महाराष्ट्र राज्य का जि़ला परभनी, पहले ‘प्रभावतीनगर‘ नाम से जाना जाता था। यह मराठवाड़ा क्षेत्र के आठ जि़लों में से एक है। समुद्रतल से 357मीटर ऊपर बना यह जि़ला चारों ओर से बालाघाट और अजंता की पहाडि़यों से घिरा हुआ है।हिंदू पुराणों में परभनी का धार्मिक महत्त्व है। यह अनेक साधुओं की जन्मभूमि है, जिनमें साई बाबा के प्रति मान्यता और श्रद्धा सबसे अधिक है। इसके आसपास अनेक मंदिर बने हुए हैं।
परभनी का नाम आभा की देवी, प्रभावती के नाम पर रखा गया था। सुल्तानों, मुग़लों और निज़ामों के शासनकाल में इस जगह कोई प्रगति नही हुई।लगभग 650 सालों तक परभनी एक ठहरा हुआ गाँव बना रहा। 1960 में महाराष्ट्र में मिल जाने पर इसकी समृद्धि बढ़ने लगी।
परभनी, साई बाबा के जन्म स्थान के रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इन्हें दत्तात्रेय का अवतार माना जाता है और इनका जन्म यहाँ से 45कि.मी. दूर ‘पथरी‘ में हुआ था। यहाँ पाए जाने वाले अनेक मंदिरों में से कुछ मंदिर हैं-जबरेश्वर बालेश्वर महादेव, मोटा मारुति और पारदेश्वर मंदिर।
40कि.मी. दूर बना जिंतूर का जैन मंदिर एक अन्य पवित्र स्थान है। पास का एक गाँव ‘मुदगल‘ ही केवल एक ऐसी जगह है जहाँ भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा एकसाथ होती है। यहाँ का एक और प्रसिद्ध मंदिर है, नरसिंह मंदिर।यहाँ पर श्री केशवराज बाबासाहेब मंदिर भी विशेष है क्योंकि वे श्री साई बाबा के गुरु थे। यह मंदिर परभनी से 45 कि.मी. दूर सेलू में बना है।