दक्षिणामूर्ति मंदिर, मयीलाडूतुरै शहर में स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। इस मंदिर को एक शिक्षक के ज्ञान के रूप में देखा गया है। भगवान शिव को दक्षिणामूर्ति का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। यह तमिलनाडु का सबसे विख्यात मंदिर है। दक्षिणामूर्ति का...
श्री काशी विश्वनाथ स्वामी मंदिर, कावेरी नदी के तट पर स्थित है जो थुला घाट पर बना है और दक्षिण के काशी के नाम से जाना जाता है। विश्वनाथस्वामी का शाब्दिक अर्थ होता है - विश्व का स्वामी। दक्षिण के निवासी अगर किसी कारणवश काशी तक नहीं जा...
श्री अय्यारप्पर मंदिर, मयीलाडूतुरै में स्थित है जो गंगाई कोंडा चोलापुरम मंदिर के समान है और ऐतिहासिक महत्व रखता है। जब गंगाई कोंडा चोलापुरम मंदिर की स्थापना की गई तो चोल वंश के राजा राजेन्द्र चोल ने कॉपर की प्लेटों पर चोल वंश के बारे में...
मयीलाडूतुरै में कुरूकाई सिवान मंदिर प्रमुख है जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान शिव की तीसरी आंख बनी हुई है। माना जाता है कि यह मंदिर उसी स्थान पर बना है जहां भगवान शिव ने भयानक क्रोधित होने पर अपनी तीसरी आंख को खोल दिया था। इसका वर्णन...
थुला उत्सवम, मयीलाडूतुरै में एक महीने तक चलने वाला उत्सव है। यह उत्सव, पवित्र महीनों में आसपास मनाया जाता है। इसे अमूमन अक्टूबर से नबवंर के बीच मनाते है। इस उत्सव को उत्तर भारत के कुंभ मेले के समान मनाया जाता है। यह काफी भव्य और...
पुनुगिश्वेश्वर मंदिर, कोरूरेनअडु में स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित है और उनकी पत्नी संथा नायकी की पूजा भी यहां की जाती है। इस मंदिर का नाम पुनुगिश्वेश्वर मंदिर, यहां मोक्ष पाने वाले पुनुकु सिदेश्वर के नाम पर रखा गया। मयीलाडूतुरै...
श्री वाधानेश्वर मंदिर, कावेरी नदी के तट पर स्थित है जिसे वल्लार कोईल के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जो इससे जुड़े है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव गायब हो गए तो नंदी देवा को गर्व महसूस हुआ कि वह भगवान शिव से...
श्री मयूरानाथस्वामी मंदिर को मयीलाडूतुरै के सबसे बड़े मंदिरों में से गिना जाता है। मयूरानाथ स्वामी का शाब्दिक अर्थ होता है - मयूरों का पति, जो इस मंदिर के मुख्य देवता के रूप में पूजे जाते है। किंवदंती है कि माता पार्वती को भगवान शिव के गुस्से के...
श्री परिमाला रंगनाथन स्वामी मंदिर, कावेरी नदी के तट पर बना 108 मंदिरों पर मंदिर है जो सभी भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे अल्वर के कवि वैष्नवीत के द्वारा र्निमित करवाया गया था। इस मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की 12 फुट ऊंची हरे...
गंगाई कोंडा चोलापुरम को राजेंद्र चोल द्वारा स्थापित किया गया था जो पाल वंश की विजय का प्रतीक था। इसे 250 साल पहले चोल वंश की राजधानी के रूप में जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत सारे राजाओं का शासन रहा है। यहां एक शिव मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर आज भी इस क्षेत्र...