वारंगल का किला अपने आप में अलग प्रकार का आकर्षण है जिसका पर्यटक आनन्द ले सकते हैं। इसे दक्षिण भारतीय वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। गणपतिदेव ने 1199 ई0 में किले की शुरुआत कराई लेकिन इसका ऩिर्माण उनकी पुत्री रानी रुद्रामा देवी के समय में 1261ई0 में पूर्ण हुआ।
वर्तमान में खण्डहर के रूप में इस किले के दो दीवारों के साथ-साथ चार विशाल प्रवेश द्वार साँची शैली में हैं और देश में सबसे बड़े हैं। जो लोग वास्तुकला, इतिहास और प्रचीन इमारतों के शौकीन हैं उन्हे किले और इसके आसपास से काफी जानकारी प्राप्त हो जाती है और साल भर यात्रियों की भारी संख्या सभी आयु वर्ग के लोगों में इसकी लोकप्रियता को दर्शाती है। आज भी पत्थर पर बारीक काम और शेर तथा हंस जैसी चिड़ियों को दर्शाने वाले डिजाइन साफ देखे जा सकते हैं।