे ऑस्ले ने बनवाया था, जो अवध के नवाब के दोस्त हुआ करते थे। वर्तमान में यह कोठी या प्राचीन स्मारक एक खंडहर में तब्दील हो चुका है।
इस इमारत की वास्तुकला डिजायन में इंग्लैंड के नॉर्थम्बरलैंड के सिटॉन डेलावल हॉल के पैटर्न की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। इसे वास्तव में नवाबों के शिकार लॉज के रूप में बनवाया गया था लेकिन बाद में इसे गर्मियों में रहने वाले घरों के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा।
हैरत की बात यह है कि इस कोठी में कोई भी आंगन नहीं है और यह काफी अजीग बात है क्योंकि पुराने जमाने के राजाओं या नवाबों को घरों में खुलापन की आदत थी। इस कोठी का इस्तेमाल भारत की आजादी की पहली लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किया गया था। हालांकि, भारी बमबारी के बाद ब्रिटिश सेना ने इस पर कब्जा कर लिया था और फलस्वरूप यह कोठी अपनी भव्यता और महिमा खोती चली गई।