कालाहस्ती, श्रीकालहस्ती को दिया गया एक अनौपचारिक नाम है, और यह आंध्र प्रदेश के पवित्र शहर तिरुपति के पास स्थित एक नगर पालिका है। यह शहर, जो भारत के पवित्रतम स्थानों में से एक माना जाता है, स्वर्णमुखी नदी के तट पर स्थापित किया गया था। श्रीकालाहस्ती को उसका नाम तीन शब्दों के संयोजन से प्राप्त होता है; श्री, काला और हस्ती। श्री शब्द का अर्थ है मकड़ी, काला अर्थात् सांप और हाथी अर्थात् हस्ती।
जाना जाता है कि इन सभी तीनों जनवरों ने भगवान शिव की प्रार्थना की और इन्हें इसी स्थान पर मोक्ष प्राप्त हुआ और मुख्य मंदिर के सामने इन तीनों जानवरों की प्रतिमाएं रखी गई हैं। श्रीकालाहस्ती शिव के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है या भारत के दक्षिणी भाग का एक शिव मंदिर है। पंचमहाभूत के पांच तत्वों में से एक पवन का प्रतीक है।
वास्तव में, इस प्रसिद्ध और पूजनीय श्रीकालाहस्ती मंदिर को पहाड़ी के तलहटी तथा स्वर्णमुखी नदी के किनारे के बीच के क्षेत्र पर बनाया गया है। इसी वजह से यह स्थान मशहूर दक्षिण कैलाश के रूप में जाना जाता है। श्रीकालाहस्ती को भारत के उत्तरी भाग में स्थित पवित्र शहर काशी के संदर्भ में दक्षिण काशी के रूप में जाना जाता है।
श्रीकालाहस्ती से जुड़ी किंवदंतियां
यह स्थान वायु स्थलम या वायु तत्व का प्रतिनिधि है। एक किंवदंती अनुसार, भगवान शिव ने उनकी आराधना करने वाली मकड़ी, कोबरा और हाथी के भक्ति भाव को देखने के लिेए वायु या पवन का रुप धारण किया। भगवान शिव उनकी भक्ति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें उनके शापों से मुक्त कर दिया और माना जाता है कि इन जानवरों ने इसी स्थान पर मोक्ष प्राप्त किया है।
श्रीकालाहस्ती शहर का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण नामक तीन पुराणों में मिलता है। स्कंदपुराण अनुसार, जब इस स्थान पर अर्जुन कालाहस्तीवर (भगवान शिव) की पूजा करने आए तो यहां एक पहाड़ी की चोटी पर उनकी मुलाकात भारद्वाज मुनि से हुई।
श्रीकालाहस्ती का पहला काव्य संदर्भ तीसरी सदी के कवि नक्कीरर के काव्यों में देखा जा सकता है, जो संगम के शासनकाल में एक कवि थे। वे नक्कीरर ही था, एक महान कवि जिन्होंने इस शहर को दक्षिण कैलाश का नाम दिया। धूर्जाती एक तेलुगू कवि थे जो श्रीकालाहस्ती में बसे और इन्होंने इस शहर एवं श्रीकालाहस्ती की प्रशंसा में सौ पद लिखे।
भक्त कणप्पा
श्री आदि शंकराचार्य भी इस स्थान पर आए थे और वे भक्त कणप्पा की भक्ति से बहुत प्रभवित हुए तथा इसकी उल्लेख शिवानंद लहरी में भी किया गया है। कालाहस्ती, भक्त कणप्पा के साथ लगभग पर्याय बन चुका है, और शिव के भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है, इन्होंने भगवान को अपनी आंखों दे दी! इनकी भक्ति की कहानी बड़े पैमाने पर शिव और हिंदू समुदाय के भक्त अच्छी तरह से जानते हैं।
विशिष्ट वास्तुकला से युक्त मंदिर
इस जगह में निर्मित मंदिरों के कारण श्रीकालाहस्ती शहर सर्वश्रेष्ठ रुप से जाना जाता है जो हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ये मंदिर भगवान शिव और भगवान विष्णु को समर्पित हैं जो मंदिर में विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं। कालहस्ती शहर कई राजवंशों के शासन के अधीन आया जिन्होंने अपने शासनकाल में कई मंदिरों का निर्माण किया।
इसलिए, इस शहर के हर मंदिर की स्थापत्य कला की अपनी एक अनूठी शैली है जो उस समय की शैली तथा राजा की पसंद के अनुरूप है। चोल और पल्लव राजवंश के राजाओं ने तथा विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने अपने समय में बनाए गए विभिन्न मंदिरों की वास्तुकला पर अपनी अदम्य छाप छोड़ दी है।
यह माना जाता है कि विजयनगर साम्राज्य के कई राजा अपना राज्याभिषेक महलों के शानदार वातावरण के बजाय मंदिर के शांत और पवित्र माहौल में करवाना पसंद करते थें। अपनी राजधानी में आयोजित समारोह में वापस जाने से पहले राजा अच्यतराय का राज्याभिषेक श्रीकालाहस्ती के सौ स्तंभों के मंड़प में हुआ था।
कालाहस्ती और उसके आसपास के पर्यटक स्थल
कालाहस्ती में स्थित कई प्रसिद्ध मंदिर पर्यटकों और श्रद्धालुओं को एक दिव्य यात्रा का अनुभव प्रदान कराता है। कालाहस्ती के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में श्री श्री सुब्रमण्या स्वामी मंदिर, भारद्वाज तीर्थम, कालाहस्ती मंदिर और श्री दुर्गा मंदिर शामिल हैं।
कालाहस्ती की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय
यह स्थान गर्म और आर्द्र गर्मियों को अनुभव करता है, इसलिए गर्मियों के महीनों में कालाहस्ती की सैर करना एक सही निर्णय नहीं होगा।
कैसे पहुंचें कालाहस्ती
कालाहस्ती को एक सभ्य संयोजकता प्राप्त है और इसलिए यहां तक ट्रेन या सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। शानदार वास्तुकला का दावा करते मंदिर और परिवेश में फैली दिव्यता की हवा कालाहस्ती की लोकप्रियता में अपना योगदान देते हैं तथा इसे शांति की तलाश में भटक रहे लोगों के बीच एक पसंदीदा स्थान बनाते हैं।