गंगाई कोंडा चोलापुरम को राजेंद्र चोल द्वारा स्थापित किया गया था जो पाल वंश की विजय का प्रतीक था। इसे 250 साल पहले चोल वंश की राजधानी के रूप में जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत सारे राजाओं का शासन रहा है। यहां एक शिव मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर आज भी इस क्षेत्र की वास्तुकला और कला का जीवंत प्रतीक है।
यह मंदिर न सिर्फ चोल वंश के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा और प्राचीन शिवलिंग वाला मंदिर है। इस मंदिर में 4 मीटर ऊंचा शिवलिंग खड़ा है। इस मंदिर में चोल वंश के दौरान की कई कलाकृतियां बनी हुई है। मंदिर की दीवारों पर उस काल के बारे में काफी कुछ अंकित है। यहां की नक्काशी बेहद सुंदर और देखने लायक है। इस स्थान पर यहां से जुड़ी कई पुस्तकें भी पढ़ी जा सकती है। मयीलाडूतुरै की यात्रा में यहां अवश्य आएं।