कभी नारतियांग जयंतिया राजाओं की राजधानी हुआ करता था। आज यहां पूरे विश्व से पर्यटक व श्रद्धालु यहां की प्राचीन संस्कृति और धर्म को करीब से देखने के लिए आते हैं।
नारतियांग में स्थित दुर्गा मंदिर जयंतिया साम्राज्य में हिंदू धर्म की उपस्थिति को सुनिश्चित करता है। हालांकि मंदिर के मूल आकार में काफी परिवर्तन कर दिया गया है, फिर भी आप यहां सैंकड़ों साल पहले की मूर्ति और वेदी देख सकते हैं। साथ ही आप उस तलवार को भी देख सकते हैं, जिसका इस्तेमाल राजाओं द्वारा बलि चढ़ाने के लिए किया जाता था।
यहां एक शिव मंदिर भी है। नारतियांग बाजार के साथ भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि यू मार फलिंगकी ने रालियांग बाजार से नारतियांग बाजार तक एक विशाल पत्थर की पट्टी को ढो कर लाया था। आज आप नारतियांग बाजार में मोनोलिथ (पत्थर का खंभा) का विशाल समूह देख सकते हैं। इस बाजार को घूमना और यहां के जनजातीय पुरुष व महिला को छोटे से छप्पर के नीचे बैठ कर फल, सब्जी, स्थानीय पकवान और बेंत से बनी टाकरी को बेचते हुए देख एक यादगार अनुभव साबित होता है।
नारतियांग के रास्ते में खूबसूरत थादलासकीन झील पड़ता है। शाम के समय इस झील में बोटिंग करने का अनुभव ही कुछ और होता है। हवा का ठंडा झोंका जब तन को स्पर्श करता है, तो यह अनुभव कभी न भूलने वाला साबित होता है। नारतियांग पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि शिलांग से कैब बुक कर ली जाए।