तात्या टोपे मेमोरियल, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लड़ाई लड़ने वाले शूरवीरों की याद में बनाया गया स्मारक है। भारत में औपनिवेशिक काल में कई नि: स्वार्थ शहीदों का खून बहाया गया था। रामचंद्र पुंडुरंग टोपे, जो तात्या टोपे के नाम से विख्यात थे, वह एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे और एक मराठा नेता भी थे। उन्होने 1857 की पहली क्रांति में भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी थी।
टोपे को अंग्रेजी औपनिवेशिक शासकों की कैद से ग्वालियर को छुडाने में रानी लक्ष्मीबाई के मददगार व सहयोगी के रूप में जाना जाता है। तात्या टोपे को उनके विश्वसनीय दोस्त नारवार के राजा मान सिंह ने धोखा दे दिया था। उस आदमी ने 18 अप्रैल 1859 को कब्जा कर लिया था और मार डाला था।
तात्या टोपे ने औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था क्योंकि उनके पिता ने उस पेंशन को भी लेने से इंकार कर दिया था, जिसके वह हकदार थे। तात्या टोपे ने न केवल ग्वालियर पर कब्जा करने की लड़ाई में अभूतपूर्व सहयोग प्रदान किया बल्कि इसमें आने वाली बाधाओं को दूर करने का जिम्मा संभाला था और उन्हे दूर किया था।
तात्या टोपे को हमेशा एक बहादुर सिपाही के रूप में याद किया जाता है। उनकी याद में येओला और शिवपुरी में स्मारक का निर्माण करवाया गया है जहां उन्होने अपने जीवन के आखिरी पलों को बिताया था।