वैसे तो नागालैंड का शुमार देश के सबसे सुरम्य राज्यों में होता है। लेकिन यहां की एक खूबी ऐसी है जो इसे और भी खास बना देती है। इस राज्य में पेरेन नाम का एक जिला है, जो अपने जंगलों के लिए जाना जाता है। इन जंगलों की खासियत यह है कि ये मानवीय परिस्थितिकी से पूरी तरह मुक्त है। यानी यहां ऐसे जंगल देखे जा सकते हैं जो मनुष्य के हस्तक्षेप से पूरी तरह अछूते हैं। इसका श्रेय यहां के निवासियों को जाता है, जिन्होंने पूरी निष्ठा से इन जंगलों को सुरक्षित रखा है। यह पश्चिम में असम और दीमापुर जिला, पूर्व में कोहिमा और दक्षिण में मणिपुर राज्य से घिरा हुआ है। पेरेन जिला मुख्यालय भी है और प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ण से कम नहीं है। पहाड़ी पर बसे पेरेन से पड़ोसी राज्य असम और मणिपुर का विहंगम नजारा देखने को मिलता है।
पेरेन की प्रकृतिक सुंदरता
बरेल पर्वत श्रृंखलओं के एक भाग में बसे पेरेन पर प्रकृति कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। इस जिले में घने पेड़-पौधे और अनवरत बहती नदियों के अलावा जानवरों और पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों देखी जा सकती है। जंगलों के अधिकांश भाग में गन्ने और बांस के वृक्ष पाए जाते हैं। इसके अलावा यहां देवदार, यूकेलिप्टस और कई तरह के जंगली पेड़ बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। यह जगह खनिज संसाधन के मामले में भी काफी समृद्ध है। हालांकि अभी इसका बड़े पैमाने पर उत्खनन नहीं हुआ है। पेरेन और आसपास के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नतांगकी नेशनल पार्क, माउंट पाओना, माउंट कीसा, बेनरुइ और पुइलवा गांव की गुफाएं प्रमुख हैं।
अंग्रेजों का हस्तक्षेप
इतिहास से पता चलता है कि ज्यादातर समय पेरेन देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग रहा। इसकी एक वजह यह रही कि यहां के जीलिंग्स समुदाय ने अपने संस्कृति और परंपराओं की डोर को कभी छोड़ा नहीं। 1879 में कोहिमा पर अधिकार जमाने के बाद अंग्रेजों ने नागालैंड के इस भाग की ओर रुख किया और वहां के लोगों को अपने अधीन कर लिया। जल्द ही अंग्रेज अधिकारियों ने इस जगह को कोहिमा और दीमापुर से जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया। सड़कों के बन जाने से आस-पास के क्षेत्र के लोग सामान बेचने के लिए पेरेन आने लगे।
संस्कृति और पेरेन के लोग
पेरेन में जीलिंग्स जनजाति के लोग रहते है जिसका अभिर्भाव मणिपुर के सेनापति जिले में स्थित नकुइलवांगदी से हुआ था। औपनिवेशिक दौर में काचा नागा के नाम से जाने जाने वाले ये जनजाति खेती करते हैं। यहां की जलवायु और मिट्टी के कारण पेरेन नागालैंड का सबसे उपजाऊ जिला है। जीलिंग्स जनजाति की पहचान उनकी समृद्ध विरासत है जो उन्हें उनके पुरखों से मिली है। दूसरे नागा जनजाति की तरह ही जीलिंग्स की भी अपनी अलग प्रचीन कलाकृति, भोजन, नृत्य और संगीत है, जो इन्हें राज्य के एक महत्वपूर्ण जनजाति का दर्जा देते हैं।
अंग्रेजों के यहां आगमन के साथ ही मिशनरी इंस्टीट्यूट ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जिन्होंने यहां की संस्कृति और जीवनशैली को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया। कोहिमा मिशन सेंटर ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों को ईसाई धर्म से जोड़ रहा है। परंपरागत त्योहारों में फसलों का त्योहार मिमकुट, चेगा गादी, हेवा त्योहार और समुदाय के बहादुर योद्धाओं के सम्मान में मनाया जाने वाला चागा-नगी त्योहार प्रमुख है। इसके अलावा क्रिसमस पेरेन के लोगों का सबसे बड़ा त्योहार है।
इनर लाइन परमिट (आईएलपी)
भारत के अलग-अलग हिस्सों से यहां आने वाले घरेलू पर्यटकों को इनर लाईन परमिट की आवश्यकता होती है। नई दिल्ली, कोलकाता, गुवाहटी और शिलोंग स्थित नागालैंड हाउस से यह परमिट आसानी से मिल जाता है। पर्यटक इस परमिट के लिए दीमापुर, कोहिमा और मोकोकचुंग के उपायुक्त के पास भी आवेदन कर सकते हैं। विदेशी पर्यटकों को आईएलपी की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि उन्हें संबंधित जिले के फॉरेन रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है।